गिरीश पंकज
पिछले दिनों गाँव से आये एक व्यक्ति को अपने काम के सिलसिले में कुछ ''बड़े'' अफसरों से मिलना पडा. उसे अफसरों के आलीशान चेम्बरों को निकट से देखने का मौका मिला, तो वह हतप्रभ रह गया. उसने अपने मन की बात मुझसे शेयर की. उसका यही कहना था कि जनता की गाढ़ी कमाई किस तरह विलासिता में खर्च की जा रही है? मेरे मित्र की बातों पर मैं विचार करने लगा, वह ठीक कह रहा था.मैंने भी विलासितापूर्ण जीवन जीने के पक्षधर अफसरों को निकट से देखा है. हमारे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का कक्ष भी मैंने देखा है. आप को आश्चर्य होगा कि वहाँ ऐसा कोई तामझाम नजर नहीं आता, जितना कुछ अफसरों के यहाँ नज़र आता है. मुख्यमंत्री के कार्यालय में एक सादगी है. और सच तो यही है कि सादगी में ही सौन्दर्य है , लेकिन इस राज्य के कुछ छोटे-बड़े अफसर वैभव-विलासपूर्ण सुविधाए जुटाने में इतना आगे निकल गए है कि मत पूछिए. समझ में नहीं आता कि ये प्रशासन चलाने के लिये बैठे हैं या राज्य की जनता के पैसों पर ऐश करने ? चकाचक दीवारें, बेहद कीमती टेबल-कुर्सियां और भव्य दिखाने वाले सोफसेट्स, कमरे में लगा महंगा से महँगा एलसीडी टीवी. और भी अन्य सुविधाए. जैसे महंगे मोबाइल सेट, लेपटाप, और सरकारी पैसे से खरीदी गई बेशकीमती करें आदि..ऐसा नवाबी ठाठ गुलामी के दौर में तो समझ में चल जाता, मगर लोकतंत्र में यह अफसरी- आडम्बर किसी भी देशप्रेमी को चुभ सकता है. मगर यह कटुसत्य है कि अफसर छत्तीसगढ़ में राजयोग-सा वैभव भोग रहे है. अफसर बड़े चालाक होते है. ये जनप्रतिनिधियों को भी विलासिता का स्वाद चखाने की कोशिश करते है, इसलिये गाँव का सीधा-सदा नेता मंत्री बनाने के बाद सामंती मिजाज़ में आ जाता है. इसके पीछे अफसरों का षड्यंत्र होता है. कुछ अफसर अपनी सुविधाओं को बटोरने के लिये पहले मंत्रियों को खुश करते हैं. अफसरों को विदेश घूमना हो, तो वे मंत्रियों के लिये कार्यक्रम बनाते हैं और खुद भी चिपक जाते हैं. एक दशक से यही हो रहा है. अफसरियत इतनी हावी है कि वह साफ़ नज़र आती है.
इस चिंतन को समझने की ज़रुरत है कि सरकारी दफ्तर, या मंत्रालय आदि ऐसे भव्य नहीं होने चाहिए कि गाँव के आदमी को घुसने में भी डर लगे. ये सबके लिये खुले रहने चाहिए. और बेहद सादगीपूर्ण भी होने चाहिए. . ''सादगी के साथ कार्य'' अपने राज्य का नारा होना चाहिए. सरकारी कार्यालय जनता के काम के लिये होते है, तामझाम को दिखाने के लिये नहीं. अगर सूचना के अधिकार के तहत ब्योरे निकलवाएँ जाएँ तो असलियत सामने आ सकती है, कि एक-एक दफ्तर की साज-सज्जा पर कितना खर्च हुआ है. यह बर्बादी है और एक तरह का भ्रष्टाचार ही है. आज हर बड़े अफसर के भव्य कक्ष में महंगे से महंगा टीवी दीवार पर चस्पा है? लोग पूछते हैं कि ये अफसर दफ्तर में काम करना चाहते हैं या टीवी देखना ? लगना ही है तो सरकार हर अफसर के कमरे में 'सीसी टीवी' और कैमरे लगाये, तब पता चलेगा कि ये अफसर किस तरह काम करते हैं. ऐसा हो गया तो पूरा सिस्टम ही सुधार जाएगा. जैसे सूचना का अधिकार कानून के कारण अधिकारी कुछ-कुछ डरने लगे हैं, उसी तरह अगर हर अफसर क्लोज़ सर्किट टीवी की जद में आ जाएगा, तो वह काम करने लगेगा. उसे अपनी छवि कि चिंता रहेगी. इसलिये कम से कम नए रायपुर में तो हर अधिकारी के कमरे में क्लोजसर्किट लगाये जाएँ, ताकि पारदर्शिता बनी रहे. और द्र्तुगति से काम हो. और यह निर्देश तो अनिवार्य रूप से दियें जाएँ कि दफ्तर के वैभव को बढ़ाने की बजाय काम की गति पर ध्यान दिया जाये. लगभग हर सरकारी दफ्तर महंगे से महंगे सामानों के इस्तेमाल कि कोशिश में लगे रहते है. सभी की यही मानसिकता नज़र आती है कि जितना भव्य दफ्तर होगा, उतना नाम होगा, लेकिन नाम काम से होता है. यह बात समझ में पता नहीं कब आयेगी? व्यावसायिक घराने या निजी कंपनियों के दफ्तर भव्य रखने की प्रथा चला पडी है, अब उसी रास्ते पर सरकारी दफ्तर भी चलाने की कोशिश करेंगे, तो यह जनता के पैसों का दुरुपयोग ही कहलायेगा. इस दिशा में मुख्यमंत्री ही कुछ संज्ञान लेंगे तो बात बनेगी, क्योंकि वे सादगी के साथ रहने वाले नेता हैं. अगर फिजूलखर्ची न रोकी गई तो यह सिलसिला चलता रहेगा. नियम तो यही बनाना चाहिए कि कोई भी अफसर अपने दफ्तर को संवारने से पहले उचित कारण बताये, वरना जनता के पैसों का दुरुपयोग इसी तरह जारी रहेगा. विकासशील राज्य का एक-एक पैसा महत्वपूर्ण है. यह अफसरों या जनप्रतिनिधि किसी की भी विलासिता पर खर्च नहीं होना चाहिए.
3 Comments:
बहुत सुन्दर विश्लेषण| धन्यवाद|
rightly said Pankaj bhai,aapka sadbhavna darpan nikal raha hai ya nahi?sader,
dr.bhoopendra
rewa
mp
सीसीटीवी केमेरेस का उपयोग अब अपरिहार्य है
Post a Comment