छत्तीसगढ़ की पुलिस पर एक आम आरोप यह लगाया जाता रहा है, कि वह फर्जी मुठभेड़ करती है और लोगों को किसी न किसी मामले में फँसाकर जेल भेजती रहती है। पुलिस ऐसे लोगों पर अंकुश लगाने की कोशिश करती है, जो अक्सर प्रतिरोध करते हैं। अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं। जिंदा कौमों को प्रतिकार करना ही चाहिए। प्रतिकार लोकतंत्र की ताकत है लेकिन अंगरेजों के समय की पुलिस आजाद देश में भी दमनकारी मानसिकता में है। बस्तर में पुलिस ऐसी ही हरकतें कर रही है। पिछले दिनों सीपीआइ ने जगदलपुर में जोरदार रैली निकाली। इसमें हजारों लोग शामिल हुए। इनमें आदिवासियों की संख्या भी कम नहीं थी। यह रैली अन्याय के खिलाफ थी। फिर चाहे अन्याय नक्सली करें, चाहे पुलिसवाले। पिछले दिनों पुलिस एक ग्रामीण को उठा कर ले गई, उसका आज तक पता नहीं। गाँववाले पूछने गए तो उन्हीं को धमकाया जाने लगा। यानी अत्याचार भी करो और दादागीरी भी? इन्हीं सब कारणों से पुलिस के प्रति समाज में घृणा की बावना भरती जा रही है। पुलिस को मनुष्य बनाने की कवायद आखिर कब शुरू होगी?
अपहरण का कारोबार
पूरे छत्तीसगढ़ के परिदृश्य को देखें तो लगता है, हर कहीं अपराध बढ़ता जा रहा है। जब छत्तीसगढिय़ा दुखी हो कर कहने पर मजबूर होता है, कि पुलिस बैठे-बैठे केवल रोटियाँ तोड़ रही है। राजधानी रायपुर से लेकर अंबिकापुर तक फैला है अपहरण का कारोबार। अपहरण और लापता होने की वारदातें बढ़ रही हैं. पिछले दिनों राजधानी में दो छात्र लापता हुए थे, वे आज तक लापता ही हैं। पता नहीं चल रहा कि कहाँ चले गए? अभी हाल ही में फिर दो स्कूली छात्राएँ लापता हो गई हैं। एक लापता किशोर की तो बाद में केवल लाश ही मिली। पुलिस ने गुमशुदा दस्ता बनाया था। अब तो लगता है,उसे ही खोजने की बारी है कि वह कहाँ है? वैसे लोगों का कहना यही है, कि दस्ता सक्रिय भी हो जाएगा, तो क्या गारंटी है, कि वह सफल होगा। गृहमंत्री के दस्ते का हश्र सब देख रहे हैं। रायपुर में वाहनों में आगजनी और तोड़-फोड़ की वारदातें बढ़ती ही जा रही है। लोग हैरत में हैऔर एक-दूसरे से पूछते हैं, कि आखिर इस पुलिसतंत्र का सामाजिक औचित्य क्या है?
न्यायिक जाँच में दिक्कत क्या?
अंबिकापुर के छात्र ऋतिक का अपहरण हुआ और बाद में उसकी हत्या कर दी गई। इस मुद्दे पर सरगुजा भी बंद रहा। पूरा छत्तीसगढ़ उद्वेलित रहा। स्वाभाविक है,कि काँग्रेस के लिए यह एक अवसर था सरकार की खिंचाई का। काँग्रेस की माँग गलत नहीं है, कि हत्याकांड की न्यायिक जाँच होनी चाहिए। इसमें दिक्कत क्या है। जनभावनाओं का सम्मान होना ही चाहिए। लोगों को दु:ख तब होता है, और गुस्सा भी आता है, जब जनप्रतिनिधि- मंत्री महोदय पुलिस का पक्ष लेते हैं और कहते हैं हत्याकांड के लिए समाज जिम्मेदार है। कई बार लोगों को भी यही लगता है, कि समाज ऐसे लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनने का जिम्मेदार है जो जनता के साथ नहीं, पुलिस के साथ खड़े नजर आते हैं : उस पुलिस के साथ जिसका चरित्र क्या है, क्या रहा है, वह सबके सामने है।
कितने करोड़पति अफसर है यहाँ...?
वैसे अब किसी का करोड़पति होना चौंकाने वाली बात नहीं हो सकती क्योंकि किसी का पुराना बड़ा मकान भी अब एकाध करोड़ की कीमत तक पहुँच जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के अनेक अफसरों के पास से जब मकान-दूकान और नकदी निकलते हैं, तब खबर बनती है, चर्चाएँ होती है। फिर चाहे अफसर रायपुर को हो, बिलासपुर का हो या और कहीं का। पिछले दिनों रायपुर नगरनिगम के एक अधिकारी के पास से करोड़ों की संपत्ति मिली और अब बिलासपुर नगरनिगम का इंजीनियर सपड़ में आया। आखिर ये लोग इतने श्रमवीर कहाँ से हो जाते हैं, कि रातों रात मालामाल हो गए? जाहिर है यह पाप की, हराम की कमाई है। जो सीधे-सीधे लूट के कारण अर्जित की गई ? ऐसे लोगों की संपत्ति हर हाल में राजसात होनी चाहिए। और दोषी लोगों को कड़ा दंड भी मिलना चाहिए। ताकि दूसरे सबक लें। हमारे यहाँ अकसर छापे पड़ते हैं बाद में सब चमत्कारिक रूप से निर्दोष निकलते हैं।
अफसरों पर लगाम की फिर कवायद
छत्तीसगढ़ में अफसरी का धंधा मंदा ही नहीं होता। अफसरों का स्वर्ग है यह राज्य। यहाँ अफसर लूटखसोटबी करतेहैं, अन्याय भी करते हैं और नायक बने घूमते हैं। क्योंकि बहुत-से लोग हीनबाव सेग्रस्त रहते हैं। वे अफसरों को कार्यक्रमों में बुलाते हैं, उनका सम्मान करते हैं। अपने स्वार्थ के लिए उन लोगों की प्रतिष्ठा की जाती है, जो किसी लायक नहीं है। जैसे किसी पुलिसवाले का सम्मान इसलिए कर दिया जाता है, कि उसने चोर या हत्यारे को पकड़ लिया। यह तो पुलिस का काम है, इसीलिए तो उसे नौकरी दी गई है। लेकिन नहीं, सबंध गाँठने के लिए उसे सम्मानति किया जाता है। जिसे जिस काम के लिए रखा गया है, उसे उसके काम के एवज में सम्मानति किया जाना अजीब लगता है,लेकिन यह हो रहा है। अब सरकार ने एक पुराने सिविलसेवा (आचरण) अधिनियम 1965 को फिर से लागू करके साफ-साफ निर्देश दिए हंै कि कोई भी अफसर उद्घाटन-शिलान्यास नहीं करेगा। किसी कार्यक्रम में अतिथि नहीं बनेगा। वैसे तीसरी बार यह अधिनियम लागू किया गया है, लेकिन कुछ बेशरम अफसर इसका पालन नहीं करते और आए दिन मंचों पर स्थापित नजर आते रहते हैं।
शिक्षामंत्री के महत्वपूर्ण सुझाव
शिक्षा में भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय एवं मानवीय मूल्यों को बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम शामिल किए जाने चाहिए। महापुरुषों के पाठ पढ़ाए जाने चाहिए। प्रदेश के शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने पिछले दिनों दिल्ली में इस आशय के सुझाव दिए। एनसीइआरटी की बैठक में श्री अग्रवाल ने अपने सुझाव रखे। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता, कि वर्तमान दौर में हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। राष्ट्रीय मूल्य तो जैसे हाशिये पर ही फिंका गए हैं। मानवीय मूल्य भी बेमानी होते जा रहे हैं। स्कूलों में खेलकूद-बागवानी और सांस्कृतिक गतिविधियाँ कम होती जा रही हैं। आज पूरा ध्यान बच्चे के व्यावसायिक कैरियर पर ही केंद्रित है। उसे बेहतर मानव बनाने की बुनियादी चिंता कहीं नजर नहीं आती। बच्चे को अपने पैरों पर खड़ा होना है, उसे अच्छी नौकरी हासिल करनी है। अच्छा व्यवसाय करने लायक बनना है। मगर उसे अच्छा इंसान भी बनना है। इसका पाठ भी पढ़ाया जाना चाहिए।
1 Comment:
... saargarbhit post !!!
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