मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

छत्तीसगढ़ की चिट्ठी /

छत्तीसगढ़ में आंखफोड़ काँड....?

छत्तीसगढ़ में आँखफोड़ कांड हो गया मगर इसकी व्यापक हलचल न हुई, क्योंकि कांड सरकारी था। डाक्टरों ने किया था। जी हाँ, सरकारी डॉक्टरों ने। बात अधिक पुरानी नहीं है। कुछ दिन पहले की है। बालोद में स्वास्थ्य शिविर लगाया गया। वहाँ मोतियाबिंद से पीडि़त लोगों को आपरेशन होना था। हुआ भी। मगर ऐसा आपरेशन हुआ कि 25 लोगों ने अपनी रौशनी हमेशा-हमेशा के लिए गँवा दी। माँझी जब नाव डुबोए तो उसे कौन बचाए? यही कहावत लोगों को याद आ रही है। सरकारी ऑपरेशन में ऐसे गैर जिम्मेदार डाक्टर भेजे जाएँगे, जो लोगों की आँखों की रौशनी ही छीन लें, तो उन्हें डॉक्टर कहा जाए या डिफाल्टर? डॉक्टर को भगवान का दूत कहा जाता है मगर जब सरकारी खानापूर्ति का भूत सवार हो जाए तो भगवान का दूत कब शैतान के दूत में बदल जाए, कहना कठिन होता है। अब पीडि़त लोग मांग कर रहे हैं, कि दोषी डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, मगर प्रश्न यही है कि क्या कार्रवाई होगी? क्योंकि डॉक्टर लीपापोती करने में लगे हुए हैं। अगर डाक्टरों पर कार्रवाई न हुई तो सरकारी स्वास्थ्य शिविरों पर प्रश्न चिन्ह लगेंगे, लोग डरेंगे कि सरकारी शिविर में जा कर रिस्क लेना ठीक नहीं। इसके पहले भी नसबंदी के बाद एक-दो लोगों के मौत की खबर भी आ चुकी है। इसलिए यह जरूरी है कि स्वास्थ्य शिविर बला टालने के उपक्रम न बनें, वरन इन शिविरों में सर्वाधिक जिम्मेदार और अनुभवी डॉक्टरों को ही भेजा जाना चाहिए।
जात न पूछो नेता की, मगर...
कबीरदास जी छह सौ साल पहले कह गए कि जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मगर हमारा समाज अभी तक जाति-पाति और धर्म के खूँटे से बँधा है। छत्तीसगढ़ के पूर्वमुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति क्या है, इसको ले कर बहुत पहले से विवाद बना हुआ है। वे आदिवासी है, या ईसाई, यही पता नहीं चल पा रहा है।  जोगी खुद को आदिवासी कहते हैं। उन्होंने जब चुनाव लड़ा था तो अपनी जाति आदिवासी बताई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि जोगी ईसाई हैं।  इसी मामले की जाँच हो रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। सुको ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वही पता करे कि जोगी की जाति क्या है। अब आनन-फानन में एक हाईपॉवर समिति बनाई गई है, जो पता करेगी कि जोगी की जाति क्या है। स्वाभाविक है कि उनके पिता और दादा की जाति पता की जाएगी। कुछ न कुछ तो सच्चाई सामने आएगी ही।
भीड़ की चिंता में....
 स्वाभाविक ही है कि किसी बड़े नेता की रैली निकले और भीड़ के बारे में न सोचा जाए? भाजपा के पीएम इन वेटिंड के रूप में चर्चित नेता लालकृष्ण आडवाणी रथ यात्रा पर हैं। यह यात्रा 22 अक्टूबर को रायपुर आएगी। आडवाणी जी की सबा भी होगी। स्वाभाविक है इसके लिए भीड़ चाहिए। इस हेतु भाजपा के बड़े नेता पिछले दिनों बैठे और विचार मंथन किया कि कैसे अधिक से अधिक भीड़ जुटाई जाए। पिछले दिनों जब नेताओं की बैठक हुई तो बताते हैं कि किसी एक नेता ने साफ-साफ कहा कि अनेक लोग अभी मलाईदारों पदों पर काबिज हैं, इनको भीड़ की जिम्मेदारी सौंपी जाए। सचमुच मलाईदार पदवाले कब काम आएँगे? कुछ लोगों के बारे में सभी लोग जानते हैं, कि ये लोग अपना-अपना घर भरने पर तुले हैं, यही समय तो है पार्टी की सेवा का, कुछ मेहनत करें, कुछ गाँठ ढीली करें और लोगों को राजधानी रायपुर तक ला कर आडवाणी जी की सभा को सफल बनाएँ। 
छत्तीसगढ़ में मुन्नाभाइयों की भरमार?
बालोद में लापरवाह डॉक्टरों के कारण अनेक लोगों की आँखें चली गईं, क्या ये लोग मुन्नाबाई एमबीबीएस किस्म के लोग तो नहीं थे? मामले की जाँच हो तो ऐसे डॉक्टरों की डिग्रियाँ भी देख लेनी चाहिए। आजकल छत्तीसगढ़ में ऐसे अनेक छात्रा सामने आ रहे हैं, जिन्होंने फर्जी तरीके से मेडिकल में दाखिला पाने में सफलता हासिल कर ली है लेकिन अब जा कर पोल खुली तो भागते फिर रहे हैं। तैंतीस छात्रों पर जुर्म दर्ज हो चुका है। और 24 छात्र ऐसे हैं जो संदेह के दायरे में हैं। लगभग सौ छात्रों पर यह आरोप लगा कि उन्होंने फर्जी तरीके से मेडिकल कालेज में प्रेवश लिया। जिन छात्रों की बुनियाद ही फर्जी है, वे कल को पढ़ाई में भी तिकड़मों के जरिए परीक्षाएँ भी पास कर सकते हैं। ऐसे लोग कल डॉक्टर बनेंगे और किसी का आपरेशन करेंगे तो स्वाभाविक है कि मरीज भगवान का ही प्यारा हो जाएगा। इसलिए यह जरूरी है कि फर्जी छात्रों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और उनको अपात्र घोषित किया जाए। इस बात की भी सावधानी बरती जाए कि भविष्य में कोई भी छात्र फर्जी ढंग से प्रवेश पाने के हथकंडे न अपनाए। वरना होता यही है कि जो प्रतिभाशाली है, वे तो किसी कारणवश रह जाते हैं, मगर फर्जी छात्र प्रवेश पाकर एक तरह से योग्य लोगों का ही हक मारते हैं।
 छत्तीसगढ़ की  'स्वर्णिम' खेल प्रतिभाएँ
छत्तीसगढ़ में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अगर ईमानदारी से तलाश की जाए तो हर क्षेत्र में यहाँ के खिलाड़ी चमक सकते हैं। मौका मिलना चाहिए। अभी मौका मिला और छत्तीसगढ़ के दो खिलाडिय़ों ने छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित कर दिया। दक्षिण अफ्रीका  के कामनवेल्थ गेम में छत्तीसगढ़ रुस्तम सारंग और जगदीश विश्वकर्मा ने स्वर्णपदक जीत कर साबित कर दिया कि यहाँ के खिलाडिय़ों को मौका मिल जाए तो वे छत्तीसगढ़ का नाम रौशन कर सकते हैं। राज्य में खेल गतिविधियाँ बढ़ तो रही हैं, मगर अधिकांश खेल संगठनों में पैसे वालों का कब्जा है। कुछ लोगों की सामाजिक छवि भी ठीक नहीं हैं। ये लोग वास्तविक खेल प्रतिभाओं के साथ न्याय नहीं कर सकते। इसलिए खेल संघों में पूर्णकालिक खिलाडिय़ों को ही पदाधिकारी बनाना चाहिए, न कि नेताओं या उद्योगपतियों को। उनको केवल सदस्य बनाया जाए और आर्थिक मदद ली जाए, लेकिन जिम्मेदार पद पर बैठाना उचित नहीं, क्योंकि ये लोग भाई-भतीजावाद और सामंतशाही के शिकार हो जाते हैं। फिर भी प्रतिभा अपना हक प्राप्त कर ही लेती हैं। जैसे अभी दो लोगों ने स्वर्ण पदक जीत कर अपनी प्रतिभा को साबित कर दिखाया। ये लोग गाँव के हैं और सीमित साधनों के सहारे साधना करके यहाँ तक पहुँचे। खेल संघ ऐसे ही लोग की तलाश करे।
गुणवंत व्यास नहीं रहे
यथा नाम तथा गुण। ऐसे थे 72 वर्षीय प्रो. गुणवंत व्यास। संगीत गुरू के रूप में उनकी खास पहचान थी। अभी पिछले महीने उन्हें काका हाथरसी संगीत सम्मान से नवाजा गया था। राज्य सरकार का प्रतिष्ठित  चक्रधर सम्मान भी उन्हें मिल चुका था। राज्य की हर बड़े महत्वपूर्ण सांगीतिक आयोजन में व्यास जी की उपस्थिति रहती थी। उनके सिखाए अनेक छात्र आज संगीत की दुनिया में अपने मुकाम पर हैं। पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत खराब थी। अचानक दो दिन पहले उनका चला जाना संगीत प्रेमियों को दुखी कर गया। संगीत की बारीकियाँ सिखाना और उसी तरह जीवन को संगीतमय बहनाए रखने की कला के धनी थे। उन्होंने साहित्य की भी सेवा की। कुछ गुजराती रचनाओं का उन्होंने से हिंदी अनुवाद भी किया था.

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

छत्तीसगढ़ में राजयोग-सा वैभव भोग रहे अफसर ....

 हर अफसर के कमरे में 'सीसी टीवी'-कैमरे लगाये, तब पूरा सिस्टम सुधार जाएगा
                                गिरीश पंकज
    पिछले दिनों गाँव से आये एक व्यक्ति को अपने काम के सिलसिले में कुछ ''बड़े'' अफसरों से मिलना पडा. उसे अफसरों के आलीशान चेम्बरों को निकट से देखने  का मौका मिला, तो वह हतप्रभ रह गया. उसने अपने मन की बात मुझसे शेयर की. उसका यही कहना था कि जनता की गाढ़ी कमाई किस तरह विलासिता में खर्च की जा रही है? मेरे मित्र की बातों पर मैं विचार करने लगा, वह ठीक कह रहा था.मैंने भी विलासितापूर्ण जीवन जीने के पक्षधर अफसरों को निकट से देखा है.  हमारे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का कक्ष भी मैंने देखा है. आप को आश्चर्य होगा कि वहाँ ऐसा कोई तामझाम नजर नहीं आता, जितना कुछ अफसरों के यहाँ नज़र आता है. मुख्यमंत्री के  कार्यालय में एक सादगी है. और सच तो यही है कि सादगी में ही सौन्दर्य है , लेकिन इस राज्य के कुछ छोटे-बड़े अफसर वैभव-विलासपूर्ण सुविधाए जुटाने में इतना आगे निकल गए है कि मत पूछिए. समझ में नहीं आता कि ये प्रशासन चलाने के लिये बैठे हैं या राज्य की जनता के पैसों पर ऐश करने ? चकाचक दीवारें, बेहद कीमती टेबल-कुर्सियां और भव्य दिखाने वाले सोफसेट्स, कमरे में लगा महंगा से महँगा एलसीडी टीवी. और भी अन्य सुविधाए. जैसे महंगे मोबाइल सेट, लेपटाप, और सरकारी पैसे से खरीदी गई बेशकीमती करें आदि..ऐसा  नवाबी ठाठ गुलामी के दौर में तो समझ में चल जाता, मगर लोकतंत्र में यह अफसरी- आडम्बर किसी भी देशप्रेमी को चुभ सकता है.  मगर यह कटुसत्य है कि अफसर छत्तीसगढ़ में राजयोग-सा वैभव  भोग रहे है. अफसर बड़े चालाक  होते है. ये जनप्रतिनिधियों को भी विलासिता का स्वाद चखाने की कोशिश करते है, इसलिये गाँव का सीधा-सदा नेता मंत्री बनाने के बाद सामंती मिजाज़ में आ जाता है. इसके पीछे अफसरों का षड्यंत्र  होता है. कुछ अफसर अपनी सुविधाओं को बटोरने के लिये पहले मंत्रियों को खुश करते हैं. अफसरों को विदेश घूमना हो, तो वे मंत्रियों के लिये कार्यक्रम बनाते हैं और खुद भी चिपक जाते हैं. एक दशक से यही हो रहा है. अफसरियत इतनी हावी है कि वह साफ़ नज़र आती है.

   आदमी जिस वातावरण में रहेगा उसका असर उसकी सोच पर भी पडेगा. लेकिन यहाँ के अफसर  'सादा जीवन को तुच्छ विचार' समझते है.  क्या छोटे, क्या बड़े, हर स्तर के अफसर जनता के पैसों का दुरुपयोग अपने-अपने दफ्तरों को चमकाने में कर रहे है. इस तरफ अगर मुख्यमंत्री ध्यान दे कर अफसरों पर लगाम कस दें, तो सब ठीक हो  जायेंगे. अब मंत्रालय और अन्य दफ्तर धीरे-धीरे नए रायपुर में शिफ्ट होंगे, वहाँ इस बात पर ध्यान देने की ज़रुरत है कि पुराने फर्नीचरों,  सोफासेटों आदि से ही काम चलाया जाये. तामझाम पर अतिरिक्त  खर्च न किया जाये. वैभव पूर्ण दफ्तर, कारों आदि से विकास नहीं होता, विकास के लिये त्वरित गति से कामकाज निपटाना ज़रूरी है. उस दिशा में हमारे अफसर बेहद ढीले हैं. जन प्रतिनिधियों के आदेशों को भी दरकिनार रख देने वाले अनेक अफसर स्वेच्छाचारिता के कारण बदनाम हैं. इन पर मुख्यमंत्री जी जब तक लगाम नहीं कसेंगे, प्रदेश का भला नहीं हो सकेगा. वरना इन अफसरों के कराण प्रदेश का बहुत-सा धन फिजूलखर्ची  में ही  नष्ट हो रहा है. इसे रोकना ज़रूरी है.
    इस चिंतन को समझने की ज़रुरत है कि  सरकारी दफ्तर, या मंत्रालय आदि ऐसे भव्य नहीं होने चाहिए कि गाँव के आदमी को घुसने में भी डर लगे. ये सबके लिये खुले रहने चाहिए. और बेहद सादगीपूर्ण भी होने चाहिए. . ''सादगी के साथ कार्य'' अपने राज्य का नारा होना चाहिए. सरकारी  कार्यालय जनता के काम के लिये होते है, तामझाम को दिखाने के लिये नहीं. अगर सूचना के अधिकार के तहत ब्योरे निकलवाएँ जाएँ तो असलियत सामने आ सकती है, कि एक-एक दफ्तर की साज-सज्जा पर कितना खर्च हुआ है. यह बर्बादी है और एक तरह का भ्रष्टाचार ही है. आज हर बड़े अफसर के भव्य कक्ष में महंगे से महंगा टीवी दीवार पर चस्पा है? लोग पूछते हैं कि ये अफसर दफ्तर में काम करना चाहते हैं या टीवी देखना ? लगना ही है तो सरकार हर अफसर के कमरे में 'सीसी टीवी' और कैमरे लगाये, तब पता चलेगा कि ये अफसर किस तरह काम करते हैं. ऐसा हो गया तो पूरा सिस्टम ही सुधार जाएगा. जैसे सूचना का अधिकार कानून के कारण अधिकारी  कुछ-कुछ डरने लगे हैं, उसी तरह अगर हर अफसर क्लोज़ सर्किट टीवी की जद में आ जाएगा, तो वह काम करने लगेगा. उसे अपनी छवि कि चिंता रहेगी. इसलिये कम से कम नए रायपुर में तो हर अधिकारी के कमरे में क्लोजसर्किट  लगाये जाएँ, ताकि पारदर्शिता बनी रहे. और द्र्तुगति से काम हो. और यह निर्देश तो अनिवार्य रूप से दियें जाएँ कि दफ्तर के वैभव को बढ़ाने की बजाय काम की  गति पर ध्यान दिया जाये. लगभग हर सरकारी दफ्तर महंगे से महंगे सामानों  के इस्तेमाल कि कोशिश में लगे रहते है. सभी की यही मानसिकता  नज़र आती है कि जितना भव्य  दफ्तर होगा, उतना नाम होगा, लेकिन नाम काम से होता है. यह बात समझ में पता नहीं कब आयेगी? व्यावसायिक घराने या निजी कंपनियों के दफ्तर भव्य रखने की प्रथा चला पडी है, अब उसी रास्ते पर सरकारी दफ्तर भी चलाने की कोशिश करेंगे, तो यह जनता के पैसों का दुरुपयोग ही कहलायेगा. इस दिशा में मुख्यमंत्री ही कुछ संज्ञान लेंगे तो बात बनेगी, क्योंकि वे सादगी के साथ रहने वाले नेता हैं. अगर फिजूलखर्ची न रोकी गई तो यह सिलसिला चलता रहेगा. नियम तो यही बनाना चाहिए कि कोई भी अफसर अपने दफ्तर को संवारने से पहले उचित कारण बताये, वरना जनता के पैसों का दुरुपयोग इसी तरह जारी रहेगा. विकासशील राज्य का एक-एक पैसा महत्वपूर्ण है. यह अफसरों या जनप्रतिनिधि किसी की भी  विलासिता पर खर्च नहीं होना चाहिए.

बुधवार, 21 सितंबर 2011

सुप्रिया रॉय को आलइंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन ने सम्मानित किया.

आलोकजी की याद में पुरस्कार दिया जायेगा

मेरे दिवंगत बड़े भ्राता-तुल्य एक समूची पीढी के आइडियल बन चुके जंगजू पत्रकार आलोक तोमरजी के बारे में अब कुछ भी कहने-लिखने में जो तकलीफ होती रही है उसका बयान भी पीड़ा देता है. इसी साल 20 मार्च को उनके देहावसान के अकस्मात् घावों को भरने में समय लगेगा, यादें ही संबल बनेंगी. यादों के समंदर उफनते व बिछोह की हिलोरें जगाते है.

उनके बारे में आइसना के महासचिव विनय डेविड ने जो मेल भेजा है वह सराहनीय है. स्वागत योग्य है. संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष अवधेश भार्गव ने आलोक तोमर की स्मृति में हर साल एक चयनित जांबाज पत्रकार को पच्चीस हजार रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की है. यह घोषणा भोपाल में की गयी जहां आलोकजी की पत्नी सुप्रिया रॉय को आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन ने सम्मानित किया.
एक धूमकेतू की तरह हिन्दी बैल्ट पर छा जाने वाले पत्रकार आलोकजी ने अर्श से फर्श तक का सफ़र तय किया और वे गर्दिशों के दौर में भी वे कभी विचलित नही हुए. वे एक जंगजू की तरह पत्रकारिता की जद्दोजहद में जमे और डट कर चुनौतियों से लड़े. लेखक के रूप में आलोकजी एक रोल माडल बन बीमारी के दिनों में भी कीमोथेरेपी कराते हुए भी लिखते . खरा लिखते . तथ्यों के साथ लिखते और आख़िरी के दिनों में उन्होंने बड़े-बड़ों को उधेड़ डाला. सच बोलने के खतरे जिए . कार्टून विवाद में जेल भी गए मगर तन कर खड़े रहे . उनमें जोखिम लेने का जज्बा था. किसी ने लिखा अगर खबर है तो है ,चाहे वो बरखा दत्त हों वीर संघवी हों या उनके अभिन्न मित्र ओमपुरी हों या फिर कोई और. अगर खबर का वो हिस्सा हैं तो आप आलोक जी से पास-ओवर की उम्मीद बिलकुल न करें. वे छाप देते थे डंके की चोट पर. इस दौर में जहां पत्रकारिता की दुनिया बाजारु हो चुकी है, उस दौर में आलोक तोमरजी ने गंभीर सरोकारों वाली पत्रकारिता की. पत्रकारिता को लेकर उनके बारे में उनके शब्दों में ही कहूँ तो दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए और उन्होंने भारत में कश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया . दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए . झुकना तो सीखा ही नही. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले और सीधी-सपाट बात की जिसे सरेआम छापा. जब उनको एक कार्टून मामले में जेल जाना पड़ा तो साफ़ कहा एक सवाल है आप सब से और अपने आप से। जिस देश में एक अफसर की सनक अभिवक्ति की आजादी पर भी भरी पड़ जाए, जिस मामले में रपट लिखवाने वाले से ले कर सारे गवाह पुलिस वाले हों, जिसकी पड़ताल, 17 जांच अधिकारी करें और फिर भी चार्ज शीट आने में सालों लग जायें, जिसमें एक भी नया सबूत नहीं हो-सिवा एक छपी हुई पत्रिका के-ऐसे मामले में जब एक साथी पूरी व्यवस्था से निरस्त्र या ज्यादा से ज्यादा काठ की तलवारों के साथ लड़ता है तो आप सिर्फ़ तमाशा क्यों देखते हैं?

समर शेष है, नही पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है, समय लिखेगा, उनका भी अपराध


जनसत्ता में अपनी मार्मिक खबरों से चर्चा में आये आलोक तोमरजी ने सिख दंगों से लेकर कालाहांडी की मौत को इस रूप में सामने रखा कि पढ़नेवालों का दिल हिल गया. कुछ वैसे ही जैसे हर खबर सिर्फ खबर नहीं होती ,कभी कभी ख़बरों को अखबारनवीस जीता भी है उन्हें खाता भी है उन्हें पीता भी है,ख़बरों को जीने वाले ही आलोक तोमर कहलाते हैं. मौत एक दिन सबको आनी है. अन्ना हजारे ने भी कहा है की उनको सुरक्षा नही चाहिए क्योंकि हार्ट अटैक तो कोई नही रोक सकता. आलोक कैंसर से लड़े ,लड़ते शेर ही हैं ,बाकी आत्मसमर्पण कर देते हैं ,एक ऐसे वक्त में जब लड़ने की बात पर है तो सब चाहते हैं इस देश में भगत सिंह पैदा तो हो मगर पड़ोसी के यहाँ हो. इस दौर में आलोक जी का ये जज्बा था कि संघर्ष में वे झुके नही, रुके नही., थके नही, लड़े आन बान शान से और मूल्यों के लिए लड़े. कलम की खातिर लड़े. ख़बरों की खतिर लड़े. पूछा जाए उन सिख परिवारों से जिनको न्याय दिलाने के लिए वे लड़े. जिनके खिलाफ एक शब्द भी लिखने से लोग कतराते थे ,लेकिन आलोक जी ने साहस के साथ उनके बारे में भी लिखा.
आलोक तोमरजी ने सत्रह साल की उम्र में एक छोटे शहर के बड़े अखबार से जिंदगी शुरू की. दिल्ली में जनसत्ता में दिल लगा कर काम किया और अपने संपादक गुरू प्रभाष जोशी के हाथों छह साल में सात पदोन्नतियां पा कर विशेष संवाददाता बन गए। फीचर सेवा शब्दार्थ की स्थापना 1993 में कर दी थी और बाद में इसे समाचार सेवा डेटलाइन इंडिया.कॉम बनाया।
11 मार्च को उन्होंने लिखा
मै डरता हूं कि मुझे
डर क्यो नहीं लगता
जैसे कोई कमजोरी है
निरापद होना..
वे जीवन भर जुझारू रहे.. आइसना (आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन) द्वारा महानतम लेखनी के धनी और हजारों पत्रकारों के प्रेरणा-स्रोत आलोक तोमर की स्मृति में हर साल किसी जांबाज पत्रकार को पच्चीस हजार रुपये का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा वंदनीय और अभिनंदनीय है.
संयोजक आलोक मित्र मंच के डी दयाल और मेरी भी राय में भी दरअसल यह घोषणा तो मध्य प्रदेश सरकार को करनी चाहिए जिसे नाज होना चाहिए कि आलोकजी वहां जन्मे और देश-दुनिया में मध्य प्रदेश का मान बढ़ाया. एक तरफ हम यह भी देखते हैं, इंदौर प्रेस क्लब ने भी घोषणा कर दी कि वे लोग हर साल भाषाई महोत्सव में एक यशस्वी पत्रकार को आलोक तोमर की स्मृति में पुरस्कार देंगे ताकि आलोक तोमर के नाम व काम को जिंदा रखा जा सके. इस घोषणा की खबरें भी प्रकाशित हुई मगर आइसना ने कम से कम उनको सच्चे तौर पर याद तो किया है और आशा है आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन इस वायदे को निभाएगा.
                                                                       रमेश शर्मा 
                                                            (यायावर ब्लॉग)

सोमवार, 19 सितंबर 2011

हम अपने सपने भी हिंदी भाषा में ही देखते हैं


बालकोनगर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हिंदी दिवस पर साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अविरल धारा बहती रही. भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) प्रबंधन द्वारा आयोजित हिंदी सप्ताह-2011 के अंतर्गत मुख्य कार्यक्रम बालकोनगर के सेक्टर-1 स्थित प्रगति भवन में धूमधाम से मना ।
वक्ताओं ने हिंदी भाषा की परंपरा, उसके मजबूत पक्षों तथा भाषा विकास में आने वाली बाधाओं के विषय में विस्तार से चर्चा की।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दैनिक नई दुनिया, रायपुर के संपादक रवि भोई, कार्यक्रम अध्यक्ष छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज, राष्ट्रीय सहारा के ब्यूरो चीफ रमेश शर्मा, बालको के मानव संसाधन प्रमुख अमित जोशी तथा बालको के प्रशासन महाप्रबंधक के.एन. बर्नवाल सहित अन्य विशिष्ट जनों की उपस्थिति में हिंदी सप्ताह के दौरान आयोजित काव्य-पाठ, निबंध-लेखन और भाषण स्पर्धा के विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कार दिए गए ।

श्री नैयर ने कहा कि मातृ भाषा हमारी सांसों में बसती है। हम अपने सपने भी हिंदी भाषा में ही देखते हैं। प्रेम की भाषा हिंदी है। हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए।
श्री भोई ने कहा कि हिंदी को आगे ले जाने के लिए स्कूलों और घरों में बच्चों से शुरूआत करनी होगी। हिंदी भाषा संबंधी भेदभाव को समाप्त करना होगा।
श्री पंकज ने कहा कि हिंदी भाषा गैर हिंदी भाषियों के हाथों में अधिक सुरक्षित है। उन्होंने गांधी जी के शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा कि सच्चा सुराज हिंदी के रास्ते ही आ सकता है।
श्री जोशी और श्री बर्नवाल का जोर था की कि हमें निश्चित ही अंग्रेजी और अन्य भाषाएं सीखनी चाहिए परंतु यह भी ध्यान रखना होगा कि इससे राष्ट्रभाषा को नुकसान न हो।
6वीं से 8वीं कक्षा वर्ग के लिए आयोजित काव्य पाठ स्पर्धा में अंकुश पांडेय को प्रथम, अंशु विश्वकर्मा को द्वितीय और प्रभात कुमार जांगड़े को तृतीय पुरस्कार मिला। आयुश धर द्विवेदी और अम्बरीश पांडेय को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। 9वीं से 12वीं कक्षा के लिए आयोजित भाषण प्रतियोगिता में संजना साहू को पहला पुरस्कार मिला। श्वेता तिवारी को दूसरा और प्रिया त्रिवेदी को तीसरा पुरस्कार मिला। गौतम सिदार और रंजन कुमार सिंह को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। 9वीं से 12वीं कक्षा के लिए आयोजित निबंध लेखन में रंजन, कुमार सिंह, शशांक दुबे और अविनाश तिवारी क्रमशरू पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। शुभम यादव और दिशा चंद्रा को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। निबंध लेखन के 11वीं से 12वीं कक्षा वर्ग में श्रद्धा कुंभकार को पहला, किरण गोस्वामी को दूसरा और रेणुका कंवर को तीसरा पुरस्कार दिया गया। प्रिया त्रिवेदी और आयशा खातून को सांत्वना पुरस्कार मिला।

अतिथियों ने बालको आयोजित हिंदी सप्ताह की सराहना करते हुए स्पर्धा के प्रतिभागियों की हौसला अफजाई की।
बालको के कंपनी संवाद महाप्रबंधक बी.के. श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन में बताया कि छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति के सचिव महावीर प्रसाद चंद्रा ‘दीन’ द्वारा शेक्सपीयर के नाटक ‘ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम’ के छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ‘मया के रंग’, समिति के कोषाध्यक्ष रविंद्रनाथ सरकार रचित काव्य संग्रह ‘सुबह का सूरज’, समिति के पदाधिकारी लोकनाथ साहू रचित नाट्य संकलन ‘रंगविहार’ और समिति के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद आदित्य रचित काव्य संग्रह ‘अगोरा’ का प्रकाशन बालको के सौजन्य से हुआ है.
देवी सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत हुई जिसमे विभिन्न साहित्यिक संगठनों के पदाधिकारी, कोरबा के अनेक साहित्यकार, बालकोनगर के विभिन्न स्कूल के शिक्षक-शिक्षिकाएं, बड़ी संख्या में विद्यार्थी और बालको महिला मंडल की अनेक पदाधिकारी मौजूद थीं। कार्यक्रम का संचालन छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति के अध्यक्ष शुकदेव पटनायक ने किया। सचिव महावीर प्रसाद चंद्रा ने आभार जताया। इस अवसर पर राष्ट्रीय धर्म ऊर्जा के संपादक विकास जोशी और दैनिक नई, दुनिया के सह-संपादक सुनील गुप्ता भी मौजूद थे।
कार्यक्रम में अगले दिन काव्य गोष्ठी का आयोजन स्मरणीय रहा|

रविवार, 26 जून 2011

दृष्टिपात: थोथा है आराधना का बालश्रम समाप्त करने का संकल्प

दृष्टिपात: थोथा है आराधना का बालश्रम समाप्त करने का संकल्प

छत्तीसगढ़ की डायरी

सामंतीप्रवृत्तिवाले अफसरों का क्या किया जाए..?

छत्तीसगढ़ में सरकार निरंतर बेहतरी के काम करने की काशिशें कर रही है, मगर यहाँ के कुछ अफसर अपनी हरकतों से सरकार की छवि खराब करने की कोशिशों में लगे हैं। हर दूसरा अफसर करोड़ों की कमाई कर रहा है। जिसके यहाँ भी छापे मारो, वह अरबपति निकलता है। यह तो अलग मुद्दा है, इससे भी महत्वपूर्ण है अफसरों का जनता से व्यवहार। बहुत से अफसर जनप्रतिनिधयों को कुछ समझते ही नहीं, उन्हें लगता है वे ही इस व्यवस्था के भाग्यविधाता है। इसलिए उनकी हरकतें भी एकदम सामंती रहती है। हैं तो जनता के नौकर लेकिन आचरण ऐसा करेंगे, कि वे शाह है या राजा-महाराजा है। पिछले दिनों बस्तर में ऐसा ही वाकया देखने को मिला, जब दंतेवाड़ा के कलेक्टर ने दो चपरासियों को संडास में बंद करवा दिया। चपरासियों का कसूर यही था, कि वे अपनी ड्यूटी में विलंब से पहुँचे थे, इस कारण दोपहर के भोजन में विलंब हुआ था। कलेक्टर का गुस्सा जायज था, मगर उन्होंने जो हरकत की, वह यही दर्शाता है कि उन्होंने अपने आप को राजा ही समझ लिया था। आम लोगों का भी यही कहना है  कि ऐसी घटनाएँ तो सामंती दौर में हुआ करता था। लेकिन अब लोकतंत्र है। किसी को भी दंडित करने के भी नियम-कायदे हैं। ऐसी मनमानी नहीं चल सकती कि किसी को सजा देने के लिए संडास में ही बंद कर दिया जाए।
शराबबंदी की दिशा में बढ़ता छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ को 'धान का कटोरा' कहा जाता है लेकिन हालत यह हो गई है कि इसे कुछ लोग 'दारू की बोतल' भी कहने लगे हैं। अनेक गाँव ऐसे हैं, जहाँ स्कूल नजर नहीं आते मगर, दारू की दुकान जरूर मिल जाती है। दो रुपए किलो चावल खा कर और दारू पी कर बहुत से ग्रामीण टुन्न नजर आते हैं। छत्तीसगढ़ की यही स्थिति बनती जडा रही थी। इसे लेकर यहाँ की महिलाओं में गुस्सा था। वे लगातार प्रदर्शन भी करती रही। इन सब का असर अब जाकर हुआ है। पिछले दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने साफ-साफ कहा कि भले ही हमें राजस्व का नुसकान उठाना पड़े, लेकिन हम शराबबंदी कर के रहेंगे। हालांकि यह काम एकदम से नहीं होगा। धीरे-धीरे होगा, मगर होगा जरूर । वैसे पिछले दिनों सरकार ने निर्णय लेकर 239 शराब दुकानों को तो बंद ही कर दिया है। यह भी निर्णय किया है कि दो हजार से कम आबादी वाले गाँवों में शराब दुकानें नहीं खुलेंगी। सरकार धीरे-धीरे ही सही, अब छत्तीसगढ़ को शराबबंदी की दिशा में ले जा रही है। अगर ऐसा  हो गया तो कोई बड़ी बात नहीं कि देश-दुनिया में छत्तीसगढ़ का एक और खूबसूरत चेहरा सामने आएगा।  शराबबंदी हो जाए तो छत्तीसगढ़ प्रगति के पथ पर और तेजी केसाथ बढ़ेगा, इसमें दो राय नहीं।
पूर्व मुख्यमंत्री जोगी के बेटे की  पिटाई छत्तीसगढ़ हो या अन्य दूसरे कोई प्रांत,हर जगह राजनीति में माफियाओं को बोलबाला है। गुंडे बढ़ रहे हैं। वे लोकतंत्र में जीते हैं तो हैं मगर उन्हें बाहुबल पर ज्यादा यकीन रहता है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के पूर्वमुख्यमंत्री अजीत जोगी के बेटे अमित को मध्यप्रदेश में कुछ गुंडों ने बुरी तरह पीट दिया। वहाँ भाजपा की  सरकार है. अमित प्रदेश हो रहे एक उपचुनाव में प्रचार करने गए थे। दमोह जिले की जबेरा सीट पर उपचुनाव हो रहा है, जहाँ से उनकी ममेरी बहन डा. तान्या चुनाव लड़ रही है। स्वाभाविक था कि अमित बहन के प्रचार के लिए जाते, लेकिन अब राजनीति में सहिष्णुता कम होती जा रही है। हिंसक लोग बढ़ रहे हैं। ये लोग डंडे के सहारे प्रचार करने पर यकीन रखते हैं। हिंसा के कारण अमित की आँखें में गंभीर चोट पहुँची। हाथ भी जख्मी हुआ है। कहते हैं, कि गुंडे लोग स्व. अर्जुन सिंह के बेट अजय सिंह पर हमले की तैयारी में थे। अमित अजय सिंह की कार में सवार थे, इसलिए गलतफहमी में पिट गए। लेकिन इस चक्कर में कुछ भी हो सकता था।
एक राज्य जहाँ पर्चे लीक हो जाते हैं...?
छत्तीसगढ़ शैक्षणिक नक्शे में अभी अपनी जगह नहीं बना सका है। और लगता है शिक्षा माफिया ऐसा होने भी नहीं देगा। पिछले दिनों पीएमटी के पेपर दूसरी लीक होने का मामला सामने आया। पाँच से ले कर बारह लाख रुपयों में ये पर्चे बिके थे। बिलासपुर के पास तखतपुर नामक कस्बे के धर्मशाला में फर्जीवाड़ा चल रहा था. वहाँ छापा मारा गया तो अनेक छात्र-छात्राएँ मिले। इस मामले में कुछ आरोपियों को पकड़ लिया गया है। यह बड़ी सफलता है मगर इन सब कारणों से दूसरे प्रतिभाशाली छात्र प्रभावित होते हैं। पिछले दिनों उस छात्र को पकड़ा गया, जिसने पिछले साल पीएमटी की परीक्षा में टॉप किया था। उसने फर्जी तरीके से परीक्षा दी थी। यानी मुन्नाभाई वाली फिल्म की शूटिंग छत्तीसगढ़ में लगातार चल रही है। व्यावसायिक परीक्षा मंडल की विफलता इस बात का सबूत है कि दाल में काला तो है। विभागीय लोग भी रैकेट में शामिल रहते हैं। प्रश्न यही है कि आखिर वह दिन कब आएगा, जब परीक्षा जैसे मामले में ईमानदारी के साथ काम होगा? फर्जीवाड़ा करके पीएमटी पास करने वाले लड़के कल मेडिकल की पढ़ाई भी फर्जी तरीके से ही करेंगे, और चकमा दे कर निकलते रहेंगे, तो प्रदेश के स्वास्थ्य का क्या अंजाम होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। इसके पहले पीएससी की परीक्षाएँ भी निरंतर खटाई में पड़ती रही है। स्कूलों में पैसे ले कर लोगों को टॉप करने के मामले सामने आ चुके हैं। 
हो गया 'व्हाइट हाउस' का लोकार्पण
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नगर निगम कार्यालय अब अपने नये भवन में लगेगा। 25 जून को महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल जी ने इसको लोकार्पित किया। वास्तु के लिहाज  से यह भवन नयनाभिराम है। अपनी झक्क सफेदी के कारण लोग इसे 'व्हाइट हाउस' कहने लगे हैं। हालांकि यह शब्द चुभता है मगर अब अँगरेजी बहुत से लोगों की आत्मा का हिस्सा भी बनती जा रही है इसलिए किसी को अटपटा भी नहीं लगता। इसमें अनके तरह की आधुनिक सुविधाएँ भी हैं। वक्त-वक्त की बात है। भाजपा के महापौर सुनील सोनी के समय सेयह भवन बनना शुरू हुआ था, लेकिन जब उनके बैठने का समय आया तो चुनाव हो गया और भाजपा हार गई। निगम पर कांग्रेस का क ब्जा हो गया। महापौर डॉ. किरणमयी नायक को यह सौभाग्य मिला कि वे महापौर के रूप में इस नये भवन में विराजमान हो। राष्ट्रपति के हाथों भवन का शुभारंभ हुआ, यह और गौरव की बात रही। उद्गाटन समारोह में राष्ट्रपति ने बड़ी अच्छी बात कही कि हमें गरीबों को झुग्गीवासियों का हित भी ध्यान में रखना चाहिए। यह बात नगरनिगम के महापौर और पार्षदों को गाँठ  बाँध लेनी चाहिए। लोग यही कह रहे हैं कि जब आदमी महलजीवी हो जाता है तो गरीब उसे चुभने लगते हैं। रायपुर नगर निगम इसका अपवाद बने तो बेहतर होगा।

बुधवार, 25 मई 2011

क्योंकि हम ढीठ जो हैं



मई २०११ अंक   

बके मुख पर है कालिख किसको कौन लजाये रे!’ लेकिन हम सबके साथ-साथ अपने को भी लजा रहे हैं, फिर भी हमें लाज नहीं आती। हम पूरी तरह निर्लज्ज हो चुके हैं। 
जब से मैंने होश संभाला; तब से ही भ्रष्टाचार के रोने-गाने की आवाज मेरे कानो में घुलती रही है। संभवतः आपके साथ भी ऐसा ही होता हो।  आपने कभी इस पर विचार किया है कि ऐसा क्यों होता है? शायद इसलिए कि हमारा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सिस्टम पटरी पर ठीक से फीट नहीं किया गया है। जिस दिन इसे फीट कर दिया जायेगा, उसी दिन सब ठीक हो जायेगा। लेकिन इसे ठीक करेगा कौन? क्योंकि सब के मुख पर तो कालिख पुता हुआ है, कौन आयेगा सामने इसे ठीक करने को? आप को विश्वास नहीं होता तो आप सौ व्यक्ति को एक जगह बुलाकर भ्रष्टाचार पर गोष्ठी करवा लीजिए, सौ के सौ व्यक्ति तरह से तरह से भ्रष्टाचार पर आख्यान-व्याख्यान दे देता हुआ चला जायेगा, लेकिन एक भी व्यक्ति उसमें से ऐसा नहीं सामने आयेगा, जो अपने को पहला भ्रष्ट व्यक्ति साबित करे। तो आखिर भ्रष्टाचार करता कौन है? इस प्रश्न का उत्तर कौन देगा? इसका उत्तर कैसे मिलेगा? लगता है सृष्टि की समाप्ति तक इस यक्ष प्रश्न का उत्तर हम नहीं ढूंढ़ पायेंगे। क्योंकि हम ढीठ जो हैं। 

गुरुवार, 19 मई 2011

हवा के साथ

जब से सूरज निकला
जब तक नहीं डूबा
दोड़ता रहता है पैर
बाँसों पर, तनी हुई रस्सियों पर
तारों पर। 
थम जाती है साँस
खिंचती आती आँत
धीरे-धीरे 
पीठ के आस-पास
बंध् जाती है दृष्टि
एक पूरी उम्र
खिंच-खिंच कर
न्यूनतम हो जाती है जैसे! 

- डॉ० शिवशंकर मिश्र  

छत्तीसगढ़ की डायरी

रिश्वत दो वरना फँसा दूँगा....
छत्तीसगढ़ के पुलिस वाले अब शातिर लोगों को गिरफ्तार करने के बजाय खुद गिरफ्तार हो रहे हैं। फिछले एक महीने में दो थानेदार पकड़े गए। ये दोनों महानुभाव लोगों को चमका कर वसूली करने की कोशिश कर रहे थे। अभी हाल ही में पामगढ़ नामक कस्बे में एक थानेदार ने एक व्यक्ति को उसकी बहू की हत्या के आरोप में फँसाने की धमकी देते हुए पचास हजार रुपए माँगे। उस व्यक्ति की बहू ने जहर का कर जान दे दी थी। इतना मुद्दा वसूली के लिए काफी होता है। थानेदार साहब को मौका मिल गया। उन्होंने ससुर से कहा, तुमको बहू की हत्या के आरोप में अंदर कर दूँगा। मामला सुलटाना है तो पचास हजार रुपए देना होगा। ससुर ने फौरन तीन हजार रुपए दे दिए और कहा कि बाकी राशि बाद में दूँगा। उसके बाद ससुर ने हिम्मत कर के 'एंटी करप्शन ब्यूरो' से बात की । ब्यूरो ने सहयोग किया और थानेदार को घेरने की योजना बनाई। थानेदार के पास दस हजार रुपए के साथ ससुर को भेज गिया।और रिश्वतखोर थानेदजार को रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया। थानेदार की जमानत भी नहीं हुई और उसे जेल भेज दिया गया। इस घटना सेदूसरे थानेदार या पुलिस वाले सबक लेंगे, ऐसी उम्मीद तो की ही जा सकती है।
धर्मंप्रचारक पिट गया.......
धर्मप्रचार करना गलत नहीं है। हर धर्म वाला अपने धर्म की विशेषताएँ बता कर लोगों को अपनी ओर खींचने का काम कर सकता है। दिक्कत वहाँ शुरू होती है, जब कोई अपने धर्म का प्रचार करे और दूसरे धर्म की निंदा शुरू कर दे। पिछले दिनों चाँपा नामक कस्बे में एक धर्मप्रचारक प्राचार्य इसी चक्कर में शिव सैनिकों के हाथों पिट गया। एक कालेज में प्राचार्य के पद पर कार्यरत ये सज्जन एक धर्म विशेष के गुरू के रूप में जाने जाते हैं। चांपा में एक व्यक्ति की तबीयत खराब थी। ये प्राचार्य महोदय उसके घर गए और वहाँ बहुत से लोगोंकोजमा करके धर्मोपदेश देने लगे। यहाँ तक तो सब ठीक था, अचानक उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के बारे में अभद्र शब्दों को उपयोग शुरू कर दिया। जब इस बात की जानकारी शिव सैनिकों को लगी तो उन्होंने प्राचार्य महोदय की जम कर ठुकाई की और उन्हें थाने पहुँचा दिया।
नक्सलियों के नाम पर चमकाने की कोशिश
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों कोइतना आतंक फैल चुका है कि छोटे-मोटे गुंडे अब उनकी आड़ में कमाई करने की कोशिशें करने लगे हैं। ताजा मामला रायपुर का है। शिक्षाकर्मी के पद पर कार्यरत चंद्रकात साहू नामक युवक ने तीन लोगोंको अलग-अलग एसएमएस भेजे और सबसे पैसों की मांग की। एक सज्जन को एसएमएस किया कि लाल सलाम, तीन दिन के भीतर दो करोड़ रुपये पहुँचा दो वरना पूरे परिवार को उड़ा दिया जाएगा। चंद्रकात सनकी भी था। उसने एक दूसरे सज्जन को एसएमएस किया कि हम लादेन की मौत का बदला लेंगे। पुलिस वालों ने पता करने की कोशिश शुरू कर दी कि ये कौन है जो नक्सली या आतंकवादी बन कर वसूली का काम कर रहा है। आखिर पता चल ही गया। एसएमएस करने वाला एक शिक्षाकर्मी निकला। इस कुकर्मी के  पास से छह सिम कार्ड भी बरामद किए गए। अब यह नकली नक्सली  अपने खेल के कारण जेल में है ।
अफसरों का स्वर्ग छत्तीसगढ़
इसके पहले भी इस मुद्दे पर चर्चा हो चुकी है मगर क्या करें, दुबारा करना पड़ रहा है। दो दिन पहले फिर एक एस. बाबू नामक करोड़पति दवा नियंत्रक पकड़ा गया। इसके पास से करोड़ों की बेनामी संपत्ति का पता चला है। ये महानुभाव केरल के हैं। इन्होंने छत्तीसगढ़ से अर्जित हराम की कमाई केरल भी भिजवा दी थी। ऐसे एक नहीं अनेक अफसर ऐसे हैं जोबाहरी राज्यों के हैं। वे यहाँ की नंबर दो की कमाई अपने गृह नगर भेज देते हैं। बाबू नामक दवा नियंत्रक की केरल में भी इफरात संपत्ति है। वन विभाग के एक अधिकारी डीडी संत के पास भी अनंत दौलत होने का पता चला है। उनके यहाँ भी छापा पड़ तो पता चला कि इनके भी अनेक बेनामी खाते हैं। बहुत से खाते में मोनालिसा के नाम से है। इसी नाम से ये वन अफसर खाते रहे हैं। इसके पहले भी अनेक अधिकारी पकड़ में आ चुके हैं, जो प्रदेश का नाम रौशन कर रहे हैं, कि छत्तीसगढ़ में अकूत दौलत है, लूट सके तो लूट।
टॉपर तीन साल बाद निकला मुन्नाभाई....
मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म को भला कौन भूल सकता है? फर्जी तरीके से परीक्षा दे कर पास होने वाले मुन्नाभाई कहे जाने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे मुन्नाभाइयों की कमी नहीं है। एक मुन्नाभाई तो सचमुच मेडिकल छात्र ही निकला। तीन साल एक छात्र ने पीएमटी की परीक्षा में टॉप किया था। अखबारों में उसकी तस्वीर छपी थी। उसने बड़ी-बड़ी बातें भी की थीं। पिछले दिनों पता चला कि वह फर्जी छात्र था। खेल करने वाले खेल कर जाते हैं और विभाग सोता रहता है। इस बार पीएमटी की परीक्षा ही रद्द करनी पड़ गई क्योंकि जूलाजी और कैमेस्ट्री के पर्चे इंटरनेट पर उपलब्ध थे। पेपर लीक न हों इसलिए छत्तीसगढ़ व्यावसायिक शिक्षा मंडल ने दक्षिण भारत की एक कंपनी को पेपर सेट करने का ठेका दे दिया था। मामला उजागर हुआ तो पूरी परीक्षा ही रद्द कर दी गई। छत्तीसगढ़ में अधिकारियों मैं बेईमानी करने का जुनून-सा सवार है। पीएससी की परीक्षा में भी कुछ न कुछ अनियमितताएँ होती रहती हैं। हर बार परीक्षा होती है और किसी न किसी गड़बड़ी के कारण छात्र कोर्ट की शरण में चले जाते हैं।
फैज अहमद फैज की बेटी आई छत्तीसगढ़
सन् दो हजार ग्यारह अनके साहित्यकारों की जन्म शताब्दी वर्ष है। अज्ञेय, नागार्जुन केदारनाथ अग्रवाल, शमशरेबहादुर सिंह एवं गोपालसिंह नेपाली(हिंदी), फैज़ अहमद फैज़ एवं मजाज़  (उर्दू) तथा श्री श्री (तेलुगु)। पूरे देश में इन साहित्यकारों की जन्म शताब्दियाँ मनाई जा रही है। छत्तीसगढ़ के प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान ने 14-15 मई को भिलाई में फैज और केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में बड़ा आयोजन किया। इसमें पाकिस्तान से भी लेखक-आलोचक भिलाई पधारे। सबसे बड़ी बात यह रही कि महान शायर फैंज की बेटी मुनीज़ा  हाशमी भी आई और अपने पिता से जुड़े रोचक संस्मरण सुनाए। फैज प्रगतिशील शायर ने अन्याय के खिलाफ लिखते थे इसलिए वे वर्षों तक जेल में भी रहे। मुनीज़ा  उन दिनों की याद करते हुए बीच-बीच में भावुक भी हुई। अनेक वक्ताओं ने फैज पर अपने विचार व्यक्त किए मगर पाकिस्तान से पधारे लोगों को सुनना एक अभूतपूर्व अनुभव रहा। ''हम मेहनत कश इसदुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे''....जैसी कालजयी कविता लिखने वाले फैज के बारे में सुन कर उपस्थित हिंदी समाज को एक बड़े शायर की शायरी और संघर्ष से परिचय हुआ और लोगों को समझ में आया कि बड़ा शायर बनने के लिए ''उँगलियों को  खूनेदिल में भी डुबोना'' पड़ता है।

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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

छत्तीसगढ़ की डायरी

छत्तीसगढ़ की पुलिस ने फिर दिखाई मर्दानगी..
अपनी गली में एक पशु भी शेर होता है। कुछ यही हाल है अपनी पुलिस का थाने में कोई चला जाए तो वर्दी धारी उस पर ऐसे पिल पड़ते हैं कि पता नहीं सामने वाला कितना बड़ा गुनाहगार है। गुनाहगार के साथ दुब्र्यवहार तो चलो समझ में भी आता है, मगर जिसकी कोई गलती नहीं, उसे जब पुलिस के लोग पीटते हैं, तो लगता है, ये लोग ही सबसे बड़े अपराधी हैं। पिछले दिनों औद्योगिक नगर कोरबा की पुलिस ने जो कोबरा रूप दिखाया, उसे सुनकर लोग दहल गए। एक महिला बेचारी अपने पति की गुशुदगी की रिपोर्ट लिखाने गई थी, मगर वह तो जैसे गुंडों के बीच ही फँस गई। पाँच शराबी पुलिस कर्मियों ने उसको मारा-पीटा, उसके साथ बदसलूकी की। पुलिस के आला अफसर बोल रहे हैं कि महिला के साथ मारपीट नहीं की गई। महिला के शरीर पर जो निशान धिख रहे हैं, क्या वह भूत ने बना दिए? नैतिकता तो यह कहती है, कि पुलिस के आला अफसर स्वीकार करें कि हाँ, गलती हुई हैं। दोषी लोगों पर कार्रवाई की जाएगी, लेकिन ऐसा करके शायद पुलिस छोटी हो जाएगी। इसलिए वो बड़ी बने रहना चाहती है? छत्तीसगढ़ में पुलिस अत्याचार के मामले तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। पलिस निरंकुश हो रही है। लोग कहने लगे हैं, कि जिस प्रदेश का पुलिस-मुखिया लेखक हो, उसके समय में भी अगर पुलिस में करुणा-संवेदना-सहानुभूति आदि मानवीय तत्व नहीं जग सके, तो कब जगेंगे?
खुदकशी के बढ़ते मामले
छत्तीसगढ़ में पुलिस-अत्याचार के मामले बढ़ रहे तो लोगों में खुदकशी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। और इसके पीछे भी दुभाग्यवश प्रशासनिक तंत्र ही कारण है। प्रशासन इतना निर्मम होता जा रहा है, कि वह जिंदा आदमी की मांग पर कोई विचार नहीं करता और जब वह त्रस्त होकर आत्महत्या कर लेता है तो मुआवजा देने सरकार पहुँच जाती है। पिछले दिनों एक किसान ने आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि दस साल से उसकी जमीन का मुआवजा नहीं मिल पा रहा था। लेकिन सबसे दिल दहला देने वाली घटना घटी है भिलाई में। जहाँ एक परिवार के चार सदस्यों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली। माँ, तीन बहनें मर गईं। एक युवक बच गया है। जहर उसने भी खाया था। उसे अस्पताल में भरती किया गया है। इस परिवार की मांग थी, कि परिवार के मुखिया जो कभी भिलाई इस्पात संयंत्र में काम करते थे, उनकी अकाल मौत होने के कारण उनके बेटे को अनुकम्पा नौकरी दी जाए। लेकिन नौकरी तो दूर प्रबंधन उन्हें घर से ही बेदखल करने की तैयारी कर रहा था। इस परिवार ने क्षेत्र की सांसद सेभी गुहार लगाई मगर वो हेमामालिनी के नृत्य कार्यक्रम में भिड़ी रहीं। आखिरकार इस परिवार ने खुदकशी कर ली। परिवार ने मरने के पहले तीन-तीन पत्र लिखे जिसमें उसने अपना पूरा दुखड़ा बयान किया है। अब बे युवक को नौकरी देने की बात की जा रही है। ऐसी नौकरी का क्या औचित्य जो चार-चार शहादतों के बाद मिलती हो? कांग्रेस इस मामले को लेकर मानवाधिकार आयोग जाने वाली है। अनेक सामाजिक संगठन इस हादसे की निंदा कर रहे हैं। मगर ये हादसे एक सबक की तरह आते हैं कि अगर दुखी लोग खुदकशीकी धमकी दे रहे हैं तो उसे हल्के से न लियाजाए। जब जीने का कोई आधार ही न बचे तो मरना अंतिम विकल्प होता है। बावजूद इसके कि आत्महत्या कमजोरी है, कायरता है, लेकिन मजबूर आदमी या परिवार अंतिम रास्ते के रूप में यही विकल्प चुनता है।
काँग्रेस में आई जान, पटेल को मिली कमान
छत्तीसगढ़ काँग्रेस में पहली बार जान लौटती दीख रही है। इस बार नए प्रदेशाध्यक्ष के रूप में नंदकुमार पटेल का हाईकमान ने चयन किया है। सही समय पर ओबीसी कार्ड खेला गया है। यही कारण है, कि पटेल की नियुक्ति को मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल और अजीत जोगी जैसे अलग-अलग गुट के नेताओं ने भी प्रसन्नता के साथ स्वीकार किया है। खुद श्री पटेल यह मान कर चल रहे हैं, कि छत्तीसगढ़ में अब विपक्ष मजबूत होगा। वे ऐसा नहीं कह रहे हैं, कि इसके पहले यहाँ विपक्ष कमजोर था, मगर जैसा भी था, या अभी है, वह सबके सामने हैं। आपस की गुत्थागुत्ती में उलझी पार्टी को नंदकुमार पटेल जोड़ सकें तो यह उनकी बड़ी सफलता होगी। कहने की जरूरत नहीं, कि विपक्ष अपनी सामाजिक छवि को बेहतर बनाने में बहुत पीछे हैं। लेकिन अब शायद ऐसा न हो। नंदकुमार पटेल प्रदेश के पहले गृह मंत्री रह चुके हैं। रायगढ़ जिले से आते हैं। सतह से उठ कर राजनीति करने वाले रहे हैं इसलिए काँग्रेस कार्यकर्ता बहुत आशावान है कि इस बार पटेल जी के अध्यक्ष बनने के बाद काँग्रेस शायद कुछ बेहतर प्रदर्शन कर सके।
भाजपा की सफल रैली...
राजधानी में शनिवार को भाजपा ने केंद्र सरकार के विरोध में सफल रैली निकाली और सप्रे शाला मैदान में सभा की। राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी और राजनाथ सिंह जैसे बड़े नेताओं की उपस्थिति में प्रदेश भर से आए हजारों कार्यकर्ताओं को दिशा मिली। गड़करी ने केंद्र के भ्रष्टाचार पर जमकर चुटकिया लीं। उन्होनें कहा, कि काँग्रेस का भ्रष्टाचार सबसे बड़ा धारावाहिक हो गया है। श्री गड़करी और राजनाथ सिंह समेत मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया । प्रदेश के कोने-कोने से कार्यकर्ता पहुँचे थेे। इसरैली से कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हुआ। राष्ट्रीय नेताओं ने मुख्यमंत्री रमन सिंह की सराहना भी की। लेकिन इस सभा को ले कर काँग्रेसी काफी नाराज थे। न केवल काँग्रेसी वरन् खिलाड़ी भी। काली पट्टी बांधकर एनएसयूआई न विरोध करने की कोशिश की मगर उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
प्रदूषण बनाम खरदूषण
प्रदेश में औद्योगिक विकास हो, इससे किसी को इंकार नहीं है। लेकिन यह विकास विनाश बन कर लोगों के जीवन को, स्वास्थ्य को ही निगलने लगे, तो विकास चुभने लगता है। रायपुर और आसपास अनेक उद्योग लगे हैं, उनके प्रदूषण के कारण आसपास की खेती चौपट हो रही है और लोगों का स्वास्थ भी गिर रहा है। यही हाल रायगढ़ के लोगों को है। रायगढ़ क्षेत्र भी औद्योगिक नक्शे में शुमार हो चुका है।  लेकिन इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। वहाँ के एक संयंत्र के विरुद्ध लोगों को सड़कों पर उतरना पड़ा। लोग एलर्जी से, दमे से तथा अनेक बीमारियों से परेशान है। संयंत्र का प्रदूषण खरदूषण जैसे राक्षस की तरह जीना दूभर कर रहा है। पिछले दिनों लोग कलेक्टर से मिले। शिकायत की तो कलेक्टर ने कुछ पंप सील करवा दिए मगर बाद में पता चला कि संयंत्र प्रबंधन ने पंप को खोल लिया । यह गंभीर अपराध है।

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

गोचर भूमि बचाना, यानी छत्तीसगढ़ को बचाना

नईदुनिया, रायपुर के २५ मार्च के अंक में प्रकाशित लेख..

सोमवार, 21 मार्च 2011

छत्तीसगढ़ की डायरी

पुलिसवालों के अत्याचारों के कारण 
भी मौका मिल जाता है नक्सलियों को
पुलिसवाले किसी का घर जला दें। उसके साथ अत्याचार करें और फिर यह सोचे कि नक्सली शांति के साथ बैठे रहें, तो यह असंभव है। पुलिस-दमन का खामियाजा पुलिस को भुगतना ही पड़ता है। शिकायत मिली है, कि पिछले दिनों बस्तर के  नारायणपुर-ओरछा मार्ग पर स्थित एक गाँव में पुलिस और सीआरपीएफ की टीम किसी सुखराम को खोजने गई। घर पर वह नहीं मिला तो पुलिसवालों ने उसका घर ही जला दिया। और पाँच लोगों को पकड़ कर ले गई। घर में रखा खाने-पीने का सारा सामान जल गया। यह आरोप ग्रामीणों  ने ही लगाया है। इस घटना के बाद से सुखराम का भी अता-पता नहीं है। किसी को खोजने का यह क्या तरीका है कि उसके घर को ही पूँक दिया जाए? ऐसा काम तो गुंडे या माफिया करते हैं। पुलिस से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति आनंदनारायण मुल्ला जी ने कभी कहा था, पुलिस यानी वर्दीधारी गुंडों का संगठित गिरोह। क्या पुलिस बिल्कुल वैसी होती जा रही है? इसमें दो राय नहीं कि, छत्तीसगढ़ में पुलिस का दमन बढ़ता जा रहा है। किसी घर के किसी सदस्य की तलाश में पुलिसवाले घर के किसी भी सदस्य को उठा कर ले जाते हैं। और इस पर पुलिस सोचे कि उसके खिलाफ प्रेम उपजेगा, तो यह असंभव है। नक्सलियों को तो मौका चाहिए। वे बदला लेने के लिए तैयार रहते हैं। पुलिस अत्याचार की ताजा घटना के बाद एक बार फिर पुलिस और सीआरपीएफ वाले उनके निशाने पर आ जाएँगे। इसलिए पुलिस को भी फूँक-फूँक कर कदम रखना चाहिए।
छत्तीसगढ़ में विपक्ष यानी भाजपा की टीम-बी...?
ये हम नहीं कह रहे हैं, जोगी जी कह रहे हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के मुद्दे बेहद सटीक होते हैं। उनका उत्तर खोजना मुश्किल हो जाता है। अभी एक पत्र उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेता प्रतिपक्ष को भेजा है। देखें, नेता प्रतिपक्ष क्या सफाई देते हैं। मामला यह है, कि विधानसभा के दौरान कांग्रेस ने एक बैठक करके नगरीय प्रशासन मंत्री राजेश मूणत के बहिष्कार का निर्णय लिया था। बैठक में जोगी शामिल नहीं हो सके थे, लेकिन उन्होंने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा था, कि इससे कांग्रेस मजबूत होगी। लेकिन कुछ दिन बाद अचानक नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे ने बहिष्कार का निर्णय वापस ले लिया। इसपर जोगी जी भड़क गए और चौबे जी को एक कड़ी चिट्ठी भेजी है। उन्होंने दो टूक लिखा है, कि यही कारण है कि लोग काँग्रेस को भाजपा की टीम-भी भी कहने लगे हैं। जोगी जी का विरोध जायज है। बिना बैठक बुलाए नेता प्रतिपक्ष ने बिना बैठक बुलाए बहिष्कार वापसी का निर्णय कैसे ले लिया? यही एक ऐसा निर्णय ता, जिससेकांग्रेस की कुछ इमेज बन रही थी। वरना तो राज्य में विपक्ष की जो हालत है, वह किसी से छिपी नहीं है। लोग कहने लगे हैं, कि भाजपा ने विरोधियों में से कुछ को सेट कर लिया है। जोगी जी ने चिट्ठी लिख कर अगर गुस्से का इजहार किया है तो गलत नहीं किया है।
पढऩे आए हैं या गुंडागर्दी करने?
मेडिकल छात्रों से उम्मीद की जाती है, कि वे पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएँगे, क्योंकि उन्हें पढ़ाई पूर्ण करके देश की सेवा करनी है। लेकिन माहौल ऐसा बन जाता है, कि छात्र अपना लक्ष्य ही भूल जाते हैं। पिछले दिनों डेंटल कालेज के छात्र अपना वार्षिकोत्सव मना रहे ते तो वहाँ मेडिकल कालेज के कुछ छात्र चले आए और हुड़दंग मचाने लगे। मारपीट पर उतारू हो गए। उनका गुस्सा इस बात को ले कर था, कि वार्षिकोत्सव में उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया। अरे, भाई, नहीं बुलाया तो नहीं बुलाया। ये क्या बात हुई कि किसी को कोई निमंत्रण न दे तो दादागीरी करने लगे कि हमें निमंत्रण क्यों नहीं दिया? नहीं दिया, उनकी मर्जी। लेकिन मेडिकल छात्रों को तो यह बताना था, कि हम लोग भी कुछ हैं। आखिर वहीं हुआ, कुछ छात्र गिरफ्तार किए गए। माता-पिता का सिर नीचा हुआ। अब ये छात्र हॉस्टल से भी हटाए जाएँगे। घटना के बाद अभिभावक बच्चों को समझा रहे हैं, कि अपना ध्यान केवल पढऩे पर ही लगाएँ। अगर लगा सकें तो...।
भाई भाई न रहा
वैसे तो हर काल में भाई-भाई के बीच स्वार्थ की जंग होती रही है। इसलिए आजकल कोई घटना हो जाए तो यह नहीं कहा जा सकता कि कलजुग आ गया है। स्वार्थ का काला साया जब भी दिमाग पर छाता है तो विवेक मर जाता है। तब क्या भाई, क्या बहिन और क्या माता-पिता। पिछले दिनों रायपुर के एक चंदन तस्कर की हत्या हो गई थी। अब उसकी जान लेने वाला शूटर पकड़ाया तो उसेने ही बताया,  कि तस्कर के भाई ने ही हत्या के लिए आठ लाख रुपए दिए थेे। इस तरह की एक नहीं अनेक घटनाएँ यही बताती हैं, कि समाज में धनलोलुपता बढ़ी है और और सहनशीलता घटी है। ऐसी हत्याएँ इसी कारण होती हैं।
छत्तीसगढ़ की ''कामधानी''.....
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर है और  न्यायधानी है बिलासपुर। अब दोनों शहर कामधानी में बदलते जा रहे हैं। आए दिन यहाँ सेक्स रैकेट पकड़े जाते हैं। वैसे केवल ये दो शहर ही ऐसे नहीं है, जहाँ सेक्स का धंधा होता हो। ये कारोबार रायगढ़ से ले कर दुर्ग-भिलाई तक पसरा हुआ है। अब तो महानगरों की वेश्याएँ यहाँ पैकेज पर आती है। बीस-पच्चीस हजार तक लेती हैं। छत्तीसगढ़ में धनपतियों की संख्या बढ़ रही है। इनका काला धन बाहर कैसे निकले, इस काम को कॉलगर्लें अंजाम दे रही हैं। कुछ लोग उद्योग लगा रहे हैं, तो कुछ लोग देह व्यापार में संभावना तलाश रहे हैं। इसमे बेरोजगार लड़किया हैं तो दलाल भी। जो राजधानी बनने के पहले भी छत्तीसगढ़ में धंधेबाज लोग थे, लेकिन राजधानी बनने के बाद यह व्यापक हो गया है।
कंजूसी की हद है जान ही दे दी..
इकलौते बेटे ने मोटर साइकिल खरीद ली तो दुखी पिता ने आत्मदाह कर लिया। महासमुंद जिले के एक गाँव की घटना है। हरिकीर्तन नामक व्यक्ति के  शादीशुदा बेटे ने पिता की असहमति के बावजूद मोटर साइकिल खरीद ली। बस, पिता का गुस्सा भड़क गया। उसने पैरावट में आग लगा ली और उसमें कूद गया। इस व्यक्ति के बारे में लोगों का यही कहना था, कि हरिकीर्तन गुस्सैल स्वभाव का था और कंजूसकिस्म का भी था। गुस्सा आदमी की जान भी ले सकता है। इसलिए बहुत सोच-समझ कर कदम उठाना चाहिए लेकिन अब यह बात समझने के लिए हरिकीर्तन जी मौजूद नहीं है। यह दूसरे लोगों के लिए सबक है कि भाई, गुस्से में अपने को या दूसरे को नुकसान पहुँचाने से क्या फायदा। जो हो गया, उसे नियति मान कर संतोष कर लेना चाहिए। 

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ की डायरी

सबको खुश करने वाला बजट
छत्तीसगढ़ की रमन सरकार का हर कदम इतना सधा हुआ रहता है,कि विपक्ष केवल कोसता ही रह जाता है। कोशिश करता है, कि आलोचना की कुछ गुंजाइश तो निकले लेकिन आमजन खुश तो सरकार गदगद.  चाहे एक-दो रुपया किलो चावल हो या सस्ती दाल। नमक, साइकल, चरणपादुका वितरण आदि अनेक योजनाएँ हैं जिससे आम गरीब आदमी खुश है। अभी २६ फरवरी को रमन सरकार ने अपना सालाना बजट पेश किया। इसमें भी रमन सरकार ने सबको खुश करने का फार्मूला निकाला। क्या किसान और क्या व्यापारी, हर कोई खुश हो गया। किसानों के हित की अनेक घोषणाएँ की तो चेक पोस्ट ही खत्म कर दिया। प्रोफेशनल टेक्स भी समाप्त। गोबर-गोमूत्र से बनी वस्तुओं को कर मुक्त कर दिया। सात और शहरों में पोलिटेक्निक कॉलेज खुलेंगे। बिलासपुर में एक विश्वविद्यालय भी खुलेगा। विकलांगों के लिए भी अनेक लाभकारी घोषणाएँ हुई हैं। बस्तर का भी खास ध्यान रखा है। वहाँ आदिवासियों को मुफ्त में एक किलो चना दिया जाएगा। एक नई हिंदस्वराज पीठ की स्थापना  होगी तो संस्कृत को प्रोत्साहन देने के लिए एक लखटकिया सम्मान भी शुरू करने की घोषणा की गई है। ऐसी अनेक घोषणाएँ की गई है, जिससे सरकार अंत्योदय के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है। ऐसी ही रणनीति पर सरकार चलती रही तो वोट बैंक इनके हाथ से भला कैसे फिसल सकता है?  
और इधर काँग्रेसी आपस में भिड़े हैं...
उधर रमन सरकार जनहित पर ध्यान केंद्रित करके लोगों का दिल जीतने में लगी है, वहीं काँग्रेसी बेचारे अभी आपस में ही भिड़े हुए हैं। पिछले दिनों हुए उपचुनाव में काँग्रेस हार गई। संजारी बालोद के उपचुनाव में पराजित प्रत्याशी इस बात से दुखी है कि वह अपने जिन वरिष्ठ नेताओं को चाचा और बाबू कहता था, उनसे पूरा सहयोग नहीं मिला। अजीत जोगी तो चुनाव प्रचार करने ही नहीं गए। जोगी जी ने भी मजेदार बात कही। उन्होंने कहा कि प्रत्याशी मेरे पास आया था, उसने धन माँगा तो उसे धन दे दिया गया। तन-मन का सहयोग मांगा होता तो वह भी दिया जाता। पराजित प्रत्याशी कह रहा है, कि बड़े नेता आपस में भिड़ते रहे और मैं बलि का बकरा बन गया। जो भी हो, इस चुना की पराजय से एक बार फिर काँग्रेस को आत्ममंथन का मौका मिला है, कि वह सोच कि छत्तीसगढ़ में धीरे-धीरे वह हाशिये पर क्यों जा रही है। हर बार की तरह इस उपचुनाव में भी काँग्रेस की आंतरिक गुटबाजी साफ नजर आ रही थी।
फिर शराबबंदी के खिलाफ आंदोलन
छत्तीसगढ़ में शराब की नदियाँ बह रही हैं,कहना गलत न होगा। अधिकांश गाँव और शहर इसकी चपेट में हैं। इसके विरुद्ध आंदोलन भी होते हैं, लेकिन शराब दूकान बंद कराने में सबको पसीना आ जाता है। आंदोलन की इस कड़ी में अब दुर्ग के पास के तीन गाँव जगे हैं। उन्होंने कलेक्टर को ज्ञाापन दिया है और चेताया है कि शराब भट्टी नहीं हटी तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। धनोरा-खम्हरिया गाँव के बीच खुली शराब दूकान के कारण क्या महिलाएँ और क्या पुरुष सबका आना-जाना मुश्किल हो गया है। महिलाएँ ज्यादा परेशान न रहती है। और यह सिलसिला दस-पंद्रह वर्षों से चल रहा है। आखिर महिलाओं ने प्रेरित किया तो पुरुष भी उठ खड़े हुए। सरपंच भी जगे। देखना यह है कि अब जनता का प्रतिरोध जीतता है,कि शराब का मुनाफा  
चमत्कार को नमस्कार
इस देश में फरजी लोगों की भरमार है। फरजी तांत्रिक, फरजी भविष्यवक्ता लेकिन कुछ लोग आज भी अपनी सिद्धि के बल पर ऐसा प्रामाणिक प्रदर्शन करते हैं, कि लोगों की श्रद्धा के पात्र बन जाते हैं। पहले रायपुर में और अब राजिम में विराजमान पंडोखर बाबा की बड़ी चर्चा है। उनके पास जो कोई जाता है, प्रसन्न हो कर ही लौटता है। इनके पास पता नहीं क्या सिद्धि है कि एक-एक बात सही बता देते हैं। लोग जो समस्या ले कर उनके पास पहुँचते हैं, वहीं समस्या बाबा के पास पहले से ही कागज पर लिखी हुई रहती है। एक व्यक्ति को उन्होंने बताया कि तुम्हारे ऊपर इतने लाख और इतने रुपए का कर्ज है। वह आदमी चकरा गया। अनेक उदाहरण लोग बता रहे हैं। जो जा रहा है, वह हैरत से भर कर लौटता है। इसका मतलब साफ है, कि कोई न कोई ऐसी विद्या तो है जिसके सहारे कोई व्यक्ति मन की बात को पढ़ लेता है। दुर्भाग्यवश अब पंडोखर बाबा जैसे लोग नहीं के बराबर हैं। 
राजिम कुंभ के बहाने संस्कृति
रायपुर से चालीस किलोमीटर दूर महानदी के तट पर बसा कस्बा राजिम अब पूरे देश में जाना जाता है। यहाँ हर साल कुम्भ भरता है। पहले इस कुंभ शब्द पर अनेक लोगों पर आपत्ति हुआ करती थी,लेकिन धीरे-धीरे कुंभ ऐसा लोकप्रिय हुआ कि अब देश भर के साधु-संत यहाँ आ कर धूनी रमाते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे शुरू किया। वह दिल से सहयोग भी करती है। पूरी व्यवस्था करती है। राजिम कुंभ के बहाने अब यहाँ हर साल सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होता है। छत्तीसगढ़ के कलाकारों को अपनी कला दिखाने का एक मंच मिल जाता है। बाहर के भी अनेक कलाकार यहाँ आते हैं। इस सांस्कृतिक आदान-प्रदान से छत्तीसगढ़ की ख्याति दूर-दूर तक फैल रही है। देश की राजधानी दिल्ली तक राजिम कुंभ का प्रचार किया जाता है। उत्तरप्रदेश समेत अन्य राज्यों के अनेक प्रख्यात संत प्रतीक्षा करते हैं, कि कब राजिम कुंभ लगे और वे धूनी रमाने पहुँच जाएँ।
पारिवारिक सहिष्णुता का पतन...
क्या शहर क्या गाँव, आपसी सौहार्द धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। अनेक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। पिछले दिनों राजधानी में एक पति ने पत्नी के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया और फिर खुद जहर खा लिया। दोनों की आपस में अनबन थी। सुलह कराने की कोशिशें भी हुई लेकिन आपसी अहम के कारण बात नहीं बनी। दोनों अलग-अलग रहने लगे। पिछले दिनों पति पत्नी के पास पहुँचा और घर चलने का आग्रह किया। पत्नी नहीं मानी तो पति ने गुस्से में आ कर उसपर तेजाब फेंक दिया। अपने आप में यह मूर्खता है, मगर गुस्से में बहुत से लोग तेजाब का सहारा ले लेते हैं। बाद में पति को ग्लानि हुई या पुलिस का भय, उसने भी जहर खा लिया। यह पहली घटना नहीं है, कि इस कालम में चिंता की जा रही है। आए दिन ऐसी घटनाएँ होती रहती है, जिसमें पारिवारिक असहिष्णुता के कारण लोग एक-दूसरे की जान  लेने पर हैं। राजधानी में ही एक पत्नी अपने पति से त्रस्त हो कर अपनी बेटी के साथ रेल से कट मरी। खुद की जान ले ली और और एक मासूम को भी मरने पर मजबूर कर दिया।

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ की डायरी

ये छत्तीसगढ़ है... यहाँ तो 
नक्सलियों की 'भी' चलती है..

नक्सलियों ने अठारह दिन पहले जिन पाँच जवानों को अगवा किया था, उन्हें स्वामी अग्निवेश और सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा आदि दो हजार लोगों की उपस्थिति में अंतत: रिहा कर दिया गया। बस्तर के घने जंगलों के बीच एक समारोह हुआ। जहाँ नक्सलियों ने बाजे-गाजे के बीच अगवा पुलिस जवानों को रिहा किया। इस शर्त के साथ, कि जवान पुलिस की नौकरी छोड़ देंगे। हालांकि बाद में इस शर्त का कोई कास असर दिखा नहीं। क्योंकि जवान उम्र के इस पड़ाव में अब नई नौकरी कहाँ से लाएँगे। इस रिहाई के बाद सोचने वाली बात यही है कि छत्तीसगढ़ में सरकार कहाँ है? नक्सलियोंकी ही चलती है। लगता है यहाँ एक तरह से नक्सलियों की ही सरकार चल रही है। सरकारतो मूक दर्शक बनने पर मजबूर हो गई है। यह एक तरह से विफलता ही है लेकिन अभी गेंद नक्सलियों के पाले में है। नक्सलियों को हीरो बनाने वाले स्वामी अग्निवेश की उपस्थिति में नक्सलियों ने जवानों को रिहा करके यह संदेश दे दिया है कि वे सरकार को कुछ नहीं समझते। ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री ने नक्सलियों से बातचीत के लिए हामी भरी है, लेकिन क्या नक्सली हथियार छोड़ देंगे? क्या वे मुख्यधारा में शामिल होंगे? अगर ऐेेसा हो सके तो बड़ी बात है लेकिन ऐसा कुछ दीखता नहीं। एक ओर नक्सली अगवा जवानों को रिहा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ हिंसा और तोडफ़ोड़ का खेल भी खेल रहे हैं।
विनाश के विरुद्ध विकास की लड़ाई
नक्सली बस्तर में उत्पात मचाते ही रहते हैं। किसी भवन को उड़ा देना, किसी की हत्या कर देना उनके लिए बाएँ हाथ का खेल है। पाँच अगवा जवानों को छोड़ देने का मतलब यह नहीं है कि उनके भीतर करुणा का उदय हो गया है। इस बहाने मीडिया में वे छाए रहे। पिछले दिनों नक्सलियों ने बस्तर के एक रमणीय स्थल चित्रकोट में स्थित एक पुलिस चौकी को उड़ा दिया, लेकिन सबसे प्रेरक बात यह हुई कि चौबीस घंटे बाद ही चौकी शुरु कर दी गई। जनता ने ध्वस्त चौकी के निर्माण में अपना पसीना बहा दिया। यह घटना इस बात का सबूत है कि अगर विध्वंस अपना काम करता है तो सृजनधर्मी भी पीछे नहीं हटते। बस्तर के आम लोग नक्सलियों की गतिविधियों के पक्षधर नहीं है। इसके पहले भी अनेक गाँवों की महिलाओं एव लोगों ने नक्सलियों के विरुद्ध जुलूस निकाले, प्रदर्शन किए। यह उल्लेखनीय घटना है। आज जब नक्सली भय के पर्याय बन चुके हैं, तब ग्रामीण सामने आकर विध्वंस के विरुद्ध विकास का पसीना बहाते हैं, तो लगता है, कि अन्याय के खिलाफ खड़े होने वाले लोग भी जिंदा हैं।
लूट सके तो लूट...
छत्तीसगढ़ सरकार के दो चेहरे सामने आते रहते हैं। एक तरफ वह जनविकास की बात करती है,तो दूसरी तरफ जनता के पैसों से अय्याशी के सामान भी जुटाने में संकोच नहीं करती। फिछले दिनों लोगों को यह जान कर बड़ा अचरज हुआ कि जनता के पैसों से विधायकों एवं मंत्रियों को वाशिंग मशीन, ओवन और डिनर सेट बाँटे गये। ये पैसे सीधे-सीधे जनता के पैसे थे। इनमें किसानों को पैसा था, सिंचाई का पैसा था और सड़क बनाने केलिए जो पैसे आए थे, उन पैसों से विधायकों केलिए उपहार खरीदे गए। सूचना के अधिकार के तहत लोगों ने जो जानकारियाँ हासिल की, उससे ये सब खुलासे हुए। इस पाप में पक्ष और विपक्ष दोनों समान रूप से भागीदार हैं। यानी जनता को लूटने में विपक्ष भी पीछे नहीं है। वैसे बीच यह चर्चा आम है कि विपक्ष बिका-बिका-सा लगता है क्योंकि सरकार के खिलाफ उसके उग्र तेवर नजर ही नहीं आते। एक कवि ने इस लूट पर कुछ इस तरह से तुकबंदी की है
जनता की ही माल है, लूट से तो लूट।
बाद में तू पछताएगा, जब कुरसी जाएगी छूट।।

वेलेंटाइन डे.....
14 फरवरी को वेलेंटाइन डे रहता है। लेकिन लगता है युवा पीढ़ी के कुछ बिगड़ैल प्रतिनिधि रोज वेलेंटाइन डे के ही मूड में रहते हैं। इसीलिए रायपुर, बिलासपुर और भिलाई के कुछ बड़े-बड़े बाग-बगीचों में युवक-युवतियाँ इश्क लड़ाते मिल जाते हैं। पुलिस का या कुछ सामाजिक संगठनों का दबाव न रहे तो ये लोग खुल्मखुल्ला प्यार (?)करने पर उतारू हो जाएँ। पिछले दिनों ऐसे ही कुछ प्यारातुर जोड़ों को राजधानी से तीस किलोमीटर दीर भिलाईनगर की पुलिस ने पकड़ा। एक-दो नहीं, पूरे बीच जोड़े। ये लोग शायद वेलेंटाइन डे का पूर्वाभ्यास कर रहे थेे। इन सबको पुलिस पकड़ कर थाने ले गई। वहाँ इनके माता-पिताओं को बुलाया गया। युवा जोड़ों ने माफी मांगी तब जा कर उन्हें छोड़ा गया। अब इतना सब होने के बाद युवकों ने माता-पिता की इज्जत की कितनी परवाह की, कितनी शर्मिंदगी महसूस की, इसका तो पता नहीं चल सका, लेकिन लोगों को विश्वास है कि ये जिस तरह की हवा बह रही है, उसे देखते हुए तो यही लगता है, कि ये लोग सुधरने से रहे और वेलेंटाइन डे के दिन एक बार फिर छिप कर ही सही, इश्क का इजहार करने से बाज नहीं आएंगे।
पीएससी है कि मजाक...?
छतत्तीसगढ़ बनने के बाद ही यहाँ लोक सेवा आयोग का गठन भी हो गया था। लेकिन इन दस सालों में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि आयोग ने साफ-सुथरा काम किया हो। हर बार विवाद की नौबत आती रही। कभी रिश्वतखोरी, तो कभी अनियमितता, तो कभी कोई गंभीर त्रुटि। हर बार जब परीक्षा होती है, तो उसके साथ मामला हाईकोर्ट में पहुँच जाता है। कभी विज्ञापन में त्रुटि तो कभी कुछ और। त्रस्त छात्रों ने दो दिन पहले मोमबत्ती जुलूस निकाल कर आयोग के खिलाफ प्रदर्शन किया। छात्रों ने मांग की कि अगर आयोग को चला नहीं सकते तो इस भंग ही कर दिया जाए। अब छत्तीसगढ़ के छात्र परीक्षा देने केलिए मध्यप्रदेश या झारखंड जाने का मन बना रहे हैं। छात्रों का कहना है कि अगर सचमुच गंभीरता के साथ आयोग को संचालित करना है तो इसका एक वार्षिक कैलेंडर बनाया जाए। परीक्षा की तिथि घोषित की जाए। और सबसे बड़ी बाद ऐसे लोगों को बिठाया जाए, जिनमें कुछ समझ हो। अनुभव हो। अनुभवहीनता का ही नतीजा है कि पीएससी की हर परीक्षा विवादास्पद हुई है।

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

ललित शर्मा यानी ब्लॉगर नंबर वन.....

हिंदी चिट्ठाकारों में ललित शर्मा जाना-पहचाना नाम है. श्री शर्मा वैसे भी नंबर वन रहे है. लेकिन अब उन पर का ठप्पा भी लग गया है. जी हाँ, चिट्ठाजगत की शीर्ष-चालीस की सूची में अब श्री ललित शर्मा नंबर वन में पहुँच गए है. ललित की मेहनत, लगन, ईमानदारी और जनसहयोग भावना किसी से नहीं छिपी है. लोगों ने उन्हें रस्ते से हटाने की कोशिशे की, मगर वे डटे रहे. किसे के हटाने से चट्टान कब खसक सकी है? आज नतीजा सामने है.पिछले दिनों छत्तीसगढ़ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ने ललित को श्रेष्ठ ब्लागर का खिताब भी प्रदान कर सम्मानित किया था. एक कार्यक्रम में एक और नंबर वन ब्लॉगर समीरलाल का भी हमने सम्मान किया था. किसी कारणवश समीर रायपुर पहुँच नहीं सके थे. अब लग रहा है, कि हमने ललित शर्मा का सम्मान करके कोई गलती नहीं कि, क्योंकि वे भी नंबर वन हो गए है. आज ''चिट्ठाजगत'' की सूची में सबसे ऊपर कोई है तो एक छत्तीसगढ़िया है. ललित को इस सूची में देखना हम लोगों के लिये गर्व की बात है. मैं कभी वहाँ पहुच ही नहीं सकता, लेकिन मुझे पता था कि ललित एक दिन टाप-40 में भी टाप पर होगा. और वह हुआ भी. पिछले साल ही मैंने कह दिया था. मैं ज्योतिषी नहीं हूँ, मगर ललित कि लगन देख कर संभावना नज़र आने लगी थी. सूची में कुछ नाम ऊपर-नीचे होते रहते है. यह जीवन का भी क्रम है-उतार-चढ़ाव. लेकिन आज ललित नंबर वन है. इसलिए बधाई के पात्र हैं. ललित शर्मा की इस उपलब्धि के लिये केवल मै खुश नहीं हूँ, पूरा छत्तीसगढ़ और पूरा हिंदी ब्लॉग जगत खुश है. क्योंकि ललित शर्मा को केवल मेरा ही स्नेह नहीं मिल रहा, उसके चाहने वाले देश-विदेश में फैले हुयेहै. 

सुनिए गिरीश पंकज को