शनिवार, 22 मई 2010

ये नक्सलवाद नहीं, ना-अक्लवाद है....

बस्तर में नक्सलवाद का खूनी विस्तार हदें पार कर रहा है। विचारधारा अब हिंसाधारा बनती जा रही है। अब लोग नक्सलवाद को ना-अक्लवाद भी कहने लगे हैं। मासूमों के खून बहाना अक्लमंदी नहीं हो सकती। अपने ही लोगों की हत्याएँ करके हम किसी मुकाम तक नहीं पहुँच सकते। बस्तर में आए दिन हिंसा का तांडव हो रहा है। इसलिए अगर मुख्यमंत्री नक्सलवाद और आतंकवाद को एक ही सिक्के के दो पहलू कहते हैं तो गलत नहीं कहते। अचानक कहीं धमाका करके कुछ लोगों की जाने ले लेना। यही है आतंकवाद। अपनी उपस्थिति का हिंसक अहसास कराना ही आतंकवाद है। ऐसा करके माओवादी अपने प्रति लोगों की सहानुभूति खोते जा रहे हैं। हो सकता है, उनके लक्ष्य ऊँचे हों लेकिन लक्ष्य हासिल करने का रास्ता गलत है। हिंसा केवल हिंसा को जन्म देती है। और यह चक्र चलता रहता है। इस चक्कर में पिस रहे हैं वहाँ के आदिवासी। बेचारे दोनों तरफ से मारे जा रहे हैं। कभी नक्सली इसलिए मार देते हैं, कि इसने पुलिस की मुखबिरी की है, और पुलिस इसलिए मार देती है, कि यह नक्सलियों से मिला हुआ है। इसलिए अब समय आ गया है कि नक्सली ना-अक्ली नहीं अक्ल से काम लें और खून-खराबा बंद करके सरकार से बातचीत करें।
टेंशन-फ्री रमन का मन
और हो भी क्यों न? जब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री साथ हैं। नक्सल मामले में रमन सरकार को केंद्र का समर्थन मिला हुआ है। बस्तर के विकास को लेकर मुख्यमंत्री ने जो कार्य योजना रखी, उसे भी केंद्र से हरी झंडी मिल गई। और क्या चाहिए। अब छत्तीसगढ़ में काँग्रेस बेचारी सोनिया गाँधी को पत्र लिख रही है, राज्यपाल से सीधी कार्रवाई का आग्रह कर रही है, उससे क्या होगा? नक्सल समस्या अब एक राज्य की समस्या नहीं रही, वह देश की समस्या हो गई है। कई राज्य प्रभावित हैं। राज्य सरकार पूरी हिम्मत के साथ नक्सलियों से मुकाबला कर रही है। यह केंद्र भी देख रहा है। प्रदेश काँग्रेस रमन सरकार की लाख निंदा करे, राष्ट्रपति शासन लगाने की माँग करे, उनकी माँग पूरी नहीं हो पाएगी। क्योंकि दिल्ली मुख्यमंत्री केसाथ है। यही कारण है कि  से दिल्ली से लौटने के बाद डॉ. रमन सिंह टेंशन-फ्री नजर आ रहे हैं।
शराब के खिलाफ लामबंद होते लोग...
शराब ने छत्तीसगढ़ को काफी हद तक खराब किया है। आज अधिकांश गाँवों में विद्यालय हों न हों, मदिरालय जरूर मिल जाएंगे। लेकिन यह अच्छी बात है कि कुछ जागरूक लोगों नेछत्तीसगढ़ शराब विरोधी मंच बनाया है। संस्था कुछ अरसे से शराब के विरुद्ध जन जागरण अभियान चला रही है। इस मंच को एक बड़ी सफलता उस वक्त मिली जब इसने सरगाँव के पास स्थित किरना गाँव में खुलने वाली एक शराब फैक्ट्री बंद करवा दी। यहाँ एक कंपनी प्रतिदिन बत्तीस हजार लीटर शराब बनाने का कारखाना खोलने वाली थी। सरकार ने आम सहमति के लिए यहाँ जनसुनवाई रखी। मंच के लोग वहाँ पहले से पहुँच गए और गाँव वालों के साथ मिल कर शराब फैक्ट्री का विरोध किया। शराब फैक्ट्री के लिए प्रतिदिन पचास हजार लीटर पानी खर्च होता। इधर पीने का पानी नहीं, उधर शराब के लिए इतना पानी खर्च हो जाता। गाँव वालों ने दो टूक कहाँ कि गाँव में शराब फैक्ट्री नहीं खुलेगी। यह चेतना हर गाँव में नज़र आए तो कोई बड़ी बात नहीं कि छत्तीसगढ़ में शराब माफियाओं के हौसले पस्त होंगे।
आग लगी तो कुआँ खोदो...?
रायपुर में और अनेक शहरों में यही हो रहा है। भीषण गरमी के कारण पानी का संकट खड़ा हो गया है, तालाब-कुएँ सूख रहे हैं तो लोग जाग रहे हैं। कोई श्रम दान कर रहा है, कोई वाटर हार्वेस्टिंग के लिए रथयात्रा निकाल रहा है। यानी कि जितने कर्मकांड होने चाहिए, वो सब हो रहे हैं। लेकिन वे लोग कहाँ हैं, जिन्होंने विकास के नाम पर हमें विनाश का तोहफा दिया?देखते ही देखते  रायपुर और अनेक शहरों के तालाब पट गए, हरे-भरे पेड़ भी कट गए। कांक्रीट के जंगल उग आए। भू-जल स्तर घटता गया। लेकिन अब भी बहुत कुछ सँवारा जा सकता है। बशर्ते हम लोग मन से काम करें। दिखावा बहुत हो गया है। जरूरी यह है कि शहरों में, गाँवों मे नए तालाब बनें। उनका संरक्षण हो। अधिक से अधिक पेड़ लगें और वे पेड़ भी बचाए जाएँ। ग्लोबल वार्मिंग के इस भयावह दौर में छत्तीसगढ़ को हरितप्रदेश बनाए रखने के लिए केवल गर्मी में ही चिंता नहीं करनी चाहिए, यह हमारे साल भर का एजेंडा होना चाहिए।
गाय की हाय न लें....
गाय को पशु समझ कर बहुत से लोग उस पर गंभीरतापूर्वक ध्यान नहीं देते। छत्तीसगढ़ के अनेक शहरों में गायों की बुरी हालत देखी जा सकती है। जबकि गायको हम लोगों माँ मानते हैं। और वो माँ है। अपनी माँ का दूध हम दो साल तक पीते हैं मगर गौ माता का दूध जीवन भर पीते रहते हैं। लेकिन इस माँ को सड़कों पर बदहाल घूमते देखा जा सकता है। कभी वह किसी कचरे में भोजन तलाशती है तो कभी गली-मोहल्ले की खाक छानती है। लेकिन कुछ गायों के दिन फिरने वाले हैं। विभिन्न सेवाकार्यो में संलग्न राउतपुरा सरकार-आश्रम ने पिछले दिनों यह संकल्प किया कि वह एक हजार गायों को गोद लेगा। ऐसी गायें जो नि:शक्त हो चुकी हैं। यह बड़ी घोषणा है। गौ सेवकों को, गौशालाओं को इस निर्णय से सबक लेना चाहिए। बहुत-से गौ सेवक गायों का दूध पीते हैं, दूध बेचकर कमाई भी करते हैं, लेकिन गायों का ेदेखभाल नहीं करते। उनके लिए बस यही कहा जा सकता, है कि वे गाय से भरपूर आय तो लें, मगर उसकी हाय कतई न लें। वो भारी पड़ सकती है।
विकास में हड़बड़ी न हो...
छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव के बारे में लोगों को पता है कि वे बेहद ईमानदार और समर्पित बौद्धिक जनप्रतिनिधि हैं। पिछले दिनों रायपुर के एक साहित्यिक कार्यक्रम में उन्होंने बड़ी अच्छी बात की, जिसका दूसरे बौद्धिक लोगों ने भी समर्थन किया। सिंहदेव जी ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में इस्पात संयंत्र आदि लग जाते हैं लेकिन वहाँ के लोग संयंत्र में केवल मजदूरी का काम करते हैं। ऐसा इसलिए कि वहाँ कोई इंजीनियर नहीं होता। इसलिए हमारा दायित्व यह है कि अपने गाँवों में, आदिवासी क्षेत्रों में पहले हम इंजीनियर तो पैदा करें। तब तक वहाँ संयंत्र आदि लगाने का काम स्थगित किया जाना चाहिए।  दिल्ली से आए प्रख्यात चिंतक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने भी सिंहदेव का समर्थन करते हुए कहा कि जब भी विकास की बात होती है तो आदिवासी क्षेत्र को ही उजाडऩे की कोशिश होती है, किसी पॉश इलाके को निशाना क्यों नहीं बनाया जाता। गोष्ठी में मौजूद लोग इस चिंतन से सहमत थे। अब समय आ गया है कि बस्तर या अन्य क्षेत्रों के आदिवासी या ग्रामीण क्षेत्रों में वहीं से अच्छे इंजीनियर तैयार करें ताकि कोई कारखाना लगे तो वहाँ के लोगों की सम्मानजनक भागीदारी बन सके। इस कार्य में समय लग सकता है लेकिन यह न्यायसंगत व्यवस्था ऐसी होगी, जिसके पीछे न तो नफरत होगी और न हिंसा।

4 Comments:

Unknown said...

आपने अच्छा लेख लिखा
इस माओवादी आतंकवाद की रीड़ की हड़ी है सेकुलर गिरोह जब तक गद्दारों का यह गिरोह सता में तब तक इन आतंकवादियों का कोई कुछ नहीं विगाड़ सकता जी

Unknown said...

aapne bahut sahi aur rochak tareke se baat kahi..

dhnyavaad is post ke liye !

36solutions said...

पुरसोत्‍तम अग्रवाल जी के उद्बोधन को सुनने के लिए आना चाह रहे थे किन्‍तु नहीं आ पाए.
आपने जानकारी दिया इसके लिए धन्‍यवाद.

छत्तीसगढ़ पोस्ट said...

श्रद्धांजलि....
मंगलौर में हुए विमान हादसे ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है..वाकई जिन लोगों की जाने गयी हैं, उनके परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है..इस दुख की घडी में प्रभु उन्हें शक्ति प्रदान करे...ब्लॉग जगत कि तरफ से ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मृतात्माओं को शांति मिले....हार्दिक श्रद्धांजलि....

सुनिए गिरीश पंकज को