अब खेलों में राजनीति नहीं होगी ?
अब ऐसा मान कर चला जा रहा है, कि छत्तीसगढ़ में खेलों के मामले में कोई राजनीति नहीं होगी। यहाँ का ओलंपिक संघ अपने अच्छे कामों के लिए चर्चित भले न रहा हो, गुटबाजी के लिए जरूर कुख्यात रहा है। पदाधिकारी ही एक-दूसरे पर खुलेआम आरोप लगाते रहे हैं। हार कर संघ के लोगों ने तय किया कि अब इस संघ का अध्यक्ष मुख्यमंत्री को ही बना दिया जाए। मान-मनौवल के बाद मुख्यमंत्री राजी हो गए। अब उम्मीद की जाती है, कि सब कुछ ठीकठाक हो जाएगा। संघ के आजीवन संरक्षण विद्याचरण शुक्ल हैं। राजनीति के पुराने खिलाड़ी। उम्मीद की जा सकती है, कि विपरीत विचारधारा वाले दो दिग्गज मिलजुल कर छत्तीसगढ़ की खेल -संस्क ृति को शिखर तक ले जाएँगे। राजनीति में राजनीति उर्फ पॉलिट्किस होती रहती है तो कोई बात नहीं, कम से कम ओलंपिक संघ में यानी खेल में राजनीति न हो। सब यही कामना कर रहे हैं। डॉ. रमन सिंह आ गए हैं, तो यह बात पक्की है, कि वे खेल के मामले में राजनीति से ऊपर उठ कर ही सोचेंगे। वे ऐसा करते भी रहे हैं। उन्हें साफ भी किया है कि वे जितना हो सकेगा, बेहतर करने की कोशिश करेंगे।
क्या बात है, स्वागत है नड्डा जी का
छत्तीसगढ़ में नड्डा यहाँ के लोगों का प्रिय व्यंजन रहा है। चाय के साथ वाय के रूप में नड्डा खाने का प्रचलन रहा है। इसीलिए जब भाजपा ने जगतप्रसाद जी नड्डा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया तो यहाँ के लोगों ने उनका अतिरिक्त उत्साह के साथ स्वागत किया है। लोग यह मान कर चल रहे हैं, कि उनके आने से भाजपा की लोकप्रियता में इजाफा होगा। जैसा पता चला है, कि व सिद्धांतवादी हैं। मिलनसार हैं। उनके प्रभारी बनने से पार्टी को लाभ ही मिलेगा। नड्डा जी यहाँ बहुत जल्दी ही लोकप्रिय हो जाएंगे, क्योंकि उनका सरनेम यहाँ वर्षों से लोकप्रिय है। स्वाद के लिए लोग यहाँ नड्डे का स्वाद चखते रहे हैं। अब भाजपा को नए प्रभारी मिलने के कारण संगठन की दृष्टि से नया स्वाद मिलेगा, पार्टी के लोगों को इसकी आशा है। छत्तीसगढ़ की दो भाजपा नेत्रियों को चंड़ीगढ़ और उत्तरप्रदेश का प्रभार मिला है। इससे एक बात यह भी साफ हुई है, कि यहाँ की स्त्री-शक्ति पर भाजपा ने भरोसा किया है। यह बड़ी बात है।
आखिर हो ही गए निलंबित?
यानी संस्पेंड। जी हाँ, स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी है डॉ. आदिले। उन पर आरोप है, कि उन्होंने जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में अपनी लड़की की भर्ती फर्जी तरीके से कराई थी। बहुत दिन से मामला सुर्खियों में था। लोगों को आश्चर्य हो रहा था, कि अब तक इनका निलंबन क्यों नहीं हुआ। लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद। आखिर हो ही गए निलंबित। मतलब यह कि गलत काम करने की सजा मिलती ही है। भले ही विलंब हो जाए। अब यह मुहावरा भी गढ़ा जा सकता है, कि सरकार के घर देर हैं अंधेर नहीं। वैसे यहाँ कुछ सरकारी अफसर ऐसे हैं, जो भर्ती के मामलों में गोलमाल करते रहे हैं। पिछले दिनों फर्जी जाति प्रमाण पत्र के भी कुछ मामले सामने आए। अभी एक पार्षद भी इस लपेटे में आ चुके हैं। उनका हश्र क्या होगा, यह बाद में तय होगा ही।
छेड़ख़ानी की तो खैर नहीं....
राजधानी में जब से नए कप्तान ने कार्यभार संभाला है, पुलिस कुछ ही चुस्त-दुरुस्त न•ार आ रही है। यातायात व्यवस्था कुछ सुधरती तो दीख रही है। अगर यही हाल रहा तो सड़कों पर चलने से तनाव बढऩा कुछ कम हो जाएगा। अब ऐसा हो तो अच्छा है, वरना रायपुर में यह कहावत अकसर चरितार्थ होती है, कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। खैर, अभी जो हो रहा है, उससे शहर सुधर ही रहा है। पिछले दिनों पुलिस ने स्कूलों के प्राचार्यों, समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों की बैठक की और कानून-व्यवस्था की स्थिति बहाल रखने के लिए क्या किया जाए, इस पर चर्चा भी हुई। राजधानी में छेडख़ानी की बढ़ती समस्या पर भी गंभीरता से विचार हुआ। हेल्पलाइन भी शुरू की गई है। उसका नंबर है-1091। उम्मीद की जा सकती है, कि राजधानी की लड़कियाँ, महिलाएँ इस नंबर को कंठस्थ कर लेंगी और जब कभी कोई उन्हें परेशान करने की कोशिश करे, इस नंबर पर शिकायत करके उसको सबक सिखाएँगी। शातिर लोगों के हौसले भी कुछ पस्त तो होंगे ही।
शराब से बड़ा लगाव है ...?
राजधानी में लोग आंदोलन करके शराब दूकानें बंद करवाते हैं मगर होता यह है, कि कुछ दिन बाद वही ढाक के वही तीन पात। यानी दूकानें फिर खुल जाती हैं। अभी पिछले दिनों टिकरापारा में स्कूल के सामने चल रही शराब दूकान को आंदोलन करने के बाद बंद कर दिया गया था। लोग खुश थे कि चलो, स्कूली बच्चों को शराबियों से मुक्ति मिली। लेकिन कुछ दिन बाद शराब दूकान फिर शुरू हो गई? यह बेशर्मी की हद है। इस बेशर्मी के विरु द्ध पार्षद एवं नागरिकों को फिर सड़क पर उतरना पढ़ा। समझ में नहीं आता, कि जब यह पता चल गया है, कि लोग शराब दूकान नहीं चाहते तो ठेकेदार ऐसी गुस्ताखी करता ही क्यों है? क्या उसे किसी का संरक्षण मिल जाता है। परदे के पीछे की कहानी साफ नहीं हो पाती। बहरहाल, स्वागत उस नागरिक चेतना का है जो मरी नहीं है। अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का साहस ही हमें मनुष्य बनाए रखता है।
वाह, पैंतीलीस पुस्तकालय खुलेंगे....
यह एक अच्छी खबर है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश के स्कूलों में अब पुस्तकालय खुलेंगे। पैंतालीस हजार स्कूलों में पुस्तकालय? सोचिए, क्या मंजर होगा। बच्चों को पाठ्य पुस्तक के बाहर भी झाँकने को सुअवसर मिलेगा। आज हिंदी में स्तरीय बाल साहित्य की कोई कमी नहीं लेकिन वह बच्चों तक पहुँच नहीं पा रहा है। लेकिन पर स्कूल में अगर एक पुस्तकालय खुल जाए तो बाल साहित्य की कमी पूरी हो सकती है। लेकिन इसके लिए एक सावधानी भी बरतने की जरूरत है। बाल साहित्य के नाम पर बहुत कुछ कचरा साहित्य भी परोसा जाता है। इसलिए यह जरूरी है, कि खरीदी के लिए अच्छे जानकार बाल साहित्यकारों की एक टीम भी बनानी चाहिए। उनकी अनुशंसा के आधार पर ही बाल साहित्य खरीदना चाहिए। खैर, ऐसा होगा या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन पुस्तकालय खुलने से बच्चों तक कुछ न कुछ सत्साहित्य तो पहुँचेगा ही। इस निर्णयके लिए शिक्षा विभाग की जितनी तारीफ की जाए कम है।
शनिवार, 24 जुलाई 2010
छत्तीसगढ़ की डायरी
प्रस्तुतकर्ता girish pankaj पर 9:13 am 2 टिप्पणियाँ
लेबल: गिरीश पंकज, छत्तीसगढ़ की डायरी
गुरुवार, 22 जुलाई 2010
ब्लाँग आँफ द मंथ...पुरस्कार
इस साल के मार्च ,अप्रैल और मई के लिए ब्लाँग आँफ द मंथ का पुरस्कार छीटेँ और बौछारेँ ,ग्यान दर्पण ,गिरीश पंकज को
हर महीने की तरह इस बार भी ब्लाँग आँफ द मंथ के पुरस्कारो की घोषणा कर दी गयी है । ब्लाँगर साथियो को उत्साहित करने के लिये पिछले साल शुरू किये गये इस पुरस्कार के अन्तर्गत महीने के सर्वश्रेठ ब्लाँग को चुनकर उन्हे पुरस्कृत किया जाता है । ईटिप्स ब्लाँग टीम आप लोगो की तरह ही कोई कमाई नही करती , अब तक हिन्दी टिप्स ब्लाग ,सलीम खान के ब्लाग ,उङनतश्तरी ,प्रोपर्टी संसार ,बेचैनी ब्लाग ,छम्मक छल्लो ब्लाग इत्यादि को ये पुरस्कार दिया जा चुका है । हमने ब्लाँग चयन के लिये एक समिति "BLOG OF THE MONTH FOUNDATION" बनाई है जो इस कार्य को बखूबी कर रही है । हम न तो कोई लाभ कमाते हैँ और ना ही पुरस्कार स्वरुप कोई राशि किसी को दी जाती है ।मार्च-2010 के लिये यह आनलाँईन पुरस्कार आपके अपने पसंदीदा ब्लाँग "छीटेँ और बोछारेँ" को दिया जा रहा है।
वहीँ अप्रैल-2010 के लिये यह पुरस्कार आपके अपने चहेते ब्लाँग "ग्यान दर्पण" को दिया जा रहा है । इसके सानदार लेखोँ और ब्लाँग जगत मे सक्रीय भागीदारी के लिये ग्यान दर्पण को यह पुरस्कार दिया जा रहा है ।
वहीँ मई-2010 के लिये यह पुरस्कार छत्तीसगढ के प्रमुख साहित्यकार गिरीश पंकज जी के दो ब्लागोँ "गिरीश पंकज","सदभावना दर्पण" को सामूहिक रुप से दिया जा रहा है
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लेबल: samachar
सोमवार, 19 जुलाई 2010
शोक समाचार
इंडिया टुडे के कार्यकारी सम्पादक जगदीश उपासने एवं भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ के प्रदेश उपाध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने के पिता श्री दत्तात्रय उपासने (वर्ष 87) का सोमवार को रायपुर में निधन हो गया। वे प्रख्यात समाज सेवी थे, स्व. उपासने की धर्मपत्नी श्रीमती रजनीताई उपासने रायपुर शहर से विधायक भी रही हैं। उपासने परिवार का राजनीति एवं समाज सेवा में काफी योगदान रहा है। परिवार के मुखिया के नाते स्व. उपासने ने आपात काल का वह दौर भी झेला था, जब उनके परिवार के अधिकतर सदस्य जेल में डाल दिए गए थे। भाजपा परिवार में भी उनका अभिभावक जैसा सम्मान था। यही कारण है कि जब स्व. उपासने ने स्थानीय अस्पताल में अंतिम सांस ली उस समय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी वहां उपस्थित थे। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं। स्व. उपासने का अंतिम संस्कार शाम 4 बजे मारवाड़ी श्मशान घाट, रायपुर में किया।
संजय द्विवेदी द्वारा प्रेषित खबर.
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शुक्रवार, 16 जुलाई 2010
द्वितीय प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान
प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान
रायपुर । द्वितीय प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान से प्रतिष्ठित कथाआलोचक मधुरेश और युवा आलोचक ज्योतिष जोशी को सम्मानित किया जायेगा । यह सम्मान उन्हें 31 जुलाई, प्रेमचंद जयंती के दिन रायपुर, छत्तीसगढ़ में आयोजित द्वितीय अखिल भारतीय प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह में प्रदान किया जायेगा । उक्त अवसर पर शताब्दी पुरुष द्वय अज्ञेय और शमशेर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया है । यह सम्मान हिन्दी आलोचना की परंपरा में मौलिक और प्रभावशाली आलोचना दृष्टि को प्रोत्साहित करने के लिए 2 आलोचकों को दिया जाता है। संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर देश के दो आलोचकों को सम्मान स्वरूप क्रमश- 21 एवं 11 हज़ार रुपये नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं प्रमोद वर्मा के समग्र प्रदान कर सम्मानित किया जाता है । इसमें एक सम्मान युवा आलोचक के लिए निर्धारित है ।
चयन समिति के संयोजक जयप्रकाश मानस ने अपनी विज्ञप्ति में बताया है कि इस उच्च स्तरीय निर्णायक मंडल के श्री केदार नाथ सिंह, डॉ. धनंजय वर्मा, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विजय बहादुर सिंह और विश्वरंजन ने एकमत से वर्ष 2010 के लिए दोनों आलोचकों का चयन किया है । ज्ञातव्य हो कि मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई और श्रीकांत वर्मा के समकालीन आलोचक, कवि, नाटककार और शिक्षाविद् प्रमोद वर्मा की स्मृति में गठित संस्थान द्वारा स्थापित प्रथम आलोचना सम्मान से गत वर्ष श्रीभगवान सिंह और कृष्ण मोहन को नवाज़ा गया था ।
बरेली निवासी मधुरेश वरिष्ठ और पूर्णकालिक कथाआलोचक हैं जिन्होंने पिछले 35 वर्षों से हिन्दी कहानी और उपन्यासों पर उल्लेखनीय कार्य किया है । उनकी प्रमुख चर्चित-प्रशंसित कृतियाँ है - आज की कहानी : विचार और प्रतिक्रिया, सिलसिला : समकालीन कहानी की पहचान', हिन्दी आलोचना का विकास, हिन्दी कहानी का विकास, हिन्दी उपन्यास का विकास, मैला आँचल का महत्व, नयी कहानी : पुनर्विचार, नयी कहानी : पुनर्विचार में आंदोलन और पृष्ठभूमि, कहानीकार जैनेन्द्र कुमार : पुनर्विचार, उपन्यास का विकास और हिन्दी उपन्यास : सार्थक की पहचान, देवकीनंदन खत्री (मोनोग्राफ), रांगेय राघव (मोनोग्राफ), यशपाल (मोनोग्राफ), यशपाल : रचनात्मक पुनर्वास की एक कोशिश , अश्क के पत्र, फणीश्वरनाथ रेणु और मार्क्सवादी आलोचना आदि । डॉ. ज्योतिष जोषी युवा पीढ़ी में पिछले डेढ़ दशक से अपनी मौलिक साहित्य, कला और संस्कृति आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए अपनी प्रखर उपस्थिति से सबका ध्यान आकृष्ट किया है । मूलतः गोपालगंज बिहार निवासी श्री जोशी की प्रमुख कृतियाँ हैं – आलोचना की छवियाँ, विमर्श और विवेचना, जैनेन्द्र और नैतिकता, साहित्यिक पत्रकारिता, पुरखों का पक्ष, उपन्यास की समकालीनता, नैमिचंद जैन, कृति आकृति, रूपंकर, भारतीय कला के हस्ताक्षर, सोनबरसा, संस्कृति विचार, सम्यक, जैनेन्द्र संचयिता, विधा की उपलब्धिःत्यागपत्र व भारतीय कला चिंतन (संपादन) ।
प्रस्तुतकर्ता girish pankaj पर 5:05 am 2 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 13 जुलाई 2010
प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित
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लेबल: samachar
रविवार, 11 जुलाई 2010
छत्तीसगढ़ की डायरी
छत्तीसगढ़ में घोटाले की सड़क...
निर्माण और घोटाले की पक्की दोस्ती होती है। दोनों साथ-साथ रहते हैं। पीते-खाते हैं। खाते-पीते भी है। राज्य बनने के बाद यह सिलसिला यहाँ कुछ ज्यादा तेज हुआ है। पहले भोपाल के लोग (यानी नेता, अफसर और ठेकेदार की तिकड़ी)खाते-पीते थे, अब रायपुर में लोग खाते-पीते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत घटिया सड़कें बनती हैं। मिली-जुली कुश्ती होती है। दिल्ली से आने वाला पैसा कुछ लोगों की जेबों में चला जाता है। घटिया सड़क बनाने के आरोप में कुछ ठेकेदारों को तो काली सूची में डाल दिया गया है, मगर कुछ अफसर साफ-साफ बच निकले हैं। खेल के सूत्रधार तो अफसर भी होते हैं। अकेले अफसर कुछ नहीं कर सकते। हिस्सेदारी की बात गलत नहीं है। अब कहा जा रहा है, कि जो सड़के घटिया बनी हैं, उन्हें फिर बनाया जाएगा। सड़क फोकट में तो बनेगी नहीं, जाहिर है फिर वहीं चक्कर शुरू होगा। नए ठेकेदार सामने आएंगे। और अगर ईमानदारी से देखभाल नहीं की गई तो फिर घटिया सड़कों पर चलना पड़ेगा।
नक्सलियों से निपटने की तैयारी
यह ऐसी तैयारी नहीं है, कि अब सेना धावा बोल देगी। यह तैयारी है बौद्धिक। यह भी जरूरी काम होता है। 14 जुलाई को दिल्ली में नक्सल समस्या से पीडि़त राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र के साथ मिल-बैठ कर विचार करेगें, कि नक्सलियों से कैसे निबटा जाए। क्या सेना की मदद लें, अद्र्धसैनिक बल और बढ़ाएँ या सिपाहियों को और ज्यादा चुस्त करें। जो भी हो, कोई निर्णायक रणनीति बननी ही चाहिए। क्योंकि इधर अती हो रही है। नक्सलियों का एक नेता आजाद मारा गया है, तब से वे और अधिक बौखला गए है। एक दौर था जब जयपक्राश नारायण और विनोबा भावे जैसे महान नेताओं ने डकैतों का आत्म समर्पण करवा दिया था। आज भी यह काम हो सकता है। लेकिन दुख इस बात का है कि अब वैसे महान लोग हैं नहीं। खादी का कुरता पहन कर इधर-उधर डोलने वाले कुछ लोग संदिघ्ध हो गए हैं। कोई विदेशी मदद से अपना एनजीओ चला रहा है, तो कोई नक्सलियों के पक्ष में खड़ा है। बहरहाल, समझ में नहीं आ रहा, कि किया क्या जाए। लेकिन उम्मीद है, कि दिल्ली की बैठक कोई ठोस नतीजे के साथ खत्म होगी।
राजधानी के किशोर अपराधी
राजधानी में आए दिन लूटपाट, उठाईगीरी और हिंसक वारदातें हो रही हैं। कुछ लोग पकड़ में भी आ रहे हैं। दु:खद बात यह है कि बहुत-से मामले में किशोर और बिल्कुल युवा वर्ग के अपराधी सामने आ रहे हैं। अभी पिछले दिनों कुछ युवक पकड़े गए, इनमें एक राजनीतिक दल के सदस्य भी था। यह चिंतास्पद बात है। और ऐसा नहीं कि यह अभी इनकी संख्या बढ़ गई है। पिछले लंबे अरसे से किशोर-युवा ही पकड़ में आ रहे हैं। ये छोटे-मोटे अपराधी आने वाले समय के बड़े अपराधी हैं। सही शिक्षा का अभाव, नैतिक वातावरण की कमी और घर-परिवार का असर इन लड़कों को गुमराह बना ही देता है। इसलिए जरूरी हो जाता है, कि शालाओं में बच्चों के लिए नैतिक शिक्षा के पाठ जरूरी किए जाएं जो, जो अब लगभग समाप्त-से हो गए हैं।
बारिश में शहर
बारिश आती है और शहर के प्रशासन का असली चेहरा सामने आने लगता है। गड्ढे ही गड्ढे हो जाते हैं और इनमें पानी भरने और उसमें लोगों के धँसने का सिलसिला शुरू हो जाता है। गंदगी और उसके कारण होने वाली बीमारियाँ भी बढ़ जाती हैं। प्रशासन बारिश के पहले बड़े-बड़े वादे करता है, लेकिन वह कुछ कर नहीं पाता। और खामियाजा भुगतना पड़ता है सामान्यजन को। बारिश में शहर कई बार टापू-सा लगने लगता है। अनेक कालोनियों में कीचड़ ही कीचड़ नजर आता है। सूखे हुए तालाबों वाला शहर तालाबों में पट जाता है। जिधर देखो, उधर एक तालाब। दुर्घटनाएँ बढ़ती जाती हैं। शहर में बदबू और बीमारियों का साम्राज्य छाया रहता है। इस बार भी यही हो रहा है। महापौर खुद निकल रही है, नालियों से कचरे निकलवा रही है। लेकिन यह भी सच है कि कोई कहाँ-कहाँ जाए? आम आदमी भी ग•ाब की शै है। नालियों को चोक आदमी ही करता है। घर का, दूकान का सारा कचरा नालियों में ही डालता है। जाहिर है बरसात में नालियाँ बजबजाने लगती हैं। इसलिए नागरिकों का भी दायित्व है कि वह शहर को साफ रखें। वरना भुगतना उन्हीं को है।
गोवंश को बचाने के लिए साधुवाद..
गौ माता भाजपा गोवंश विकास प्रकोष्ठ के सदस्यों को धन्यवाद दे रही है, जिन्होंने सौ से ज्यादा गायों को कटने से बचा लिया। पिछले दिनों राजधानी और आसपास के कुछ शहरों से गो प्रेमियों ने कत्लखानों के लिए लेजाई जा रही गायों को पकड़ लिया। तस्करों को पुलिस के हवाले भी किया। सच बात तो यह है कि गो वंश की तस्करी का सिलसिला जारी है। कभी-कभार गायें पकड़ में आ जाती है, ये अलग बात है। आए दिन गायों की तस्करी होती रहती है। चोरी-छिपे गायें भी कटती रहती हैं। राजधानी में भी यह अपराध हाता है। गोवंश विकास प्रकोष्ठ के सदस्यों को सतत निगरानी रखनी चाहिए। संदिग्ध इलाकों में घूम-घूम कर जायजा लेना चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो गो वंश कटता ही रहेगा।
लौकी के जूस का डर
पिछले दिनोंदिल्ली के एक वैज्ञानिक की मौत लौकी के जूस पीने से हो गई। रायपुर और छत्तीसगढ़ के लोग भी जागरूक हैं। वे भी लौकी और अन्य फलों के जूस पीते रहते हैं। दिल्ली में हुई मौत के पीछे कारण यह बताया जा रहा है, कि वैज्ञानिक ने जो जूस पीया, वह काफी कड़वा था। वह मर गया और उसकी पत्नी अस्पताल में भरती हो गई। लौकी अगर कड़वी हो तो उसका जूस नहीं पीना चाहिए। दूसरी बात यह भी है, कि आजकल फल-सब्जियों में आक्सीटोसिन का इंजेक्शन भी लगा दिया जाता है। इससेभी स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। राजधानी में बाजार में बिकने वाली सब्जियाँ भी संद्ग्धि नजर आती है। दरअसल पैसे कमाने की हवस के कारण समाज के कुछ लोग इतना नीचे गिर गए हैं, कि उनके लिए नैतिकता जैसे शब्द बेमानी हो गए हैं। अब लोग ही समझदारी से काम लें और किसी भी फल-सब्जी का जूस सेवन करने से पहले उसकी गुणवत्ता परख लें। बेहतर तो यही है कि लोग बागवानी करें और अपनी जरूरत की फल-सब्जियाँ खुद उगाने की दिशा में भी विचार करें।
प्रस्तुतकर्ता girish pankaj पर 7:21 am 4 टिप्पणियाँ
लेबल: छत्तीसगढ़ की डायरी
बुधवार, 7 जुलाई 2010
श्रद्धांजलि...
अभी पाँच दिन पहले की बात है. उनसे मेरी मुलाकात हुई थी. उन्होंने बताया था, कि वे राममनोहर लोहिया पर एक पुस्तक सम्पादित कर रहे हैं. मानव अध्ययन शोधपीठ, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के अध्यक्ष के रूप में वे गाँधी,लोहिया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों पर एक बड़ा सेमीनार भी करने की तैयारी में थे. उनका उत्साह देख कर हर कोई दंग रह जाता था. वे पचासी साल के हो चुके थे और बेहद स्वस्थ और फुर्तीले नज़र आते थे. इस अवस्था में भी किसी युवक की तरह सक्रिय रहते थे. मैंने उनका बहुत नाम सुन रखा था. उनके अनेक राष्ट्रवादी लेख भी इधर-उधर पढ़ता रहता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से उनका रायपुर आना-जाना कुछ बढ़ गया था, इसलिए किसी न किसी कार्यक्रम में उनसे भेंट हो जाती थी.
मैंने उन्हें हमेशा एक विनम्र एवं नैतिक व्यक्ति के रूप में ही पाया. वे अनुभव की आंच में तप कर खरे हुए थे. अनेक समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाने के बात वे पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानव अध्ययन शोधपीठ के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे थे. आज जब विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी से उनके बारें में चर्चा होने लगी, तो उन्होंने बताया, कि वे विश्वविद्यालय में भी बेहद सक्रिय रहते थे. अखबारों में कोई महत्वपूर्ण खबर छपती थी तो वे कटिंग काट कर सन्दर्भ सामग्री के रूप में सहेज कर रखने लिये हमलोगों को दे दिया करते थे. तीन दिन पहले जब अग्निहोत्री जी अस्पताल में भरती हुए तो कृत्रिम साँस के लिये उन्हें मास्क लगाया गया था. लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति उन्हें देखने पहुंचता, वे मास्क निकलकर भावी कार्यक्रमों के बारे में बात करने लग जाते थे. मुख्यमंत्री डा. रमन सिंग, और संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल आदि भी उन्हें देखने पहुंचे. सभी से उन्होंने कहा, कि अब मै स्वस्थ हो कर फिर सक्रिय होना चाहता हूँ. प्रदेश के मंत्री राजेश मूणत ने चर्चा के दौरान मुझे बताया कि, पिछले दिनों उन्होंने लगा कि उनका स्वास्थय कुछ ज्यादा खराब हो रहा है, तो उन्होंने कहा था, ''मैं भोपाल जाऊँगा चेकअप कराने'', तो राजेश मूणत ने उनसे कहा, था कि ''वहां क्यों जायेंगे. यही आपका बढ़िया इलाज़ हो जाएगा''. इस पर मुसकरा कर चुप हो गए.
अग्निहोत्री जी भाजपा के थिंक टैंक की तरह थे. इसलिए भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता से उनके जावन और आत्मीय सम्बन्ध थे. यही कारण है, कि आज जैसे ही उनके निधन का दुखद समाचार मिला, लोग शोक में डूब गए. उन्हें श्रद्धांजलि देने लगभग पूरा मंत्रिमंडल ही डा. राजेंद्र दुबे के निवास पर उमड़ पडा था. रायपुर में उनका कोई निकट का रिश्तेदार नहीं था. लेकिन जब मै उनको श्रद्धांजलि देने डा. दुबे के निवास पर पहुंचा तो देख कर दंग रह गया, कि अनेक मंत्री और अनेक महत्वपूर्ण भाजपा नेता वहां मौजूद है, और उनके अंतिम संस्कार की तैयारियों में व्यस्त है. ऐसा बहुत कम होता है, कि किसी के निधन के बाद इतने लोग एकत्र हों, मगर अग्निहोत्री जी इतने महान व्यक्ति थे, कि उनके अंतिम दर्शन के लिये सैकड़ों लोग लालायित थे. भाजपा के लोग तो खैर थे ही, मेरे जैसे अनेक पत्रकार और अन्य दूसरे लोग भी पहुँच गए थे. भाजपा के लोगो को उन्होंने बहुत कुछ दिया है, लेकिन हम जैसे पत्रकारों को भी उन्होंने बहत कुछ दिया. आज जब पत्रकारिता अपने मूल्य से गिर रही है, तब अग्निहोत्री जी ने समझाया कि विपरीत स्थितियों में भी खड़े रहना पत्रकार का कर्तव्य है.
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लेबल: गिरीश पंकज, lekh
रविवार, 4 जुलाई 2010
छ्त्तीसगढ़ की डायरी
ये है छत्तीसगढ़ की पुलिस की डंडागीरी...
राजधानी रायपुर में डॉन शब्द से पुलिस इतनी नाराज है कि मत पूछो। इस चक्कर में एक स्कूली छात्र को पीट कर एक पुलिस अधिकारी ने अपनी डंडागीरी दिखाने की शर्मनाक कोशिश कर डाली। पिछले दिनों राजधानी में वाहनों में आग लगने की अनेक घटनाएँ हुईं। ये हरकतें किसी डॉन ग्रुप की हैं। पुलिस के कुछ अति होशियार लोगों ने कुछ लड़कों को पकड़ा और उन्हें डॉन ग्रुप बताकर जेल भी भिजवा दिया। फिर भी शहर में वाहनों के जलने का सिलसिला चलता रहा। अब पुलिस के एक जिम्मेदार अधिकारी खुद कह रहे हैं, जो लड़के पहले पकड़े गए थे, वे डॉन ग्रुप के नहीं थे। आखिर पुलिस ऐसा करती क्यों है? फर्जी मामले क्यों बनते हैं? पिछले दिनों एक स्कूली छात्र को एक पुलिस अधिकारी ने पकड़ा और डंडे से पीटना शुरू कर दिया। लड़के का कुसूर इतना ही था कि उसकी बाइक पर डॉन लिखा था। लोग इस हादसे से दुखी भी हुए और पुलिस अफसर की मूर्खता पर हँसे भी। अरे भाई, पहले समझ तो लो। कल को डॉन फिल्म रायपुर में लगेगी तो क्या सिनेमा मालिक की सुटाई शुरू कर दोगे कि डॉन क्यों लगाई? कुछ लोग शरारत कर रहे हैं, तो डॉन शब्द से खुन्नस निकालना कहाँ की बुद्धिमानी है?
और चलते-चलते..
प्रस्तुतकर्ता girish pankaj पर 10:31 pm 1 टिप्पणियाँ