घोटालेबाज औरतें....घोटाले केवल आदमी ही नहीं करते, औरतें भी करने लगी हैं। औरतें यानी साधी-सादी, काम से काम रखने वाली, लेकिन जब नारी मुक्ति का दौर चला है, औरतें भी चालाक होने की कोशिश कर रही हैं। जब आदमी भ्रष्टाचार कर सकता है, तो औरत क्यों नहीं? वह भी किसी से कम क्यों रहे? यही कारण है कि रायपुर के एक महिला बैंक में कुछ संचालक औरतों ने खुल कर घोटाले किए। लेकिन घोटाले एक दिन मल की तरह पानी के ऊपर आ ही जाते हैं। इस बैंक का घोटाला भी सामने आया तो सारी संचालिकाएँ भूमिगत हो गई, लेकिन एक-एक करके पकड़ी भी गई। (आखिर मुखबिर भी कोई चीज़ होती है)अभी हाल ही में रायपुर में दो तथाकथित प्रतिष्ठित संचालिकाएँ पुलिस के हत्थे चढ़ी। अब जेल में हैं। और लोगों को शायद यही संदेश दे रही है, कि बुरे काम का बुरा नतीजा। लेकिन गिरफ्तारी से भी बात नहीं बन रही। जिन लोगों के पैसे डूबे, उनके पैसों का क्या होगा? वे अभी तक नहीं मिले। छाटी-मोटी राशियाँ तो मिल गई, लेकिन बड़ी रकम अब तक अप्राप्त है। पैसे तो हजम हो गया है। अब एक ही तरीका है, कि जो दोषी है, उनकी सम्पत्ति को कुर्क किया जाए, और खातेदारों को उनके पैसे लौटा दिए जाएँ। प्रक्रिया तो यही होनी है, लेकिन अभी वक्त है। खैर, देर आयद दुरुस्त आयद ...
आनंद महोत्सव का दुखदायी पहलूपिछले दिनोंरायपुर में ईसाई समाज ने तीन दिन का आनंद महोत्सव किया। ईसाई गुरू पाल दिनाकरन जी प्रवचन देने आए। लेकिन बजरंग दल, विहिप और शिव सेना के लोगों ने इनके खिलाफ प्रदर्शन किया? इनका आरोप था कि आनंद महोत्सव की आड़ में ये लोग धर्म परिवर्तन की कोशिश कर रहे हैं। ईसाई धर्म के लोग धर्मपरिवर्तन के लिए बदनाम कर दिए गए हैं। रायपुर में आनंद महोत्सव को धर्मांतरण महोत्सव समझ कर लगातार प्रदर्शन हुए, पुलिस ने गिरफ्तारियाँ भी की। आनंद महोत्सव हुआ और हजारों लोग इसमें शामिल हुए। पूरे महोत्सव के दौरान कहीं भी धर्म परिवर्तन की बात नहीं उठी। वक्ता ने केवल प्रभू यीशु की राह पर चलने का आह्वान किया। तटस्थ लोगों की यही राय थी, कि हिंदूवादी संगठनों को समझ लेना चाहिए कि हिंदू धर्म इतना कमजोर भी नहीं है, कि कोई धर्मगुरू आएगा और सभा करेगा तो लोग अपना धर्म ही छोड़ दें।
पेड़ से दूध...?जी हाँ, पेड़ से भी कभी-कभी दूध निकलता है। और जब ऐसा हो तो सचमुच चमत्कार ही है। फिर चमत्कार को अपने यहाँ नमस्कार करने की परम्परा भी रही है। राजधानी में एक पेड़ से जब अचानक दूध जैसा कुछ द्रव निकलता देखा गया तो कुछ धार्मिकों ने इसे चमत्कार समझा और पेड़ की पूजा होने लगी। धार्मिकजन बहुत जल्द पूजा-पाठ में भिड़ जाते है। लेकिन बाद में वैज्ञानिकों ने समझाया कि भाइयो, यह कोई ईश्वरीय चमत्कार नहीं है, ऐसा अकसर होता रहता है। जब पेड़ के बीच का भाग सूखता है, तो इसमें वैक्टीरिया आ जाते हैं। इसके कारण द्रव और गैस भी बनती है तो एक दबाव के चलते पेड़ से दूध जैसा द्रव निकलने लगता है। अच्छी बात है, कि लोगों को बात समझ में आ गई, लेकिन इससे एक फायदा हुआ कि पेड़ को पूजा गया। कम से कम यह पेड़ तो अवैध कटाई का शिकार नहीं होग।
गुरूजी स्कूल नहीं आते...अधिकांश सरकारी स्कूलों का यही दर्द है। गाँवों की हालत और खराब है। वहाँ काम करने वाले कुछ शिक्षक मुफ्तखोरी के शिकार हो गए हैं। वे शहर में रह कर अपने दस तरह के गोरखधंधे करते हैं और गाँव जाते ही नहीं। वेतन वृद्धि भी चाहिए और भत्ते-फत्ते भी, बस पढ़ाई नहीं। धरसींवा के पास स्थिति गाँव मोहदी के बच्चे भी कब तक बर्दाश्त करते? चले आए राजधानी। सीधे प्रेस क्लब ही पहुँच गये। बताया पत्रकारों को अपने गाँव का हाल। इस बात को शिक्षा मंत्री ने गंभीरता से लिया और चेतावनी दे दी कि अगर शिक्षक स्कूलों से अनुपस्थित पाए गए, तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। उम्मीद है, नौकरी बचाने के लिए यही सही, शिक्षक स्कूल तो आएँगे, अब पढ़ाएँ या न पढ़ाएँ उनकी मरजी है भाई।
यह पाँचवाँ कुंभ भी बना रहेवैसे कुंभ तो चार ही है, लेकिन अब छत्तीसगढ़ में पाँचवाँ कुंभ बनाने की कोशिश हो रही है। राजिम में लगने वाले वार्षिक मेले को पाँचवाँ कुँभ कहा जाने लगा है। धार्मिक लोग इसका विरोध भी करते रहते हैं क्योंकि पुराणों में तो केवल चार ही कुंभ है। अब ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव है। कोई अचानक चौथा देव सामने ले आए, तो क्या होगा? वही बात है, लेकिन जो भी हो, राजिम कुंभ को इस दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए कि इसी बहाने यहाँ देश भर के साधु-संत आते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है। इस दृष्टि से यह कुंभ बुरा नहीं है। एक सांस्कृतिक-आध्यात्मिक मेला लोगों को आपस में जोड़ता है। यह जुड़ाव बना रहे, इसलिए यह पाँचवाँ कुंभ भी बना रहे। सरकार इसे जारी रखे। इसी बहाने लोग छत्तीसगढ़ आते है। और पूरे देश में अपने राज्य का नाम होता है।
2 Comments:
यह तो नया सुझाव दे दिया अपने पाँचवे कुम्भ के लिये नया पुराण लिखना क्या कठिन काम है ?
theek bqaat hai. nayaa puraan likhae vaale bhi taiyaar ho jayenge. bhale hi uski maanyataa n ho, lekin isee bahaane kuchh kalaakaro ko padmshri to mil hi sakati hai...
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