रोज़ यहाँ रूपया घिसैं,घर सब खाए खीर..
छत्तीसगढ़ के घाट पर,
भई अफसरन की भीर,
रोज यहाँ रूपया घिसैं,
घर सब खाए खीर..
भ्रष्टाचार का खेल....
छत्तीसगढ़ के भोलभालेपन को केवल बड़े अजगरों उर्फ अफसरों ने ही नहीं समझा है, छोटे-छोटे अफसर भी समझ चुके हैं, कि यहाँ तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहाई जा सकती है। विभाग कोई भी हो, वहाँ खुला खेल फर्रुखाबादी चल रहा है? ऐसा राम-राज कहीं नहीं होगा। खरीदी में, निर्माण कार्यों में डट कर चल रहा है भ्रष्टाचार। लोग पकड़ में भी आ रहे हैं, कुछ फरार भी है, लेकिन प्यार किया तो डरना क्या? अभी भी खेल जारी है। मौके का फायदा उठा कर काँग्रेस भी सामने आ गई(गोया उसके राज में सब कुछ ठीक-ठाक था। लोग जानते हैं कि उस दौर में भी भ्रष्टाचार चरम पर था) काँग्रेस ने मंत्रियों एवं अफसरों की सम्पत्ति सार्वजनिक करने की माँग की है। यह अच्छी पहल है। हालांकि यह भी सत्य है कि जो कुछ सार्वजनिक होता है, वह ऊँट के मुँह में जीरा की तरह होता है, लेकिन कुछ तो होता है। जनता इतने से ही संतुष्ट हो जाती है। बहरहाल करोड़ों की कमाई करने पर आमादा तंत्र से कौन ये सब काम करवा पाएगा, भगवान जाने। मुख्यमंत्री से ही उम्मीद है कि वे कुछ करेंगे।
स्वागतेय है यह घटना
राजधानी के पास के शहर दुर्ग की घटना का स्वागत किया जाना चाहिए। वहाँ के मशहूर स्वतंत्रता सेनानी और छत्तीसगढ़ी साहित्यकार निरंजनलाल जी गुप्ता के निधन के बाद उनकी बेटी और बहुओं ने उनकी अर्थी को काँधा दिया। बेटी ने मुखाग्नि भी दी। यह बड़ी बात है। अमूमन ऐसा होता नहीं है। परम्परा भी नहीं है। लेकिन गुप्ता जी अंतिम इच्छा यही थी। उनके जाने के बाद एक नया इतिहास लिखा गया। ठीक बात है, आखिर नारियाँ अपने परिजन को कंधा क्यों नहीं दे सकती? वे भी तो अपने परिजन के लिए उतनी ही आत्मीय थी, जितने घर के दूसरे पुरुष? औरतों को भी हक मिलना चाहिए। इस दृष्टि से गुप्ताजी के परिवार ने जो कुछ किया उसका स्वागत हो रहा है। गुप्ताजी नारियों को आगे लाने की कोशिश किया करते थे। उनकी रचनाएँ इस बात का सबूत हैं। कब तक समाज में यह प्रवत्ति बनी रहेगी कि मृत्यु के समय अंतिम संस्कार से महिलाओं को ही दूर रखा जाए। महिलाएँ कमजोर नहीं होती।
ग्रामीण खेलों का भी संरक्षण हो
आजकल क्रिकेट को क्रेज इतने जोरों पर है कि हाकी जैसे खेल तक हाशिये पर चले गए हैं, तब ग्रामीण या पारम्परिक लोक खेलों को पूछता ही कौन है लेकिन ऐसी बात नहीं है। राजधानी में पिछले दिनों लोक खेलों का आयोजन किया गया। इसमें लोगों ने सोत्साह भाग लिया। लोक खेल एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रशेखर चकोर इस आयोजन में आठ जिलों के दो-तीन सौ लोगों ने हिस्सा लिया। चकोर बरसों से ऐसे आयोजन करते रहे हैं। उन्होंने लोक खेलों पर पुस्तकें भी लिखी हैं। ऐसे आयोजन हर जिले में होने चाहिए। और सरकार का इसे पूर संरक्षण भी मिलना चाहिए। ऐसे आयोजनों में गाँव के ही लड़के भाग लेते हैं,ऐसा नहीं होना चाहिए। शहर के लोगों को भी परम्पराओं का पता चले। जींस और टॉप हपहन कर खुद को आधुनिक समझने की भूल करने वाली नई पीढ़ी को भी पता चले कि ग्रामीण खेलों में भी आनंद है। आनंद ही नहीं, परमानंद है। मनोरंजन भी है तो स्वास्थ्य भी है। सरकार और समाज के लोग पहल करेंगे तो वातावरण बन सकता है।
वेलेंटाइन डे के पहले ही...?
वेलेंटाइन डे(14 फरवरी)अभी आया नहीं है, लेकिन राजधानी रायपुर में बजरंग दल वाले सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि इस दिन शालीनता बरती जाए। ठीक बात भी है। वेलेंटाइन डे पश्चिमी संस्कति की देन है। इस दिन पूरे देश में जैसी अराजकता, जैसी फूहड़ताएँ देखने को मिलती है, उसे े र हैरत होती है, कि भारतीय समाज कहाँ जा रहा है? पश्चिमी संस्कति अह लोगों को आर्षित कर रही है। यही कारण है कि अश्लीलता भी स्वीकार्य होती जा रही है। ऐसे समय में अगर बजरंग दल वाले चेतावनी देते हैं तो गलत नही करते। क्योंकि अकसर यही देखा गया है कि वेलेंटाइन डे पर लड़के-लड़कियों को कुछ ज्यादा ही मस्ती चढ़ जाती है। इतनी कि वे भूल जाते हैं कि वे भारतीय है। उन्हें मर्यादा में रहना चाहिए। हाँ, बजरंग दल वाले पूरे प्रदेश में इस दिन देखेंगे कि वेलेंटाइन डे की आड़ में कुछ मनचले अश्लील हरकतें न करें। लेकिन दल वाले भी सात्विक तरीके से ही विरोध करें। वे हिंसा का सहारा न लें।
लुभावने पैकेज..?
ठीक बात भी है। लुभाना भी जरूरी है. तभी तो आकर्षण बनेगा। नक्सलियों के आतंक के कारण अब कोई बस्तर जा कर काम नहीं करना चाहता। जगदलपुर में मेडिकल कोलज तो बन गया है, लेकिन बहुत से विभाग खाली पड़े हैं। अब सरकार ने समझदारी का काम किया है। वहाँ के लिए आकर्षक पैकेज दिया है। अच्छा वेतनमान मिलेगा तो डॉक्टर जा सकते हैं। हर महीने एक लाख पैंसठ हजार रुपए वेतन ठीक है। अन्य सुविधाएँ भी हैं। उम्मीद है, कि अब जगदलपुर मेडिकल कालेज की ओर डॉक्टर जरूर आकर्षित होंगे। लेकिन इन सब के साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखना होगा, और वो है सुरक्षा का पैकेज। वेतन के साथ साथ तन की सुरक्षा भी जरूरी है।
नक्सली वारदातों में कमी?
केंद्र का तो ऐसा ही मानना है कि छत्तीसगढ़ में नक्सल-वारदातों में कमी आई है। अब यहाँ नक्सली उत्पात जारी है तो कोई क्या करे? केंद्र के पास आँकड़े हैं। ये माना कि कोई बड़ी वारदात नहीं हुई है, लेकिन रोज कुछ न कुछ हरकतें तो हो ही रही हैं। फिर भी संतोष किया जा सकता है, कि बड़ी घटना नहीं हुई है। जैसे सामूहिक हत्या। विशेष पुलिस फोर्सों की तैनाती भी एक कारण है। हो सकता है, भविष्य में और दबाव बने और नक्सलियों को बोरिया-बिस्तर बाँधना पड़ जाए।
6 Comments:
....हर महीने एक लाख पैंसठ हजार रुपए वेतन ठीक है। अन्य सुविधाएँ भी हैं। उम्मीद है, कि अब जगदलपुर मेडिकल कालेज की ओर डॉक्टर जरूर आकर्षित होंगे .....
अगर इसके पश्चात भी कोई नही जाता है तब तो .....!!!!
क्षमा करें भईया मैं आपके छत्तीसगढ़ डायरी को पढ नहीं पाया था, आपके शब्दों में बढिया छत्तीसगढ़ की डायरी लिख रहे है; बहुत बहुत धन्यवाद.
dhanyvaad...koi to parh raha hai, tippanee bhi kar rahaa hai...
अभी तो छापे ही पड़े हैं।
आगे की कार्यवाही क्या होगी?
वही ढाक के तीन पात्।
बहुत बढिया पोस्ट-आभार
कृपया शब्द पुष्टिकरण हटाएं
ham bhi padh rahe hain aadarniy
khushi hui, ki achchhe aur sachche log parh rahe hai...
Post a Comment