शनिवार, 24 जुलाई 2010

छत्तीसगढ़ की डायरी

अब खेलों में राजनीति नहीं होगी ?
अब ऐसा मान कर चला जा रहा है, कि छत्तीसगढ़ में खेलों के मामले में कोई राजनीति नहीं होगी। यहाँ का ओलंपिक संघ अपने अच्छे कामों के लिए चर्चित भले न रहा हो, गुटबाजी के लिए जरूर कुख्यात रहा है। पदाधिकारी ही एक-दूसरे पर खुलेआम आरोप लगाते रहे हैं। हार कर संघ के लोगों ने तय किया कि अब इस संघ का अध्यक्ष मुख्यमंत्री को ही बना दिया जाए। मान-मनौवल के बाद मुख्यमंत्री राजी हो गए। अब उम्मीद की जाती है, कि सब कुछ ठीकठाक हो जाएगा। संघ के आजीवन संरक्षण विद्याचरण शुक्ल हैं। राजनीति के पुराने खिलाड़ी। उम्मीद की जा सकती है, कि विपरीत विचारधारा वाले दो दिग्गज मिलजुल कर छत्तीसगढ़ की खेल -संस्क ृति को शिखर तक ले जाएँगे। राजनीति में राजनीति उर्फ पॉलिट्किस होती रहती है तो कोई बात नहीं, कम से कम ओलंपिक संघ में यानी खेल में राजनीति न हो। सब यही कामना कर रहे हैं। डॉ. रमन सिंह आ गए हैं, तो यह बात पक्की है, कि वे खेल के मामले में राजनीति से ऊपर उठ कर ही सोचेंगे। वे ऐसा करते भी रहे हैं। उन्हें साफ भी किया है कि वे जितना हो सकेगा, बेहतर करने की कोशिश करेंगे।
क्या बात है, स्वागत है नड्डा जी का
छत्तीसगढ़ में नड्डा यहाँ के लोगों का प्रिय व्यंजन रहा है। चाय के साथ वाय के रूप में नड्डा खाने का प्रचलन रहा है। इसीलिए जब भाजपा ने जगतप्रसाद जी नड्डा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया तो यहाँ के लोगों ने उनका अतिरिक्त उत्साह के साथ स्वागत किया है। लोग यह मान कर चल रहे हैं, कि उनके आने से भाजपा की लोकप्रियता में इजाफा होगा। जैसा पता चला है, कि व सिद्धांतवादी हैं। मिलनसार हैं। उनके प्रभारी बनने से पार्टी को लाभ ही मिलेगा। नड्डा जी यहाँ बहुत जल्दी ही लोकप्रिय हो जाएंगे, क्योंकि उनका सरनेम यहाँ वर्षों से लोकप्रिय है। स्वाद के लिए लोग यहाँ नड्डे का स्वाद चखते रहे हैं। अब भाजपा को नए प्रभारी मिलने के कारण संगठन की दृष्टि से नया स्वाद मिलेगा, पार्टी के लोगों को इसकी आशा है। छत्तीसगढ़ की दो भाजपा नेत्रियों को चंड़ीगढ़ और उत्तरप्रदेश का प्रभार मिला है। इससे एक बात यह भी साफ हुई है, कि यहाँ की स्त्री-शक्ति पर भाजपा ने भरोसा किया है। यह बड़ी बात है।
आखिर हो ही गए निलंबित?
यानी संस्पेंड। जी हाँ, स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी है डॉ. आदिले। उन पर आरोप है, कि उन्होंने जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में अपनी लड़की की भर्ती फर्जी तरीके से कराई थी। बहुत दिन से मामला सुर्खियों में था। लोगों को आश्चर्य हो रहा था, कि अब तक इनका निलंबन क्यों नहीं हुआ। लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद। आखिर हो ही गए निलंबित। मतलब यह कि गलत काम करने की सजा मिलती ही है। भले ही विलंब हो जाए। अब यह मुहावरा भी गढ़ा जा सकता है, कि सरकार के घर देर हैं अंधेर नहीं। वैसे यहाँ कुछ  सरकारी अफसर ऐसे हैं, जो भर्ती के मामलों में गोलमाल करते रहे हैं। पिछले दिनों फर्जी जाति प्रमाण पत्र के भी कुछ मामले सामने आए। अभी एक पार्षद भी इस लपेटे में आ चुके हैं। उनका हश्र क्या होगा, यह बाद में तय होगा ही।
छेड़ख़ानी की तो खैर नहीं....
राजधानी में जब से नए कप्तान ने कार्यभार संभाला है, पुलिस कुछ ही चुस्त-दुरुस्त न•ार आ रही है। यातायात व्यवस्था कुछ सुधरती तो दीख रही है। अगर यही हाल रहा तो सड़कों पर चलने से तनाव बढऩा कुछ कम हो जाएगा। अब ऐसा हो तो अच्छा है, वरना रायपुर में यह कहावत अकसर चरितार्थ होती है, कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। खैर, अभी जो हो रहा है, उससे शहर सुधर ही रहा है। पिछले दिनों पुलिस ने स्कूलों के प्राचार्यों, समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों की बैठक की और कानून-व्यवस्था की स्थिति बहाल रखने के लिए क्या किया जाए, इस पर चर्चा भी हुई। राजधानी में छेडख़ानी की बढ़ती समस्या पर भी गंभीरता से विचार हुआ। हेल्पलाइन भी शुरू की गई है। उसका नंबर है-1091। उम्मीद की जा सकती है, कि राजधानी की लड़कियाँ, महिलाएँ इस नंबर को कंठस्थ कर लेंगी और जब कभी कोई उन्हें परेशान करने की कोशिश करे, इस नंबर पर शिकायत करके उसको सबक सिखाएँगी। शातिर लोगों के हौसले भी कुछ पस्त तो होंगे ही।
शराब से बड़ा लगाव है ...?
राजधानी में लोग आंदोलन करके शराब दूकानें बंद करवाते हैं मगर होता यह है, कि कुछ दिन बाद वही ढाक के वही तीन पात। यानी दूकानें फिर खुल जाती हैं। अभी पिछले दिनों टिकरापारा में स्कूल के सामने चल रही शराब दूकान को आंदोलन करने के बाद बंद कर दिया गया था। लोग खुश थे कि चलो, स्कूली बच्चों को शराबियों से मुक्ति मिली। लेकिन कुछ दिन बाद शराब दूकान फिर शुरू हो गई? यह बेशर्मी की हद है। इस बेशर्मी के विरु द्ध पार्षद एवं नागरिकों को फिर सड़क पर उतरना पढ़ा। समझ में नहीं आता, कि जब यह पता चल गया है, कि लोग शराब दूकान नहीं चाहते तो ठेकेदार ऐसी गुस्ताखी करता ही क्यों है? क्या उसे किसी का संरक्षण मिल जाता है। परदे के पीछे की कहानी साफ नहीं हो पाती। बहरहाल, स्वागत उस नागरिक चेतना का है जो मरी नहीं है। अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का साहस ही हमें मनुष्य बनाए रखता है।
वाह, पैंतीलीस पुस्तकालय खुलेंगे....
यह एक अच्छी खबर है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश के स्कूलों में अब पुस्तकालय खुलेंगे। पैंतालीस हजार स्कूलों में पुस्तकालय? सोचिए, क्या मंजर होगा। बच्चों को पाठ्य पुस्तक के बाहर भी झाँकने को सुअवसर मिलेगा। आज हिंदी में स्तरीय बाल साहित्य की कोई कमी नहीं लेकिन वह बच्चों तक पहुँच नहीं पा रहा है।  लेकिन पर स्कूल में अगर एक पुस्तकालय खुल जाए तो बाल साहित्य की कमी पूरी हो सकती है। लेकिन इसके लिए एक सावधानी भी बरतने की जरूरत है। बाल साहित्य के नाम पर बहुत कुछ कचरा साहित्य भी परोसा जाता है। इसलिए यह जरूरी है, कि खरीदी के लिए अच्छे जानकार बाल साहित्यकारों की एक टीम भी बनानी चाहिए। उनकी अनुशंसा के आधार पर ही बाल साहित्य खरीदना चाहिए। खैर, ऐसा होगा या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन पुस्तकालय खुलने से बच्चों तक कुछ न कुछ सत्साहित्य तो पहुँचेगा ही। इस निर्णयके लिए शिक्षा विभाग की जितनी तारीफ की जाए कम है। 

2 Comments:

कडुवासच said...

... शानदार पोस्ट !!!

बेनामी said...

खेलोँ मे राजनिती
फिल्मोँ मे राजनिती

सुनिए गिरीश पंकज को