मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ अब गो-क्रांति की दिशा में

http://epaper.naidunia.com/नई दुनिया, रायपुर के२९-१२-२०१० के अंक में मेरा लेख देखें. गो-क्रांति को अलग तरीके से समझने की कोशिश की है.

रविवार, 19 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की डायरी

मगरमच्छों को भी पकड़ो.....
महिला पटवारी को रिश्वत की सजा
पिछले दिनों भ्रष्टाचार विरोधी दस्ते ने एक महिला सरपंच को रिश्वतखोरी के आरोप में रंगे हाथों पकड़ा और जेल भेज दिया। जो रिश्वत लेता है, उसे सजा मिलनी ही चाहिए। मगर सवाल यही है कि बारह हजार रुपये रिश्वत लेनी वाली महिला सरपंच तो पकड़ में आ गई, वे लोग कब पकड़ में आएंगे,जो करोडों की रिश्वत लेते हैं और कभी पकड़े ही नहीं जाते। पिछले कुछ वर्षों में अनेक लोग पकड़े गये मगर वे शातिर लोग अपने-अपने प्रभावों का इस्तेमाल करके बेदाग निकल गए। करप्शन ब्यूरो को बधाई कि वह अच्छा काम कर रहा है। रिश्वतखोरों को सजा मिलनी ही चाहिए। मगर जनता को और अच्छा तब लगेगा,जब वह मछलियों के शिकार के साथ-साथ मगरमच्छों को भी पकड़े। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचारी मगरमच्छ बढ़ते ही जा रहे हैं ।
कुछ की लालबत्ती जली तो कुछ की बुझी...
आखिर वही हुआ, जिसका अनुमान था। सरकार ने कुछ आयोगों, बोर्डों, निगम-मंडलों के अध्यक्षों की नियक्तियाँ कर दीं। इस बार कुछ पुराने लोगों का पत्ता साफ हो गया तो कुछ नये चेहरों को मौका मिला। पिछली बार कुछ लोगों के खिलाफ शिकायतें भी मिली थीं। इसलिए उन्हें दुबारा मौका नहीं मिला। तो कुछ लोगों को संगठन के काम के लिए उपयुुक्त समझा गया। इस बार पार्टी ने समझदारी से काम लिया। इसीलिए पूरी समर्पण के साथ पार्टी के लिए दिन-रात एक करने वाले कुछ नेताओं को मौका दिया गया। ये वे लोग हैं, जिनके बारे में हर बार यही कयास लगाये जाते थे, कि इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन इनके चाहने वाले हर बार निराश होते थे, लेकिन इस बार पार्टा ने कोई चूक नहीं की। खरसिया, अंबिकापुर, धमतरी, बालोद, अभनपुर जैसे सुदूर इलाके में रहने वाले जुझारू लोगों को राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया गया। इससे उनके समर्थकों में उत्साह बढ़ा है। इसका लाभ पार्टी को ही मिलेगा। और इधर जिन लोगों को लालबत्ती नहीं मिल सकी है, उनका भी कहीं न कहीं उपयोग किया ही जाएगा। वैसे अभी भी कुछ और नियुक्तियाँ शेष हैं। यानी पार्टी के लिए समर्पित कुछ और जुझारू लोगों को प्रतिसाद मिलने वाला है। किसको क्या मिलेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन अभी जिस तरह से कुछ लोगों को लालबत्ती का तोहफा दिया गया है, उसे देख कर लोगों का अनुमान है, कि दूसरे चरण में भी सुपात्रों का चयन होगा।
नक्सली के आत्मसमर्पण का अर्थ
पिछले दिनों बस्तर के एक नक्सली सोनसाय रावड़े ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यह समर्पण इस बात को दर्शाता है,कि अब नक्सलियों के बीच में काम करने वाले संवेदनशील लोगों की मानसिकता में बदलाव आने लगा है। आना ही चाहिए। पिछले कुछ महीने से बस्तर के लोग नक्सलियों की हिंसक गतिविधियों के विरुद्ध सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करते रहे हैं। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। समर्पण करने वाले सोनसाय ने भी यही माना है। अब वह चाहता है कि वह युवकों को सही दिशा दे और कोशिश करेगा कि वे राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़े न कि नक्सलियों के भरमाने में आएँ। प्रशासन ने सोनसाय के प्रति पूरी सहानुभूति दिखाई है। उसके पुनर्वास के लिए जितनी भी कोशिश हो सके, होनी चाहिए और यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, कि उसे पूरी तरह संरक्षण मिले। समर्पण के बाद जाहिर है नक्सली सोनसाय के शत्रु हो जाएंगे। यह सब जानते हुए भी सोनसाय ने खतरा उठाया है, इसलिए वह नि:संदेह बधाई का पात्र है।
आदिवासियों को आरक्षण
भाजपा सरकार इस वक्त फूँक-फूँक कर कदम रख रही है। जनता का दिल जीतने के अनेक उपायों में एक नया उपक्रम है आदिवासियों को तेईस प्रतिशत आरक्षण। आदिवासियों को बेहतर सुविधाएँ, अनुकूल अवसर देने का यही समय है। ऐसे वक्त में जबकि नक्सली आदिवासियों के हित के नाम पर उनका और दूसरे लोगों का लहू बहाने का काम कर रहे हैं, सरकार ने आदिवासियों को यह बता दिया है, कि यह सरकार उनकी चिंता करती है। आदिवासियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने की व्यवस्था से समाज के लोग भी खुश हैं। अब समय आ गया है, कि आदिवासी समाज को समाज की सक्रियधारा से जोड़ा जाए। उनकी शिक्षा,स्वास्थ्य, पेयजल जैसे बुनियादी मुद्दों के साथ उन्हें रोजगार के भी सम्मानजनक अवसर मिलेंगे, तभी उनका समग्र विकास होगा।
विकलांगों के बारे में सोचने की जरूरत
समाज में सकलांगों के बारे में सोचा ही जाता है। उनके लिए अनेक योजनाएं भी बनती है। लेकिन समाज में ऐसी संस्थाएँ इक्का-दुक्का ही हैं, जो विकलांगों के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचती हैं। छत्तीसगढ़ की इकलौती संस्था अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद इस दिशा में गंभीरता के साथ काम कर रही है। पिछले दिनों संस्था ने साहित्यकारों को विकलांगों के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया था। अब वे हर साल की तरह विकलांग युवक-युवतियों की शादी की तैयारी कर रहे हैं।26 दिसंबर को रायपुर में परिचय सम्मेलन रखा गया है। 13 फरवरी 2011 को सामूहिक विवाह का आयोजन किया जाएगा । सबसे अच्छी बात यह है, कि इस आयोजन में समाज के हर वर्ग के लोग सहयोग करते हैं। मारवाड़ी युवा मंच और ब्राह्मण समाज की कुछ ज्यादा उत्साह के साथ भागीदारी निभाता है। सरकार विवाहित जोड़ों को आर्थिक मदद करती है। समाज और सरकार साथ-साथ चले तो बहुत-सी समस्याएँ हल होती रहेगी।

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

अफसरों पर लगाम: एक सार्थक काम

लोकप्रिय समाचारपत्र नईदुनिया, रायपुर में आजके अंक मे प्रकाशित लेख. अखबार वेब पर भी उपलब्ध है.

सुनिए गिरीश पंकज को