बस्तर : उम्मीद कायम है..
नक्सलवाद के विरुद्ध बस्तर में जिस तरह लोग लामबंद होते रहे हैं, उसे देख कर यह विश्वास दृढ़ होता है, कि अन्याय के विरुद्ध जीवत प्रतिकार का सिलसिला जारी है। सलवाजुडूम भले ही अब बंद हो गया हो मगर शांति के लिए लोग फिर भी एक जुट हो रहे हैं। पिछले दिनों बस्तर में बीजापुर और जगदलपुर में शांति के लिए सैकड़ों लोग जमा हुए और यह संकल्प दुहाराया कि जब तक बस्तर में शांति बहाल नहीं हो जाती, लोग हिंसा के विरुद्ध खड़े होते रहेंगे। गाँधी जयंती के दिन लोगों के मन में बड़ा उत्साह था। डर यही है कि यह उत्साह समय के साथ ठंडा न पड़ जाए। नक्सलियों के विरुद्ध पुलिस और दूसरे जवान अपने तरह से लड़ रहे हैं। लेकिन जनता कोभी साथ देना है। उन्हें घबराना ही नहीं है। जगदलपुर में एक संस्था बनी है बस्तर शांति एवं विकास संघर्ष परिषद। इस संस्था के गठन के दिन मुख्य वक्ता के रूप में मैं शामिल हुआ था। वहाँ जमा सैकड़ों लोगों के उत्साह को देख कर लगा कि अभी भी उम्मीद कायम है। और रहनी चाहिए।
जोगी का आशावाद
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को मानना पड़ेगा। एक मायने में वे सबके प्रेरणास्रोत है। शारीरिक दुर्घटना केकारण और कोई होता तो वह हताश हो गया होता । मगर जोगीजी उत्साह सेबरे रहते हैं। और आए दिन सरकार के नाक में दम किए रहते हैं। लोग घबराए रहते हैं, कि पता नहीं, कब क्या हो जाए। अभी पिछले दिनों जोगी जी ने कह दिया कि भाजपा के बारह विधायक उनके संपर्क में हैं। ये विधायक बेहद नाराज हैं क्योंकि इनकी उपेक्षा हो रही है। जोगी जी का संकेत यही है कि सरकार उनकी मुट्ठी में है। जब चाहे निपटा सकते हैं। जोगीजी के इस बयान से लोग सकते में हैं। जोगी जी यह भी कह रहे हैं कि वे बहुत कुछ कर सकते हैं, मगर जब तक हाइकमान तैयार नहीं होगा, वे कुछ नहीं करेंगे। और यह तय है कि हाईकमान ऐसा कुछ नहीं चाहेगा, कि सरकार गिरे। मतलब केवल हवाहवाई बात है। फिर भी जोगी जी के इस बयान से भाजपा में सुरसुरी तो जरूर छूटी होगी और यह भी देखा जा रहा होगा, कि वे बारह विधायक हैं कौन। हैं भी या नहीं?
राहुल का बचकाना बयान
राहुल गाँधी अब बच्चे नहीं रहे। वे सांसद भी बन गए हैं। इसलिए संभल कर बोलना चाहिए। वे पिछले दिनों कह गए किस संघ और सिमी एक जैसे हैं। कहाँ राष्ट्रविरोधी संस्था सिमी और कहाँ राष्ट्रवाद के लिए जीने-मरने वाली संस्था संघ। संघ कट्टर हो सकता है, लेकिन वह सिमी जैसा आतंकवादी नहीं है। राहुल को किसी ने गलत फीड कर दिया होगा। बेचारे ने कह दिया। स्वाभाविक है कि उनका पुतला जला। राजधानी ही नहीं अनके जगह। बिना सोच-समझे बोलने के कारण ही हमारे यहाँ विवाद पैदा होते हैं। राहुल का बयान कुछ ऐसा ही है जैसे कोई हत्यारे और पंडित को एक ही श्रेणी में रख दे।
प्रतीकों में भी हो सकती है बलि
कुछेक धर्मस्थलों में पशुबलि दी जाती है। पूरा प्रांगण लहूलहान न•ार आने लगता है। जो लोग बलि के पक्ष में होते हैं, उन्हें बुरा नहीं लगता मगर बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं,जो खून देख कर ही घबरा जाते हैं। हमारा समाज हिंसा विरोधी रहा है। लेकिन धार्मिक परंपरा के नाम पर हिंसा के मामले में मौन हो जाता है। जबकि लोगों को इसका विरोध करना ही चाहिए। सभ्य समाज में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। अगर किसी की धार्मिक मान्यता है तो उसका रूप बदला जा सकता है। प्रतीकों में बलि ली जा सकती है। नारियल को भी लो प्रतीक बनाते रहे हैं। ईश्वर कभी भी बलि से प्रसन्न नहीं हो सकता। वह त्याग को पसंद करता है। करुणा से वह खुश होता है। सुशिक्षित आम लोगों को यह समझाया जा सकता है। मिल-जुल कर एक वातावरण बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
शोर पर ऐतराज
हमारे यहाँ धार्मिकता की भी ऐसी उग्रता देखने में आती है कि मत पूछिए। धर्म-कर्म में लगे बहुत से लोग कई बार अभद्रता की हद से गुजर जाते हैं। लाउडस्पीकर बजाकर आसपास के लोगों को परेशान कर देते हैं। आजकल हर घर में पढऩे-लिखने वाले बच्चे होते हैं। पढ़ाई का कितना दबाव रहता है, यह किसी से छिपा नहीं। जब घर के बाहर फुलसाउंड में लाउडस्पीकर बजता है तो बच्चे पढ़ नहीं पाते। बहुत से लोग शोर के कारण तनावग्रस्त भी हो जाते हैं। अगर ऐसे समय में कोई पीडि़त व्यक्ति आयोजकों के पास जाए तो वे अन्यथा लेते हैं और लडऩे पर उतारू हो जाते हैं। तब लगता है, कि यह कैसी धार्मिकता है जो दूसरों का दिल दुखा कर ईश्वर को खुश करना चाहती है। जबकि ईश्वर तो लोगों के दिलों में भी रहता है। अब लोग आस्था कम और प्रदर्शन में ज्यादा विश्वास करने लगे हैं। इसीलिए वे केवल अपनी सुविधा का ध्यान रखते हैं, दूसरों का नहीं।
फिर वही शराब....
छत्तीसगढ़ इस वक्त नक्सलवाद के साथ-साथ नशावाद से भी पीडि़त है। ऐसा कोई गाँव या शहर नहीं होगा,जहाँ शराब के कारण हिंसक स्थितियाँ न बनती हों। आपस में मारपीट, वैमनस्यता के पीछे शराब भी एक बड़ा कारण है। हालत यह भी होती है कि शराब के कारण घर-परिवारों में मौतें भी होने लगी हैं। पिछले दिनों आरंग क्षेत्र की कुछ जागरूक महिलाएँ रायपुर आईं और शराब बंदी के लिए प्रदर्शन करके लौट गईं। इनमें एक ऐसी महिला भी शामिल थी, जिसके पति की मौत शराब पीने के कारण हुई। अनेक मौतें केवल शराब केकारण हुई हैं। फिर भी शराबखोरी पर अंकुश नहीं लग रहा। प्रशासन को केवल आय चाहिए। शराबविरोधी आंदोलन को चालाकी के साथ दबा दिया जाता है। लेकिन ऐसा करके प्रशासन खुद अपराध कर रहा है। शायद उसे इस बात का अहसास ही नहीं है। गनीमत है कि छत्तीसगढ़ मुर्दा नहीं है। यहाँ शराब के विरुद्ध लोग एकजुट होते रहते हैं। आज नहीं तो कल हो सकता है कोई ऐसी व्यवस्था आए जो शराबबंदी के खिलाफ ईमानदारी से कोई निर्णय ले।
शनिवार, 9 अक्तूबर 2010
छत्तीसगढ़ की डायरी
प्रस्तुतकर्ता girish pankaj पर 7:42 am
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1 Comment:
इस डायरी में कई मुद्दों को उठाया गया है । धार्मिक और शादी ब्याह के समय किये जाने वाले शोर पर मुझे भी ऐतराज है
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