नक्सलियों से निपटने सेना की जरूरत नहीं
बस्तर में नक्सलियों से निपटने के लिए सेना की जरूरत नहीं है। यह बात एक बार फिर सामने आई है। और बात कही है केंद्रीय गृह मंत्री ने। पिछले दिनों वे राजधानी में थे। एक बैठक में उन्होंने कहा कि हमारी पुलिस और अर्धसैनिक बल ही पर्याप्त है। सचमुच सेना की मदद लेने के अनेक खतरे भी हैं। सेना सीमा पर ही ठीक है। आंतरिक मामलों से निपटने के लिए पुलिस और अर्धसैनिक बल ठीक रहते हैं। आमआदमी तो खैर इनको भी झेलना भी पड़ता है, फिर भी कोई बात नहीं, कुछ काम तो खैर होता ही है। लेकिन सेना अगर कार्रवाई करती है, तो बहुत से निर्दोष भी चपेट में आ जाते हैं इसलिए जो लोग यह कहते हैं, कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए सेना की मदद ली जाए, वे लोग उसके दुष्परिणामों पर विचार नहीं करते। इसलिए गृहमंत्री के बयान का स्वागत ही होना चाहिए, और सरकार की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह खा-पीकर अघाई-सी पुलिस को चुस्त करे ताकि वे दुरुस्त हो कर नक्सलियों का मुकाबला कर सकें।
नये राज्यपाल का आशावाद
नरसिंहन जी की जगह शेखरदत्त ने पदभार ग्रहण किया है। श्री दत्त यहाँ रह चुके हैं। बीस साल पहले वे रायपुर के कमिश्नर थे। अब राज्यपाल के रूप में उनकी नई पारी है। इस बीच लम्बा अनुभव भी वे ले चुके हैं। उन्होंने शपथग्रहण के बाद जो कुछ कहा, उसे देख कर यही लगता है, कि वे भी कुछ बेहतर करके दिखाएँगे। नक्सली समस्या के सामाधान के लिए उन्होंने कहा कि हम विकास के रास्ते पर चल कर नक्सली समस्या से लड़ेंगे। यह सकारात्मक सोच है। छत्तीसगढ़ में करोड़ों-अरबों का नुसकसान कर चुके नक्सलियों को मुँहतोड़ •ावाब देना है तो विकास ही एक रास्ता है। आज बस्तर शोषण का अड्डा बन गया है। नक्सली भी शोषण कर रहे हैं और तंत्र भी कर रहा है। दोनों के बीच आदिवासी पिस रहे हैं। इन सब का फायदा कोई तीसरा भी उठा रहा है। इसलिए यह जरूरी है कि बस्तर में ईमानदारी के साथ विकास कार्य हों, और भ्रष्ट अफसरों की खबर ली जाए।
बुरे फँसे काँग्रेसी विधायक और महापौर...
अतिरिक्त सद्भावना दिखाना भी खतरे से खाली नहीं होता। इस चक्कर में काँग्रेस की महापौर किरनमयी नायक और काँग्रेस के विधायक महंत रामसुंदर दास जी फँस गए। अब आलाकमाल को सफाई देनी पड़ रही है। हुआ यह कि पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक भागवत जी राजधानी पधारे। स्वयंसेवकों का पथसंचलन निकला तो महापौर ने एक जगह इनका स्वागत कर दिया। महंत जी ने भी स्वागत कर दिया। बस, काँग्रेस को यह घटना नागवार लगी। उन्होंने नोटिस भेज दिया। विचारधारा की दृष्टि से काँग्रेस और आरएसएस का कोई तालमेल नहीं है इसलिए काँग्रेस का भड़कना स्वाभाविक ही था। फिर भी सद्भावना भी कोई चीज होती है। शहर में हजारों स्वयंसेवक जमा है। जनप्रतिनिधि के रूप में स्वागत कर देने से कया फर्क पड़ जाता? विचारधारा अपनी जगह है, और सामाजिक लोकाचार अपनी जगह।
मेयर का सफाई अभियान
राजनीति में कई बार अनेक नौटंकियाँ करनी पड़ती हैं। लेकिन ये नौटंकियाँ बेकार नहीं जाती। इसका असर भी होता है। पिछले दिनों रायपुर की मेयर सफाई अभियान पर निकली। कुछ जगह पहुँच कर फावड़ा हाथ में लेकर नाली साफ करने लगी। उनको देख कर पार्षद भी भिड़ गए। इनको लगा देख कर सफाई कर्मियों को शर्म आई होगी, वे अपने काम को ईमानदारी के साथ करने लगे, लेकिन चार दिन की चाँदनी वाली हालत ही रही। फिर गंदगी, फिर बदहाली। जब तक नागरिक चेतना विकसित नहीं होगी, राजधानी की गंदगी दूर नहीं हो सकती। जिनके जिम्मे सफाई का काम है, वे ठीक से काम ही नहीं करते, और इधर आम लोग भी जहाँ-तहाँ गंदगी करते रहते हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि मेयर विचलित हों। खुद सफाई का स्वांग करने के पीछे भावना यही है, कि लोग अपनी जिम्मेदारी समझें और राजधानी को साफ रखे।
अफसर करे न चाकरी
राजधानी की मेयर नई हैं। महिला है। उनमें काम करने का नूतन उत्साह है, लेकिन अफसर तो पुराने हैं। घाघ हैं। वे काम ही नहीं करते। असहयोग कर रहे हैं। मेयर का दर्द यह है कि अफसर उनकी बात नहीं सुनते। कहना नहीं मानते। मेयर को चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि सिस्टम तो पहले से ही बिगड़ा हुआ है। जो अफसर काम न करने का आदी हो चुका है, वह इतनी जल्दी कैसे सुधरेगा? उन पर तो निरंतर दबाव बनाना पड़ेगा। कड़ी कार्रवाई करनी होगी, जब सुधरेंगे लोग। इसलिए नर हो न निराश करो मन को ,वाले गीत को ध्यान में रख कर मैडम मेयर को काम करना चाहिए। वेशक यह कारण भी हो सकता है कि मेयर महिला है। मेयर ने कुछ कहा है कि महिला होने के कारण लोग उन्हें महत्व नहीं दे रहे होंगे, लेकिन महिला ही पुरुषों को हिला सकती है। यह बात भी किसी से छिपी नहीं है। इसलिए पुरुष अफसरों सावधान..।
पुलिस का डंडा-प्रेम
यह तो अमर है। लिख-लिख कर कितने लोग मर-खप गए, लेकिन डंडा ऊँचा रहे हमारा..। इसे कोई फर्क नहीं पड़ा। अँगरेजों के समय भी खूब चला और अब भी चल रहा है। पिछले दिनों बिलासपुर के पास बोदरी नगर पंचायत में अनशनकारियों पर पुलिसिया डंडा चला। महिलाओं को भी नहीं छोड़ा। डंडे की आँख नहीं होती, दिल नहीं होता। वह चलता है, तो बस, चलता है। वहाँ लोग चुनाव स्थगित करने की माँग लेकर अनशन कर रहे थे। आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस दबाव बना रही थी। लोग भड़क गए। नारेबाजी तेज हो गई। बस पुलिस को ऐसे ही मौकों का इंतजार रहता है। यह केवल बोदरी का दर्द नहीं है, पूरे छत्तीसगढ़ का भी दर्द है। लेकिन इस दर्द की फिलहाल कोई दवा नजर नहीं आ रही है।
शबरी कन्या आश्रम की रजत जयंती
यहाँ चल रहा शबरी कन्या आश्रम ने पच्चीस वर्ष पूरे कर लिए। पिछले दिनों आश्रम ने रजत जयंती मनाई। वनवासी विकास समिति यह आश्रम चलाती है। इस आश्रम की खासियत यह है कि यहाँ नार्थ ईस्ट की बच्चियाँ रहती हैं। 67 बच्चियों में 62 बच्चियाँ अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, असम, मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय से आई हैं। इनका लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा सब समिति के माध्यम से हो रहा है। ये बच्चियाँ यहाँ रह कर संस्कार ग्रहण कर रही है। वहाँ की संस्कृति को छत्तीसगढ़ से परिचित करा रही हैं। इस आश्रम को एक ट्रस्ट ने दस लाख रुपए दिए। ऐसे काम करने वाले आश्रमों को मदद करने के लिए धनपतियों को आगे आना ही चाहिए।
बुधवार, 27 जनवरी 2010
छत्तीसगढ़ की डायरी-1
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