रविवार, 26 सितंबर 2010

छत्तीसगढ़ की डायरी

छत्तीसगढ़ ; घपलेबाज अफसरों की संख्या बढ़ रही
छत्तीसगढ़ के बारे में यही कहा जाता है कि यह बाहर से आए अफसरों का स्वर्ग है। और यह दीख भी रहा है। आजकल हर दूसरे-तीसरे दिन किसी न किसी अफसर के यहाँ छापा पड़ रहा है। काफी माल बरामद हो रहा है। छोटे से छोटा अफसर भी करोडों में खेल रहा है। क्या आईएएस और क्या डिप्टी कलेक्टर, हर कोई नोट कलेक्ट कर रहा है। तरह-तरह के घोटाले हो रहे हैं। सबसे मज़े की बात यह है कि लोग पकड़ में तो आते हैं, अखबारों के माध्यम से इनकी मिट्टीपलीद  भी होती है, लेकिन चिकने घड़ों को कोई फर्क नहीं पड़ता। और सच्चाई भी यही है, कि छापे के बाद कुछ दिन तक हलचल रहती है। बाद में मामला शांत हो जाता है। तबाही के कहीं कोई निशान ही नजर नहीं आते। कितने ही मामले गिनाए जा सकते हैं। यही सब देख कर तो बाकी अफसरों के भी हौसले बुलंद हैं, कि डटकर करो कमाई। किसी का बाल भी बाँका नहीं होगा। कमाल हो रहा है, कमाल हो रहा है। अफसर तो अफसर, अब बाबू भी लाल हो रहा है। लोग समझ रहै हैं कि छत्तीसगढ़ खुशहाल हो रहा है।  
 छत्तीसगढ़ की पुलिस इतनी कमजोर नहीं....
नक्सल समस्या एक अंधेरी रात में तब्दील हो चुकी है, ऐसा लगता है। ऐसा कोई दिन नहीं,जब कोई वारदात न हो। वहाँ रहने वाले लोगों को दहशत के साये में जीना पड़ता है। पुलिस वाले वहाँ जाना नहीं चाहते तो उनको प्रशासनिक डंडा दिखाया जाता है। खैर, काम तो करना ही पड़ेगा। जो पुलिसवाले वहाँ जाने से बचते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि खतरा कहाँ नहीं है। जीवन ही खतरे का नाम है और पुलिस में जो आता है, वह खतरों का खिलाड़ी बन जाता है। वरदी का मतलब है कि सिर पर कफन बाँध कर निकल पड़े हैं। सुविधाएँ यहाँ नहीं है। यहाँ संघर्ष है। चुनौतियाँ हैं। नक्सलवाद सबसे बड़ी चुनौती है। उससे भागने का मतलब है हम यह बता रहे हैं कि हम कायर है। जबकि वरदी वहीं पहनता है जो हिम्मती होता है। अगर पुलिस वाले नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाने से घबराएंगे तो नक्सलियों के हौसले तो और बढ़ेंगे। इसलिए हिम्मत से काम लें और नक्सलियों से लोहा लें। छत्तीसगढ़ की पुलिस कमजोर नहीं, बहादुर है। यह संदेश पूरे देश तक जाना चाहिए।
नक्सल -अंधेरा: कब होगी सुबह?
वैसे पुलिस के जवानों को बहादुरी का सबक तो सिखाना आसान है, लेकिन यथार्थ यही है, कि वहाँ सरकार नाकाम-सी हो रही है। अभी सात जवानों का अपहरण किया गया । तीन को तो हत्या ही कर दी गई। चार अभी बंधक हैं। यह सब नक्सली आतंकवाद को दर्शाने का एक तरीका है। बंधक बने लोगों के परिजन किन मानसिक दौरों से गुजर रहे हैं, यह उनके बयानों से समझा जा सकता है। वे लोग नक्सलियों से अनुरोध कर रहे हैं, कि हमारे घर वालों को छोड़ दो तो वे लोग पुलिस की नौकरी ही छोड़ देंगे। उनकी जान बख्श दो। आदि-आदि। छोटे-छोटे बच्चे अपील कर रहे हैं लेकिन क्या नक्सली कुछ रहम करेंगे? अगर वे रहम करना जान लें तो नक्सली ही क्यों रहते? आम लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इस रात की सुबह कब होगी। लेकिन धैर्य रखना ही होगा। क्योंकि सुबह अवश्य आएगी। शांति का सूरज चमकेगा ही।
ओ आँखवाले डॉक्टर, देखकर काम करो
हद है लापरवाही की। पिछले दिनों विश्रामपुर की एक तीन वर्षीय बच्ची की आँख में चोट लगी तो परिजनों ने अंबिकापुर के डाक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कुछ उपचार किया और आँख पर पट्टी    बाँध दी। दो दिन बाद छुट्टी भी दे दी। मगर आँख में दर्द बना रहा। बाद में पता चला कि अंबिकापुर के डॉक्टर ने तो बच्ची की आँख ही निकाल दी और डुप्लीकेट आँख लगा दी है। बच्ची की आँख में दर्द रहने लगा तो घर वाले बच्ची को लेकर रायपुर आए। एक जाने-माने डॉक्टर को दिखाया तब मामला सामने आया। घर वालों ने गैरजिम्मेदार डॉक्टर के खिलाफ विश्रामपुर थाने में रिपोर्ट लिखाई है। अब डॉक्टर महोदय सफाई में कह रहे हैं, कि घर वालों के कहने पर बच्ची की आँख निकाली थी। घर वालों की सहमति अगर थी तो घर वालों ने थाने में रिपोर्ट ही क्यों लिखाई? मामला गंभीर है। भयंकर किस्म की आपराधिक लापरवाही का है। डॉक्टर की लापरवाही केकारण एक नन्ही बच्ची की एक आँख चली गई, इसका दर्द बच्ची और उसके परिजन ही समझ सकते हैं।
वाह रे गांजा-तस्कर सरपंच....?
सरपंच मतलब गाँव का प्रधान ..राजा। लेकिन बहुत-से गाँवों में सरपंचों की लापरवाही और लालच के कारण शराब और तरह-तरह की नशाखोरी फल-फूल रही है। गाँव के गाँव तबाह हो रहे हैं। पिछले दिनों रायपुर जिले के सुदूर गाँव का एक सरपंच गांजा-तस्करी में लिप्ट मिला। दूसरे लोग तो पकड़े गए मगर सरपंच पुलिस की गिरफ्त में आने के पहले ही वह फरार हो गया। लेकिन इससे एक बात तो साफ हो गई कि सरपंच की शह में गाँजे का कारोबार चल रहा था। एक सरपंच पकड़ा गया। अभी कुछ पकड़ सेबाहर हैं। अनेक गाँव आज नशे के केंद्र बनते जा रहे हैं। पचं-सरपंचों की सहमति के चलते शराब दूकाने खुल रही है।
पुस्तक-मेले की परम्परा विकसित हो
बिलासपुर में पुुस्तक मेला शुरु हो गया है। 3 अक्टूबर तक चलेगा। रायपुर में लगने वाला है। लेकिन अनुभव यही आया है कि इन पुस्तक मेलों में बहुत अधिक खरीदी नहीं होती। ये पुस्तक मेले में केवल दर्शनीय बन कर रहा जाते हैं। लोग पुस्तकों के पास तो आते हैं। मगर बाजार से गुजरा हूँ खरीदार नहीं हूँ  जैसी पंक्ति को सार्र्थक करते हुए निकल लेते हैं। जबकि अन्य राज्यों में होने वाले पुस्तक मेलों के बारे में सुन-पढ़ कर बड़ा आश्चर्य होता है, कि वहाँ साधारण से साधारण आदमी अच्छी खरीदारी करता है। छत्तीसगढ़ में पुस्तक-मेले की संस्कृति अभी बन रही है। यह शुरुआत है। यह सिलसिला चलता रहेगा तो भविष्य में पुस्तकें भी खरीदी जाएँगी। अभी तो सरकारी खरीदी भर होती है। वह भी इसलिए कि कुछ अफसरों को खासा कमीशन मिल जाता है। वे लाल हो जाते हैं। फिर भी इन पुस्तक मेलों का दिल से स्वागत होना चाहिए और छत्तीसगढ़ के दूरदराज स्थानों में रहने वाले कभी रायपुर-बिलासपुर जाएं तो मेलों तक भी जाकर कुछ न कुछ पुस्तकें जरूर खरीदें।

शनिवार, 4 सितंबर 2010

हाय, ये बलात्कारी शिक्षक

हाय, ये बलात्कारी शिक्षक.................
शिक्षक दिवस के दिन लोग शिक्षकों की पूजा करते हैं, उनका सम्मान करते हैं। शिक्षक होते भी इस लायक हैं कि उनका आदर किया जाए, लेकिन कभी-कभी कुछ शिक्षक सकलकर्मी यानी कुकर्मी भी निकल जाते हैं। जिनसे उम्मीद करते हैं, कि वे संस्कार देंगे, वे पट्ठे बलात्कार करते हुए पकड़े जाते हैं। भिलाई के ज्ञानदीप स्कूल में एक अज्ञानी शिक्षक का मामला प्रकाश में आया है। यह नीच शिक्षक पाँचवीं कक्षा की एक छात्रा को अपनी वासना का शिकार बनाना चाहता था। उस पर मामला दर्ज हो गया है। अब तो उसे स्कूल से हटा भी दिया गया होगा। दुख की बात यह है कि कुछ शिक्षक गलती से शिक्षा के पेशे में आ जाते हैं। दरअसल उन्हें होना था अपराधी, बनना था माफिया मगर अध्यापक बन गए। मगर मानसिकता वहीं की वही। क्या करें? ऐसे घटिया शिक्षकों के कारण पूरी बिरादरी बदनाम होती है। सचमुच, एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। ऐसे शिक्षकों को आजीवन जेल में ही सड़ाना चाहिए, ताकि उन्हें हर पल अपनी गलती का अहसास होता रहे।
लहू का रंग एक है....

पिछले दिनों फिर एक घटना प्रकाश में आई, कि एक घायल नक्सली को एक जवान ने अपना खून दिया। यानी उसकी जान ही बचाई। खून देने वाले जवान ने साबित कर दिया, कि मानवता सबसे ऊपर है। वह चाहता तोकून न भी देता। उन नक्सलियोंं को खून क्यों दें, जो बेकसूरों का खून बहाते हैं। यह निर्मम व्यावहारिक सोच है, मगर नैतिकता या जीवन-मूल्य यही कहते हैं, कि मानवता की रक्षा की जाए। हो सकता है, जवान के खून देने के बाद नक्सलियों का मन पसीजे।  वे सोचने पर विवश हों, कि जिनको हम मार डालते हैं, उनके ही लोग हमारे साथी की जान बचाने के लिए रक्तदान करते हैं। लहू का रंग एक हैं। मगर जब लहू की सोच हिंसक हो जाए, तो क्या किया जा सकता है। जवान ने अपना लहू दे कर पुण्य का काम किया है। उसका अभिनंदन होना चाहिए।
सबक है यह पुलिस के लिए..
पुलिस का मतलब यह नहीं है, कि किसी के साथ भी मनमानी कर ली जाए। डंडा हाथ में आने के बाद कुछ लोग रावणत्व के शिकार हो जाते हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं, कि लोकतंत्र में कानून नाम की कोई चीज भी है। पुलिसवालों को कानून की रक्षा के लिए डंडा दिया जाता है, लेकिन भाई लोग उस डंडे से किसी का भी सिर फोडऩे लगते हैं। आरपीएफ के प्रभारी समेत सात पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का आदेश दिया गया है। हुआ यह कि किसी मामले में एक व्यक्ति को जेल हो गई थी, लेकिन पुलिस चालान नहीं पेश कर पाई। व्यक्ति को जमानत पर रिहा कर दिया गया। लेकिन पुलिस उसे फिर पकड़ कर ले गई। उसे मारा-पीटा। प्रताडि़त किया। मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रट ने मामला दर्ज करने का आदेश दे दिया। शिकार करने वाले लोग खुद शिकार हो गए। प्रताडि़त व्यक्ति को,उसके परिवार को तब संतोष मिलेगा, जब दोषी पुलिस वालों को कड़ी सजा मिलेगी। और मिलेगी ही क्योंकि न्याय के घर देर है, अंधेर नहीं।
छत्तीसगढ़ में घसपैठिए....?
छत्तीसगढ़ ही क्या, पूरा भारत घुसपैठियों का घर बनता जा रहा है। यह एक बड़ी समस्या है, फिलहाल अगर छत्तीसगढ़ की बात करें, तो यहाँ भी बांग्लादेश और पाकिस्तान के लोग घसुपैठ की कोशिश करते रहते हैं। अपने देश से वीजा बना कर आते हैं और भारत में ही रह जाते हैं। क्योंकि यहाँ सुख-शांति है। आराम से अपना धंधा कर सकते हैं। अपने यहाँ भ्रष्टाचार इतना है कि थोड़े से पैसे मिलने के बाद संबंधित अधिकारी किसी भी किस्म का प्रमाणपत्र दे सकता है। ऐसा ही एक पाकिस्तानी भवनदास सचदेव दस -बारह से रायपुर में रह रहा था। मकान भी खरीद लिया था। अपना व्यवसाय भी कर रहा था। अचानक पोल खुली। पुलिस ने पाक नागरिक केविरुद्ध चार सौ बीसी का मामला दर्ज कर लिया। इसके बाद ही यही सोचा जा रहा है, कि ेेसे न जाने कितने लोग यहाँ होंगे। रायपुर ही नहीं, आसपास भी ऐसे विदेशी होंगे, जो चुपचाप रह रहे हैं। एक अभियान चलना चाहिए, ताकि संद्ग्धि लोग पकड़ में आ सकें।
स्वर्ग है राजधानी सेक्स-माफिया के लिए....
छत्तीसगढ़ में भू माफिया, शराब माफिया, उद्योग माफिया आदि-आदि सक्रिय हैं। एक और माफिया तेजी के साथ पैर पसार रहा है। यह है सेक्स-माफिया। यह माफिया बाहर से लड़कियाँ बुलवाता है और यहाँ के रईसजादों को सप्लाई करता है। ये रईस लोग रायपुर के ही नहीं होते। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से यहाँ आते हैं। पिछले दिनों ऐसे ही एक सेक्स रैकेट का भाँडा फूटा। जम्मू और दिल्ली की लड़कियों के साथ छत्तीसगढ़ के ही दो युवक पकड़ में आए। दलाल फरार हो गया।  पकड़ी गई लड़कियों के पास से अनेक बड़े शहरों की हवाई टिकटे मिली। यानी ये चलती-फिरती देह-मशीनें थी। आज यहाँ तो कल वहाँ। कोई बड़ी बात नहीं, कि ये धनलोलुप लड़कियाँ अपने अभिभावकों से छल करके घूमती रहती हैं। पकड़ में आने पर इनके माता-पिता लज्जित होते हैं। लेकिन आज पैसे कमाने की हवस के कारण पतन इतनी तेजी से फैला है कि कई लोग इस पतन को अपने मौलिक अधिकार की तरह देखने लगे हैं।
गाय मूक है मगर उसकी आँखें बोलती हैं
जन्माष्टमी धूमधाम से मनी। कुछ लोगों ने गायोंकी भी पूजा की। गौ माता की जय के नारे भी लगाए। लेकिन उसी दिन पूरे शहर में दिन के समय और रात को लावारिस-सी गायें घूमती रहीं। इधर-उधर बैठी भी मिलीं। जो गायें सड़कों पर यूँ ही बदहाल घूम रही थीं। उनके पालक भी गौ माता जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। हमारे यहाँ अजीब मानसिकता है। गायों का भरपूर दोहन करेंगे मगर उसकी देखभाल करने में कंजूसी करने लगेंगे। उसे चारा नहीं खिलाएंगे। उसकी सेवा नहीं करेंगे। केवल प्रणाम करेंगे, बस। गोया ऐसा करने से गौ माता प्रसन्न हो जाएगी। गाय मूक प्राणी है मगर उसकी आँखें बोलती हैं। जरा गौर से देखो। उसके आँसू भी बहते हैं।  उसे गोपालक गौर से देखे महसूस करे। जब वह गाय का दूध पीये या उसे बेच कर, उसमें पानी मिला कर कुछ कमाई करे, तो ध्यान रखे कि गाय को कुछ खिलाना-पिलाना भी है। उसे सड़कों पर मत छोड़ो। उसे मैदान में चरने भेजो।

सुनिए गिरीश पंकज को