शनिवार, 24 जुलाई 2010

छत्तीसगढ़ की डायरी

अब खेलों में राजनीति नहीं होगी ?
अब ऐसा मान कर चला जा रहा है, कि छत्तीसगढ़ में खेलों के मामले में कोई राजनीति नहीं होगी। यहाँ का ओलंपिक संघ अपने अच्छे कामों के लिए चर्चित भले न रहा हो, गुटबाजी के लिए जरूर कुख्यात रहा है। पदाधिकारी ही एक-दूसरे पर खुलेआम आरोप लगाते रहे हैं। हार कर संघ के लोगों ने तय किया कि अब इस संघ का अध्यक्ष मुख्यमंत्री को ही बना दिया जाए। मान-मनौवल के बाद मुख्यमंत्री राजी हो गए। अब उम्मीद की जाती है, कि सब कुछ ठीकठाक हो जाएगा। संघ के आजीवन संरक्षण विद्याचरण शुक्ल हैं। राजनीति के पुराने खिलाड़ी। उम्मीद की जा सकती है, कि विपरीत विचारधारा वाले दो दिग्गज मिलजुल कर छत्तीसगढ़ की खेल -संस्क ृति को शिखर तक ले जाएँगे। राजनीति में राजनीति उर्फ पॉलिट्किस होती रहती है तो कोई बात नहीं, कम से कम ओलंपिक संघ में यानी खेल में राजनीति न हो। सब यही कामना कर रहे हैं। डॉ. रमन सिंह आ गए हैं, तो यह बात पक्की है, कि वे खेल के मामले में राजनीति से ऊपर उठ कर ही सोचेंगे। वे ऐसा करते भी रहे हैं। उन्हें साफ भी किया है कि वे जितना हो सकेगा, बेहतर करने की कोशिश करेंगे।
क्या बात है, स्वागत है नड्डा जी का
छत्तीसगढ़ में नड्डा यहाँ के लोगों का प्रिय व्यंजन रहा है। चाय के साथ वाय के रूप में नड्डा खाने का प्रचलन रहा है। इसीलिए जब भाजपा ने जगतप्रसाद जी नड्डा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया तो यहाँ के लोगों ने उनका अतिरिक्त उत्साह के साथ स्वागत किया है। लोग यह मान कर चल रहे हैं, कि उनके आने से भाजपा की लोकप्रियता में इजाफा होगा। जैसा पता चला है, कि व सिद्धांतवादी हैं। मिलनसार हैं। उनके प्रभारी बनने से पार्टी को लाभ ही मिलेगा। नड्डा जी यहाँ बहुत जल्दी ही लोकप्रिय हो जाएंगे, क्योंकि उनका सरनेम यहाँ वर्षों से लोकप्रिय है। स्वाद के लिए लोग यहाँ नड्डे का स्वाद चखते रहे हैं। अब भाजपा को नए प्रभारी मिलने के कारण संगठन की दृष्टि से नया स्वाद मिलेगा, पार्टी के लोगों को इसकी आशा है। छत्तीसगढ़ की दो भाजपा नेत्रियों को चंड़ीगढ़ और उत्तरप्रदेश का प्रभार मिला है। इससे एक बात यह भी साफ हुई है, कि यहाँ की स्त्री-शक्ति पर भाजपा ने भरोसा किया है। यह बड़ी बात है।
आखिर हो ही गए निलंबित?
यानी संस्पेंड। जी हाँ, स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी है डॉ. आदिले। उन पर आरोप है, कि उन्होंने जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में अपनी लड़की की भर्ती फर्जी तरीके से कराई थी। बहुत दिन से मामला सुर्खियों में था। लोगों को आश्चर्य हो रहा था, कि अब तक इनका निलंबन क्यों नहीं हुआ। लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद। आखिर हो ही गए निलंबित। मतलब यह कि गलत काम करने की सजा मिलती ही है। भले ही विलंब हो जाए। अब यह मुहावरा भी गढ़ा जा सकता है, कि सरकार के घर देर हैं अंधेर नहीं। वैसे यहाँ कुछ  सरकारी अफसर ऐसे हैं, जो भर्ती के मामलों में गोलमाल करते रहे हैं। पिछले दिनों फर्जी जाति प्रमाण पत्र के भी कुछ मामले सामने आए। अभी एक पार्षद भी इस लपेटे में आ चुके हैं। उनका हश्र क्या होगा, यह बाद में तय होगा ही।
छेड़ख़ानी की तो खैर नहीं....
राजधानी में जब से नए कप्तान ने कार्यभार संभाला है, पुलिस कुछ ही चुस्त-दुरुस्त न•ार आ रही है। यातायात व्यवस्था कुछ सुधरती तो दीख रही है। अगर यही हाल रहा तो सड़कों पर चलने से तनाव बढऩा कुछ कम हो जाएगा। अब ऐसा हो तो अच्छा है, वरना रायपुर में यह कहावत अकसर चरितार्थ होती है, कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। खैर, अभी जो हो रहा है, उससे शहर सुधर ही रहा है। पिछले दिनों पुलिस ने स्कूलों के प्राचार्यों, समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों की बैठक की और कानून-व्यवस्था की स्थिति बहाल रखने के लिए क्या किया जाए, इस पर चर्चा भी हुई। राजधानी में छेडख़ानी की बढ़ती समस्या पर भी गंभीरता से विचार हुआ। हेल्पलाइन भी शुरू की गई है। उसका नंबर है-1091। उम्मीद की जा सकती है, कि राजधानी की लड़कियाँ, महिलाएँ इस नंबर को कंठस्थ कर लेंगी और जब कभी कोई उन्हें परेशान करने की कोशिश करे, इस नंबर पर शिकायत करके उसको सबक सिखाएँगी। शातिर लोगों के हौसले भी कुछ पस्त तो होंगे ही।
शराब से बड़ा लगाव है ...?
राजधानी में लोग आंदोलन करके शराब दूकानें बंद करवाते हैं मगर होता यह है, कि कुछ दिन बाद वही ढाक के वही तीन पात। यानी दूकानें फिर खुल जाती हैं। अभी पिछले दिनों टिकरापारा में स्कूल के सामने चल रही शराब दूकान को आंदोलन करने के बाद बंद कर दिया गया था। लोग खुश थे कि चलो, स्कूली बच्चों को शराबियों से मुक्ति मिली। लेकिन कुछ दिन बाद शराब दूकान फिर शुरू हो गई? यह बेशर्मी की हद है। इस बेशर्मी के विरु द्ध पार्षद एवं नागरिकों को फिर सड़क पर उतरना पढ़ा। समझ में नहीं आता, कि जब यह पता चल गया है, कि लोग शराब दूकान नहीं चाहते तो ठेकेदार ऐसी गुस्ताखी करता ही क्यों है? क्या उसे किसी का संरक्षण मिल जाता है। परदे के पीछे की कहानी साफ नहीं हो पाती। बहरहाल, स्वागत उस नागरिक चेतना का है जो मरी नहीं है। अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का साहस ही हमें मनुष्य बनाए रखता है।
वाह, पैंतीलीस पुस्तकालय खुलेंगे....
यह एक अच्छी खबर है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश के स्कूलों में अब पुस्तकालय खुलेंगे। पैंतालीस हजार स्कूलों में पुस्तकालय? सोचिए, क्या मंजर होगा। बच्चों को पाठ्य पुस्तक के बाहर भी झाँकने को सुअवसर मिलेगा। आज हिंदी में स्तरीय बाल साहित्य की कोई कमी नहीं लेकिन वह बच्चों तक पहुँच नहीं पा रहा है।  लेकिन पर स्कूल में अगर एक पुस्तकालय खुल जाए तो बाल साहित्य की कमी पूरी हो सकती है। लेकिन इसके लिए एक सावधानी भी बरतने की जरूरत है। बाल साहित्य के नाम पर बहुत कुछ कचरा साहित्य भी परोसा जाता है। इसलिए यह जरूरी है, कि खरीदी के लिए अच्छे जानकार बाल साहित्यकारों की एक टीम भी बनानी चाहिए। उनकी अनुशंसा के आधार पर ही बाल साहित्य खरीदना चाहिए। खैर, ऐसा होगा या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन पुस्तकालय खुलने से बच्चों तक कुछ न कुछ सत्साहित्य तो पहुँचेगा ही। इस निर्णयके लिए शिक्षा विभाग की जितनी तारीफ की जाए कम है। 

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

ब्लाँग आँफ द मंथ...पुरस्कार

इस साल के मार्च ,अप्रैल और मई के लिए ब्लाँग आँफ द मंथ का पुरस्कार छीटेँ और बौछारेँ ,ग्यान दर्पण ,गिरीश पंकज को

हर महीने  की तरह इस बार भी ब्लाँग आँफ द मंथ के पुरस्कारो की घोषणा कर दी  गयी है । ब्लाँगर साथियो को उत्साहित करने के लिये पिछले साल शुरू  किये गये इस पुरस्कार के अन्तर्गत महीने  के सर्वश्रेठ ब्लाँग को चुनकर उन्हे पुरस्कृत किया जाता है । ईटिप्स ब्लाँग टीम आप लोगो की तरह ही कोई कमाई नही करती , अब तक हिन्दी टिप्स ब्लाग ,सलीम खान के ब्लाग ,उङनतश्तरी ,प्रोपर्टी संसार ,बेचैनी ब्लाग ,छम्मक छल्लो ब्लाग इत्यादि को ये पुरस्कार दिया जा चुका है । हमने ब्लाँग चयन के लिये एक समिति "BLOG OF THE MONTH FOUNDATION" बनाई है जो इस कार्य को बखूबी कर रही है । हम न तो कोई लाभ कमाते हैँ और ना ही पुरस्कार स्वरुप कोई राशि किसी को दी  जाती है ।
मार्च-2010 के लिये यह आनलाँईन पुरस्कार आपके अपने पसंदीदा ब्लाँग "छीटेँ और बोछारेँ" को दिया जा रहा है।
वहीँ अप्रैल-2010 के लिये यह पुरस्कार आपके अपने चहेते ब्लाँग "ग्यान दर्पण" को दिया जा रहा है । इसके सानदार लेखोँ और ब्लाँग जगत मे सक्रीय भागीदारी के लिये ग्यान दर्पण को यह पुरस्कार दिया जा रहा है ।
वहीँ मई-2010 के लिये यह पुरस्कार छत्तीसगढ के प्रमुख साहित्यकार गिरीश पंकज जी के दो ब्लागोँ "गिरीश पंकज","सदभावना दर्पण" को सामूहिक रुप से दिया जा रहा
है



ईटिप्स ब्लाँग टीम की खबर 

सोमवार, 19 जुलाई 2010

शोक समाचार


जगदीश उपासने को पितृशोक 
इंडिया टुडे के कार्यकारी सम्पादक जगदीश उपासने एवं भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ के प्रदेश उपाध्यक्ष  सच्चिदानंद उपासने के पिता श्री दत्तात्रय उपासने (वर्ष 87) का सोमवार को रायपुर में निधन हो गया। वे प्रख्यात समाज सेवी थे, स्व. उपासने की धर्मपत्नी श्रीमती रजनीताई उपासने रायपुर शहर से विधायक भी रही हैं। उपासने परिवार का राजनीति एवं समाज सेवा में काफी योगदान रहा है। परिवार के मुखिया के नाते स्व. उपासने ने आपात काल का वह दौर भी झेला था, जब उनके परिवार के अधिकतर सदस्य जेल में डाल दिए गए थे। भाजपा परिवार में भी उनका अभिभावक जैसा सम्मान था। यही कारण है कि जब स्व. उपासने ने स्थानीय अस्पताल में अंतिम सांस ली उस समय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी वहां उपस्थित थे। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं। स्व. उपासने का अंतिम संस्कार शाम 4 बजे मारवाड़ी श्मशान घाट, रायपुर में किया।
संजय द्विवेदी द्वारा प्रेषित खबर.

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

द्वितीय प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान

प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान 

मधुरेश और ज्योतिष जोशी को

रायपुर । द्वितीय प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान से प्रतिष्ठित कथाआलोचक मधुरेश और युवा आलोचक ज्योतिष जोशी को सम्मानित किया जायेगा । यह सम्मान उन्हें 31 जुलाई, प्रेमचंद जयंती के दिन रायपुर, छत्तीसगढ़ में आयोजित द्वितीय अखिल भारतीय प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह में प्रदान किया जायेगा । उक्त अवसर पर शताब्दी पुरुष द्वय अज्ञेय और शमशेर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया है । यह सम्मान हिन्दी आलोचना की परंपरा में मौलिक और प्रभावशाली आलोचना दृष्टि को प्रोत्साहित करने के लिए 2 आलोचकों को दिया जाता है। संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर देश के दो आलोचकों को सम्मान स्वरूप क्रमश- 21 एवं 11 हज़ार रुपये नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं प्रमोद वर्मा के समग्र प्रदान कर सम्मानित किया जाता है । इसमें एक सम्मान युवा आलोचक के लिए निर्धारित है ।
चयन समिति के संयोजक जयप्रकाश मानस ने अपनी विज्ञप्ति में बताया है कि इस उच्च स्तरीय निर्णायक मंडल के श्री केदार नाथ सिंह, डॉ. धनंजय वर्मा, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विजय बहादुर सिंह और विश्वरंजन ने एकमत से वर्ष 2010 के लिए दोनों आलोचकों का चयन किया है । ज्ञातव्य हो कि मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई और श्रीकांत वर्मा के समकालीन आलोचक, कवि, नाटककार और शिक्षाविद् प्रमोद वर्मा की स्मृति में गठित संस्थान द्वारा स्थापित प्रथम आलोचना सम्मान से गत वर्ष श्रीभगवान सिंह और कृष्ण मोहन को नवाज़ा गया था ।
बरेली निवासी मधुरेश वरिष्ठ और पूर्णकालिक कथाआलोचक हैं जिन्होंने पिछले 35 वर्षों से हिन्दी कहानी और उपन्यासों पर उल्लेखनीय कार्य किया है । उनकी प्रमुख चर्चित-प्रशंसित कृतियाँ है - आज की कहानी : विचार और प्रतिक्रिया, सिलसिला : समकालीन कहानी की पहचान', हिन्दी आलोचना का विकास, हिन्दी कहानी का विकास, हिन्दी उपन्यास का विकास, मैला आँचल का महत्व, नयी कहानी : पुनर्विचार, नयी कहानी : पुनर्विचार में आंदोलन और पृष्ठभूमि, कहानीकार जैनेन्द्र कुमार : पुनर्विचार, उपन्यास का विकास और हिन्दी उपन्यास : सार्थक की पहचान, देवकीनंदन खत्री (मोनोग्राफ), रांगेय राघव (मोनोग्राफ), यशपाल (मोनोग्राफ), यशपाल : रचनात्मक पुनर्वास की एक कोशिश , अश्क के पत्र, फणीश्वरनाथ रेणु और मार्क्सवादी आलोचना आदि । डॉ. ज्योतिष जोषी युवा पीढ़ी में पिछले डेढ़ दशक से अपनी मौलिक साहित्य, कला और संस्कृति आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए अपनी प्रखर उपस्थिति से सबका ध्यान आकृष्ट किया है । मूलतः गोपालगंज बिहार निवासी श्री जोशी की प्रमुख कृतियाँ हैं – आलोचना की छवियाँ, विमर्श और विवेचना, जैनेन्द्र और नैतिकता, साहित्यिक पत्रकारिता, पुरखों का पक्ष, उपन्यास की समकालीनता, नैमिचंद जैन, कृति आकृति, रूपंकर, भारतीय कला के हस्ताक्षर, सोनबरसा, संस्कृति विचार, सम्यक, जैनेन्द्र संचयिता, विधा की उपलब्धिःत्यागपत्र व भारतीय कला चिंतन (संपादन) ।


मंगलवार, 13 जुलाई 2010

प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित

प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित
मुक्तिबोध, परसाई और श्रीकांत वर्मा के समकालीन तथा हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक, कवि, नाटककार, विचारक और शिक्षाविद् श्री प्रमोद वर्मा की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा वर्ष 2009 से दो राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्रारंभ किये गये हैं । यह सम्मान हिन्दी आलोचना की परंपरा में मौलिक और प्रभावशाली आलोचना दृष्टि को प्रोत्साहित करने के लिए 3 आलोचकों को दिया जाता है। वर्ष2010-11 के सम्मान हेतु निम्नानुसार प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैः-

प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान-
इस सम्मान के अंतर्गत 40 वर्ष से अधिक आयु वाले आलोचक की ऐसी मौलिक आलोचनात्मक कृति जो पिछले पाँच वर्षों में प्रकाशित हुई हो, पर विचार किया जायेगा । सम्मान के अंतर्गत अप्रकाशित पांडुलिपि भी स्वीकार किये जायेंगे । पुरस्कार स्वरूप चयनित आलोचक को संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्र स्तरीय समारोह में 21 हज़ार रुपये नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह आदि से सम्मानित किया जायेगा।

प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान (युवा) -
इस सम्मान के अंतर्गत 40 साल से कम आयु वाले युवा आलोचक के ऐसे मौलिक आलोचनात्मक लेखन, प्रकाशित कृति या अप्रकाशित पांडुलिपि पर विचार किया जायेगा जो आलोचना के प्रचलित प्रतिमानों से हटकर एवं प्रभावकारी हो । ऐसे आलोचकों की कृतियाँ पिछले 2 वर्षों के भीतर प्रकाशित हुई हो । सम्मानस्वरूप चयनित आलोचक को संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्र स्तरीय समारोह में 11 हज़ार रुपये नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह आदि से सम्मानित किया जायेगा ।

प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान (राज्य स्तरीय) –
इस सम्मान के अंतर्गत छत्तीसगढ़ राज्य के आलोचकों को उनकी मौलिक आलोचनात्मक लेखन, प्रकाशन के लिए सम्मानित किया जायेगा । ऐसे आलोचकों की कृति पिछले एक वर्ष के भीतर प्रकाशित हुई हो । सम्मान चयनित आलोचक को संस्थान द्वारा 7 हज़ार रुपये नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह आदि से सम्मानित किया जायेगा ।

निर्णायक मंडल –
श्री केदार नाथ सिंह, श्री गंगाप्रसाद विमल, डॉ. धनंजय वर्मा, श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, श्री विश्वरंजन ।
निर्णायक मंडल (राज्य स्तरीय)-  
श्री प्रभात त्रिपाठी, डॉ. बलदेव, डॉ. सुशील त्रिवेदी, श्री गिरीश पंकज, श्री विश्वरंजन

नियमावली –
1.       प्रविष्टि के रूप में प्रकाशित कृति या पांडुलिपि की दो प्रतियाँ भेजना होगा ।
2.       प्रविष्टि के साथ आलोचक का संक्षिप्त बायोडेटा और छायाचित्र भेजना आवश्यक होगा ।
3.       प्रविष्टि कोई प्रकाशक, समीक्षक, प्रशंसक या स्वयं आलोचक भी भेज सकते हैं ।
4.       प्रविष्टि प्राप्त होने की अंतिम तिथि – 30 मार्च, 2011 ।
5.       प्रविष्टि भेजने का पता – जयप्रकाश मानस, कार्यकारी निदेशक, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़ – 492001
6.       अन्य जानकारी के लिए मोबाईल नंबर 94241-82664 या ई-मेल-pandulipipatrika@gmail.com  या हमारी वेबसाइट www.pramodvarma.com से संपर्क कर सकते हैं ।

जयप्रकाश मानस
कार्यकारी निदेशक
                                                 प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छत्तीसगढ़
           एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001

रविवार, 11 जुलाई 2010

छत्तीसगढ़ की डायरी

छत्तीसगढ़ में घोटाले की सड़क...
निर्माण और घोटाले की पक्की दोस्ती होती है। दोनों साथ-साथ रहते हैं। पीते-खाते हैं। खाते-पीते भी है। राज्य बनने  के बाद यह सिलसिला यहाँ कुछ ज्यादा तेज हुआ है। पहले भोपाल के लोग (यानी नेता, अफसर और ठेकेदार की तिकड़ी)खाते-पीते थे, अब रायपुर में लोग खाते-पीते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत घटिया सड़कें बनती हैं। मिली-जुली कुश्ती होती है। दिल्ली से आने वाला पैसा कुछ लोगों की जेबों में चला जाता है। घटिया सड़क बनाने के आरोप में कुछ ठेकेदारों को तो काली सूची में डाल दिया गया है, मगर कुछ अफसर साफ-साफ बच निकले हैं। खेल के सूत्रधार तो अफसर भी होते हैं। अकेले अफसर कुछ  नहीं कर सकते। हिस्सेदारी की बात गलत नहीं है। अब कहा जा रहा है, कि जो सड़के घटिया बनी हैं, उन्हें फिर बनाया जाएगा। सड़क फोकट में तो बनेगी नहीं, जाहिर है फिर वहीं चक्कर शुरू होगा। नए ठेकेदार सामने आएंगे। और अगर ईमानदारी से देखभाल नहीं की गई तो फिर घटिया सड़कों पर चलना पड़ेगा।
नक्सलियों से निपटने की तैयारी
यह ऐसी तैयारी नहीं है, कि अब सेना धावा बोल देगी। यह तैयारी है बौद्धिक। यह भी जरूरी काम होता है। 14 जुलाई को दिल्ली में नक्सल समस्या से पीडि़त राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र के साथ मिल-बैठ कर विचार करेगें, कि नक्सलियों से कैसे निबटा जाए। क्या सेना की मदद लें, अद्र्धसैनिक बल और बढ़ाएँ या सिपाहियों को और ज्यादा चुस्त करें। जो भी हो, कोई निर्णायक रणनीति बननी ही चाहिए। क्योंकि इधर अती हो रही है। नक्सलियों का एक नेता आजाद मारा गया है, तब से वे और अधिक बौखला गए है। एक दौर था जब जयपक्राश नारायण और विनोबा भावे जैसे महान नेताओं ने डकैतों का आत्म समर्पण करवा दिया था। आज भी यह काम हो सकता है। लेकिन दुख इस बात का है कि अब वैसे महान लोग हैं नहीं। खादी का कुरता पहन कर इधर-उधर डोलने वाले कुछ लोग संदिघ्ध हो गए हैं। कोई विदेशी मदद से अपना एनजीओ चला रहा है, तो कोई नक्सलियों के पक्ष में खड़ा है। बहरहाल, समझ में नहीं आ रहा, कि किया क्या जाए। लेकिन उम्मीद है, कि दिल्ली की बैठक कोई ठोस नतीजे के साथ खत्म होगी।
राजधानी के किशोर अपराधी
राजधानी में आए दिन लूटपाट, उठाईगीरी और हिंसक वारदातें हो रही हैं। कुछ लोग पकड़ में भी आ रहे हैं। दु:खद बात यह है कि बहुत-से मामले में किशोर और बिल्कुल युवा वर्ग के अपराधी सामने आ रहे हैं। अभी पिछले दिनों कुछ युवक पकड़े गए, इनमें एक राजनीतिक दल के सदस्य भी था। यह चिंतास्पद बात है। और ऐसा नहीं कि यह अभी इनकी संख्या बढ़ गई है। पिछले लंबे अरसे से किशोर-युवा ही पकड़ में आ रहे हैं। ये छोटे-मोटे अपराधी आने वाले समय के बड़े अपराधी हैं। सही शिक्षा का अभाव, नैतिक वातावरण की कमी और घर-परिवार का असर इन लड़कों को गुमराह बना ही देता है। इसलिए जरूरी हो जाता है, कि शालाओं में बच्चों के लिए नैतिक शिक्षा के पाठ जरूरी किए जाएं जो, जो अब लगभग समाप्त-से हो गए हैं।
बारिश में शहर
बारिश आती है और शहर के प्रशासन का असली चेहरा सामने आने लगता है। गड्ढे ही गड्ढे हो जाते हैं और इनमें पानी भरने और उसमें लोगों के धँसने का सिलसिला शुरू हो जाता है। गंदगी और उसके कारण होने वाली बीमारियाँ भी बढ़ जाती हैं। प्रशासन बारिश के पहले बड़े-बड़े वादे करता है, लेकिन वह कुछ कर नहीं पाता। और खामियाजा भुगतना पड़ता है सामान्यजन को। बारिश में शहर कई बार टापू-सा लगने लगता है। अनेक कालोनियों में कीचड़ ही कीचड़ नजर आता है। सूखे हुए तालाबों वाला शहर तालाबों में पट जाता है। जिधर देखो, उधर एक तालाब। दुर्घटनाएँ बढ़ती जाती हैं। शहर में बदबू और बीमारियों का साम्राज्य छाया रहता है। इस बार भी यही हो रहा है। महापौर खुद निकल रही है, नालियों से कचरे निकलवा रही है। लेकिन यह भी सच है कि  कोई कहाँ-कहाँ जाए? आम आदमी भी ग•ाब की शै है। नालियों को चोक आदमी ही करता है। घर का, दूकान का सारा कचरा नालियों में ही डालता है। जाहिर है बरसात में नालियाँ बजबजाने लगती हैं। इसलिए नागरिकों का भी दायित्व है कि वह शहर को साफ रखें। वरना भुगतना उन्हीं को है।
गोवंश को बचाने के लिए साधुवाद..
गौ माता भाजपा गोवंश विकास प्रकोष्ठ के सदस्यों को धन्यवाद दे रही है, जिन्होंने सौ से ज्यादा गायों को कटने से बचा लिया। पिछले दिनों राजधानी और आसपास के कुछ शहरों से गो प्रेमियों ने कत्लखानों के लिए लेजाई जा रही गायों को पकड़ लिया। तस्करों को पुलिस के हवाले भी किया। सच बात तो यह है कि गो वंश की तस्करी का सिलसिला जारी है। कभी-कभार गायें पकड़ में आ जाती है, ये अलग बात है। आए दिन गायों की तस्करी होती रहती है।  चोरी-छिपे गायें भी कटती रहती हैं। राजधानी में भी यह अपराध हाता है। गोवंश विकास प्रकोष्ठ के सदस्यों को सतत निगरानी रखनी चाहिए। संदिग्ध इलाकों में घूम-घूम कर जायजा लेना चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो गो वंश कटता ही रहेगा।
लौकी के जूस का डर
पिछले दिनोंदिल्ली के एक वैज्ञानिक की मौत लौकी के जूस पीने से हो गई। रायपुर और छत्तीसगढ़ के लोग भी जागरूक हैं। वे भी लौकी और अन्य फलों के जूस पीते रहते हैं। दिल्ली में हुई मौत के पीछे कारण यह बताया जा रहा है, कि वैज्ञानिक ने जो जूस पीया, वह काफी कड़वा था। वह मर गया और उसकी पत्नी अस्पताल में भरती हो गई। लौकी अगर कड़वी हो तो उसका जूस नहीं पीना चाहिए। दूसरी बात यह भी है, कि आजकल फल-सब्जियों में आक्सीटोसिन का इंजेक्शन भी लगा दिया जाता है। इससेभी स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। राजधानी में बाजार में बिकने वाली सब्जियाँ भी संद्ग्धि नजर आती है। दरअसल पैसे कमाने की हवस के कारण समाज के कुछ लोग इतना नीचे गिर गए हैं, कि उनके लिए नैतिकता जैसे शब्द बेमानी हो गए हैं। अब लोग ही समझदारी से काम लें और किसी भी फल-सब्जी का जूस सेवन करने से पहले उसकी गुणवत्ता परख लें। बेहतर तो यही है कि लोग बागवानी करें और अपनी जरूरत की फल-सब्जियाँ खुद उगाने की दिशा में भी विचार करें।

बुधवार, 7 जुलाई 2010

श्रद्धांजलि...

रामशंकर अग्निहोत्री , अब ऐसे लोग कहाँ से लायेंगे?                                                                                       
वरिष्ठतम पत्रकार और लेखक रामशंकर अग्निहोत्री जी का अचानक यूं चला जाना हजारों लोगों को दुःख में  डुबो गया. आज (७ जुलाई) सुबह उनका निधन हो गया. संध्या देवेन्द्रनगर स्थित श्मशान घाट में सैकड़ों लोगो ने उन्हें अश्रुपूरित विदाई दी. उनके अंतिम संस्कार में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री समेत अनेक मंत्री, सांसद एवं विधायक शामिल हुए. उनको अंतिम विदाई देने के लिये मीडिया जगत के भी अनेक नामचीन चेहरे मौजूद थे. 
अभी पाँच दिन पहले की बात है. उनसे मेरी मुलाकात  हुई थी. उन्होंने बताया था, कि  वे राममनोहर लोहिया पर एक पुस्तक सम्पादित कर रहे हैं. मानव अध्ययन शोधपीठ, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के अध्यक्ष के रूप में वे गाँधी,लोहिया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों पर एक बड़ा सेमीनार भी करने की तैयारी में थे. उनका उत्साह देख कर हर कोई दंग रह जाता था. वे पचासी साल के हो चुके थे और  बेहद स्वस्थ और फुर्तीले नज़र आते थे. इस अवस्था में भी किसी युवक की तरह सक्रिय रहते थे. मैंने उनका बहुत नाम सुन रखा था. उनके अनेक राष्ट्रवादी लेख भी इधर-उधर पढ़ता रहता था. लेकिन पिछले  कुछ सालों से उनका रायपुर आना-जाना कुछ बढ़ गया था, इसलिए किसी न किसी  कार्यक्रम में उनसे  भेंट हो जाती थी.
मैंने उन्हें हमेशा एक विनम्र एवं नैतिक व्यक्ति के रूप में ही पाया. वे अनुभव की आंच में तप कर खरे हुए थे. अनेक समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाने के बात वे पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानव अध्ययन शोधपीठ के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे थे. आज जब विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी से उनके बारें में चर्चा होने लगी, तो उन्होंने बताया, कि  वे विश्वविद्यालय में भी बेहद सक्रिय रहते थे. अखबारों में कोई महत्वपूर्ण खबर छपती थी तो वे कटिंग काट कर सन्दर्भ सामग्री के रूप में सहेज कर रखने लिये हमलोगों को दे दिया करते थे. तीन दिन पहले जब अग्निहोत्री जी अस्पताल में भरती हुए तो कृत्रिम साँस  के लिये उन्हें मास्क लगाया गया था. लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति उन्हें देखने पहुंचता, वे मास्क निकलकर भावी कार्यक्रमों के बारे में बात करने लग जाते थे. मुख्यमंत्री डा. रमन सिंग, और संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल आदि भी  उन्हें देखने पहुंचे. सभी से उन्होंने कहा, कि अब मै स्वस्थ हो कर फिर सक्रिय होना चाहता हूँ. प्रदेश के मंत्री राजेश मूणत ने चर्चा के दौरान मुझे बताया कि, पिछले दिनों उन्होंने लगा कि उनका स्वास्थय  कुछ ज्यादा खराब हो रहा है, तो उन्होंने कहा था, ''मैं भोपाल जाऊँगा चेकअप कराने'', तो राजेश मूणत ने उनसे कहा, था कि ''वहां क्यों जायेंगे. यही आपका बढ़िया इलाज़ हो जाएगा''. इस पर मुसकरा कर चुप हो गए.
अग्निहोत्री जी भाजपा के थिंक टैंक की तरह थे. इसलिए भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता से उनके जावन और आत्मीय सम्बन्ध थे. यही कारण है, कि आज जैसे ही उनके निधन का दुखद समाचार मिला, लोग शोक में डूब गए. उन्हें श्रद्धांजलि देने लगभग पूरा मंत्रिमंडल ही डा. राजेंद्र दुबे के निवास पर उमड़ पडा था. रायपुर में उनका कोई निकट का  रिश्तेदार नहीं था. लेकिन जब मै उनको श्रद्धांजलि देने डा. दुबे के निवास पर पहुंचा तो देख कर दंग रह गया, कि अनेक मंत्री और अनेक महत्वपूर्ण भाजपा नेता वहां मौजूद है, और उनके अंतिम संस्कार की  तैयारियों में व्यस्त है. ऐसा बहुत कम होता है, कि किसी के निधन के बाद इतने लोग एकत्र हों, मगर अग्निहोत्री जी इतने महान व्यक्ति थे, कि उनके अंतिम दर्शन के लिये सैकड़ों लोग लालायित थे. भाजपा के लोग तो खैर थे ही, मेरे जैसे अनेक पत्रकार और अन्य  दूसरे लोग भी पहुँच गए थे. भाजपा के लोगो को उन्होंने बहुत कुछ दिया है, लेकिन हम जैसे पत्रकारों को भी उन्होंने बहत कुछ दिया. आज जब पत्रकारिता अपने मूल्य से गिर रही है, तब अग्निहोत्री जी ने समझाया कि विपरीत स्थितियों में भी खड़े रहना पत्रकार  का कर्तव्य है.
अग्निहोत्री जी  ने आपातकाल और रामजन्‍मभूमि आंदोलन से जुडी खबरों को वैश्विक क्षितिज पर प्रसारित करने में उन्‍होंने उल्‍लेखनीय भूमिका निभाई। शायद इसीलिए वे संघ और भाजपा के चहेते थे. विचारधारा से वे भले ही किसी एक वर्ग के चहेते बन गए थे, मगर उनकी राष्ट्रवादी पत्रकारिता के कारण हम जैसे लोग भी उनसे सीखते रहते थे. छोटो को स्नेह देना, उनकई तारीफ करना कोई अग्निहोत्री जी से सीखे. पिछले दिनों एक कार्यक्रम में मैंने ''दासबोध'' के हिंदी अनुवाद के सौ साल होने पर आयोजित कार्यक्रम में अपने विछार व्यक्त किये थे. अग्निहोत्री जी श्रोता के रूप में सामने विराजमान थे.उनके सामने बोलने में संकोच हो रहा था, फिर भी मैंने  अपनी बात कही. कार्यक्रम के बाद उन्होंने मेरी तारीफ करते हए कहा, कि आज ऐसे ही सोच की ज़रुरत है. इसके पहले भी कुछ अवसरों पर आपने मुझे प्रोत्साहित ही किया. बड़े लोग सचमुच बड़े होते है. मगर सामने वाले को अपने बड़प्पन का अहसास  नहीं होने देते.
पाँच दिन पहले जब उन्होंने मुझसे कहा, कि गाँधी, लोहिया, और दीनदयाल जी पर कार्यक्रम करनाहै, तो मैंने कहा, मेरे पास दीनदयाल जी से सम्बंधित जानकारियाँ नहीं है, तो वे फ़ौरन बोले, एक मिनट रुकिए. फिर वे बाहर गए और कर में रखी एक पुस्तक ले आये.यह पुस्तक दीनदयाल उपाध्याय जी पर केन्द्रित थी. उनका एक उपन्यास अम्बेडकर जी पर है. उसकी तारीफ सुनी है. पढ़ नहीं पाया हूँ. अब पढ़ना चाहूँगा, ताकि उनके औपन्यासिक शिल्प  के भी रूबरू हो सकूं. उनकी कुछ कविताये मैंने पढ़ी है. वे देश के नवनिर्माण में बेचैन रहने वाले राष्ट्रवादी लोगों में थे. अपना तन-मन-धान राष्ट्र की सेवा को समर्पित करने के लिये तैयार रहने वाले. वे अक्सर कहा करते थें कि अब अंतिम साँस तक रायपुर  में रह  कर राष्ट्र की सेवा करना चाहता हूँ. उन्होंने अपना वचन निभाया और रायपुर में ही अंतिम  साँस ली. उनके अवदान-सम्मान की बात करुँ तो श्री अग्निहोत्री 1975 से 1977 तक एकीकृत समाचार न्यूज एजेंसी नई दिल्ली (आपातकाल) के उप समाचार संपादक रहे। वर्ष 1978 से 1980 तक उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार ( महाराष्ट्र-गुजरात ) मुंबई के क्षेत्रीय व्यवस्थापक रहे । 1981 से 1983 तक हिन्दुस्थान समाचार के विशेष संवाददाता के रूपमें  काठमांडूमें भी रहे।  आप  हिन्दुस्थान समाचार, नई दिल्ली के प्रधान संपादक भी रह चुके थे.  श्री अग्निहोत्री 1986 से 1989 तक पांचजन्य साप्ताहिक, दिल्ली के प्रबंध संपादक भी थे.  1989 से 1990 तक श्री राम कार सेवा समिति, सूचना केन्द्र, नई दिल्ली के निदेशक तथा 1992 में श्री रामजन्म भूमि मीडिया सेंटर, रामकोट, अयोध्या के निर्देशक थे। उन्होंने 1991 से 1998 तक मीडिया फोर फीचर्स लखनऊ का प्रकाशन और संपादन किया। वे 1999 से 2002 तक भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय मीडिया प्रकोष्ठ, नई दिल्ली में रहे। उन्होंने 2002 से 2004 तक मीडिया वाच का संपादन और प्रकाशन किया।सन् २००८ के लिए माणिकचन्द्र वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार से सम्‍मानित  रामशंकर 14 अप्रैल, 1926 को मध्य प्रदेश के सिवनी मालवा में जन्मे श्री अग्निहोत्री जी ने  सागर विश्वविद्यालय से  बी.ए. करने के बाद उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा प्राप्त किया।  आप 1949 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, महाकौशल के संगठन मंत्री नियुक्त हुए। वे  दैनिक युगधर्म, नागपुर के सह संपादक रहे। सांध्य दैनिक आकाशवाणी (दिल्ली) केभी आप  संपादक रह चुके थे।  कश्मीर सत्याग्रह में भी उनकी अहम् भूमिका थी।  आप पांचजन्य (मध्य भारत संस्करण) के भी संपादक रहे। मासिक राष्ट्रधर्म, लखनऊ का सम्पादन भी आपने किया । युगवार्ता, फीचर्स सर्विस, नई दिल्ली के संपादक थे। 1970 से 1975 तक आप  हिन्दुस्तान समाचार न्यूज एजेंसी के ब्यूरो प्रमुख रहे। 1971 में आप ने एक और जौहर दिखाया. आपने युद्ध-संवाददाता के रूप में भी कार्य कर अपनी जांबाजी का परिचय दिया था. आप 2004 में हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी संवाद समिति के अध्यक्ष रहे।
एक साहित्यकार  के रूप में उनके अवदान को देखें तो उन्होंने बहुत अधिक रचनाएँ भले ही न की हों,   लेकिन उन्होंने जितना लिखा, उत्कृष्ट ही लिखा. उनका एकमात्र काव्य संग्रह सत्यम एकमेव काफी चर्चित रहा है। अम्बेडकर परकेन्द्रित  उपन्यास ''मसीहा'  को पढ़ चुके लोगो का मानना है, कि किसी व्यक्ति के जीवन पर केन्द्रित ऐसे उपन्यास कम ही देखने में आते है. अनेक  देशों का भ्रमण कर चुके अग्निहोत्री जी को  इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा डा. नगेन्द्र पुरस्कार, राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास द्वारा स्व. बापूराव लेले स्मृत्ति पत्रकारिता पुरस्कार तथा माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल द्वारा लाला बलदेव सिंह सम्मान प्रदान किया गया था. श्री अग्निहोत्री एक तरह से एकांत साहित्य साधक थे और एकनिष्ठ पत्रकार थे. उनके अनेक शिष्य आज पत्रकारिता जगत में अपना डंका बजा रहे है. उनके साथ के लोगों के उनके निधन पर गहरा दुःख हुआ. देश के कोने-कोने में उनके चाहने वाले आज फोन कर-कर के सम्बंधित जनों से बातें करते रहे. शवयात्रा में मंत्रीमंडल के अनेक लोग शामिल हुए. श्मशानघाट में मुख्यमंत्री  भी पहुँच गए थे. सब ग़मगीन थे. उन सबके बीच से ऐसा व्यक्ति चला गया  था, जिसके जाने की कोई उम्मीद ही नहीं थी. सब इस बात को लेकर भी दुखी थें कि उनको सही वैचारिक राह अब कौन दिखाएगा. पत्रकारिता की नैतिक मूल्य की परम्परा अब ख़त्म हो रही है, लेकिन जब मै अग्निहोत्री जी को देखता तो सुकून मिलता था, संतोष होता था, कि एक परम्परा अभी ज़िंदा है. आज वे हमारे बीच नहीं है, उनके जाने के बाद चिंता हो रही है, कि अब ऐसे लोग हम कहाँ से लायेंगे, जो बरगद होते हुए भी पौधों को पनपने का मौका देते  थे.

रविवार, 4 जुलाई 2010

छ्त्तीसगढ़ की डायरी

ये है छत्तीसगढ़ की पुलिस की डंडागीरी... 
राजधानी रायपुर में डॉन शब्द से पुलिस इतनी नाराज है कि मत पूछो। इस चक्कर में एक स्कूली छात्र को पीट कर एक पुलिस अधिकारी ने अपनी डंडागीरी दिखाने की शर्मनाक कोशिश कर डाली। पिछले दिनों राजधानी में वाहनों में आग लगने की अनेक घटनाएँ हुईं। ये हरकतें किसी डॉन ग्रुप की हैं। पुलिस के कुछ अति होशियार लोगों ने कुछ लड़कों को पकड़ा और उन्हें डॉन ग्रुप  बताकर जेल भी भिजवा दिया। फिर भी शहर में वाहनों के जलने का सिलसिला चलता रहा। अब पुलिस के एक जिम्मेदार अधिकारी खुद कह रहे हैं, जो लड़के पहले पकड़े गए थे, वे डॉन ग्रुप के नहीं थे। आखिर पुलिस ऐसा करती क्यों है? फर्जी मामले क्यों बनते हैं? पिछले दिनों एक स्कूली छात्र को एक पुलिस अधिकारी ने पकड़ा और डंडे से पीटना शुरू कर दिया। लड़के का कुसूर इतना ही था कि उसकी बाइक पर डॉन लिखा था। लोग इस हादसे से दुखी भी हुए और पुलिस  अफसर की मूर्खता पर हँसे भी। अरे भाई, पहले समझ तो लो। कल को डॉन फिल्म रायपुर में लगेगी तो क्या सिनेमा मालिक की सुटाई शुरू कर दोगे कि डॉन क्यों लगाई? कुछ लोग शरारत कर रहे हैं, तो डॉन शब्द से खुन्नस निकालना कहाँ की बुद्धिमानी है?

नक्सलियों की अंतहीन हरकतें...
बस्तर में लाशें गिनने का काम जारी है। आए दिन नक्सली हत्याएँ कर रहे हैं। वे खुद भी मर रहे हैं। लेकिन वे तो विचारधारा के नाम पर संघर्ष कर रहे हैं। दो मरते हैं सौ को मारते हैं। सिलसिला जारी है। पिछले दिनों सीआरपीएफ के जवानों की हत्या के पीछे उनका तर्क था, कि हमने इसलिए हत्या की, कि  इन लोगों ने कुछ निर्दोष ग्राणीणों की जानें लगी थीं। इस आरोप का कोई सबूत उनके पास नहीं है। अगर कुछ है तो पेश करना चाहिए। इसके पहले भी नक्सलियों ने अनेक हत्याएँ की हैं, उसका क्या कारण बताएँगे? कुल मिलाकर हत्याओं के लिए बहाने चाहिए। लोग तंग आ चुके हैं। इसीलिए अब आमजन मांग करने लगे हैं कि बस्तर में सेना बुलानी चाहिए। वह दिन दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा,जब बस्तर में सेना का प्रवेश होगा। सेना आग की तरह फैलेगी और बहुत कुछ नष्ट होगा। नक्सली भी समझ लें कि वे साफ होंगे ही, और बहुत-से आम नागरिक भी चपेट में आ जाएँगे। अब यह बात समझ में भी तो आए, फिलहाल इस आहत समय से हर कोई उबरना चाहता है।
गाय बर्बाद, मटन मार्केट आबाद..?
मटन... आमजीवन में बटन की तरह जरूरी हो गया है। गाय पालने वाले शहर से बाहर भेज दिए गए हैं मगर माँस बेचनेवालों को शहर में सुव्यवस्थित करने की काशिशें हो रही हैं। कुछ अंिहसा प्रेमी इस दृश्य को देख कर चकित हैं। गौ पालन से गंदगी होती है तो क्या माँस के व्यापार से शहर का माहौल शुद्ध हो जाता है? जहाँ माँस कटता है, वहाँ जाकर तो देखें। किस तरह से बदबू फैली रहती है। गंदगी का कैसा आलम रहता है। गाय के गोबर और मूत्र से तो खाद बनती है। गाय आक्सीजन छोड़ती है। वातावरण को शुद्ध बनाने में गाय की बड़ी भूमिका होती है। मगर राजधानी में उल्टा हो रहा है। गायें बाहर भेजी जा रही हैं और शहर में माँस के व्यापार के लिए सुविधाएँ दी जा रही हैं। आखिर क्यों? शायद इसीलिए कि अब माँस खाने और दारू पीने वाले बढ़ रहे हैं और दूध पीने वाले कम होते जा रहे हैं? 
 गजगामिनी की तरह चलते सरकारी काम
सरकारी काम भी नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तरह चलते रहते हैं। धीरे-धीरे, हौल-हौले। इसे  ही कहते हैं हाथी-चाल। जो काम समय पर हो सकते हैं, उन्हें लम्बा खींचने के पीछे  एक ही कारण होता है, कमाई...ऊपरी कमाई। जितने दिन काम होता है, उतने दिन तक कमाई का सिलसिला बना रहता है। मिलजुल कर खाने का भी अपना सुख होता है। लेकिन कुछ लोगों के इस सुखार्जन के कारण लोग दुखी हो जाते हैं। शहर में बनने वाले अधिकांश पुल अपने निर्माण की अवधि पार कर चुके हैं। काम चल ही रहा है। लोगों को आना-जाना प्रभावित होता है। लोग आंदोलन करते हैं। धरना देते हैं। लेकिन व्यवस्था को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अपने हिसाब से चलती है। तभी तो वह व्यवस्था है। निर्माण कार्य में लगे लोगों को शहर की सुविधाओं का ख्याल रहना चाहिए, आखिर वे भी नागरिक हैं। लेकिन इतनी बात वे समझ लेते तो लोग परेशान ही क्यों होते?
महँगाई पर घमासान
महँगाई एक मुद्दा है। जिस पर अभी भाजपा गर्म है तो काँग्रेस भी। दोनों तरफ से बयानबाजी चल रही है। अभी भाजपा की सुषमा स्वराज राजधानी आई थीं। उनके नेतृत्व में भाजपा ने धरना दिया। फिर भाकपा का भारत बंद। अब काँग्रेस की छवि का सवाल है तो वह भाजपा पर पिल पड़ी है। उसे भी कुछ कर के दिखाना होगा। इसलिए उनके नेता भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं, कि वह धरना-प्रदर्शन करके लाखों रुपए खर्च कर रही है। यह पैसे की बर्बादी है। अरे भाई प्रदेश भर से लोग आएँगे तो क्या उनके लिए कुछ व्यवस्था ही न हो। बरसात का मौसम है। अगर पानी से बचने की व्यवस्था कर ली गई तो इसे फिजूलखर्ची नहीं कहा जा सकता। सच्चाई तो यही है कि काँग्रेसी भी बेचारे असहज महसूस कर रहे हैं। पेट्रोल,डीजल और यहाँ तक कि केरोसीन के भाव बढ़ गए। इसका असर तो हर चीज पर दीख रहा है।  काँगे्रसी बेबस हैं। करें तो क्या करें?
और चलते-चलते..
डीजीपी के बयान से बवाल....
छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन कवि भी हैं। लोग यह मान कर चलते हैं, कि वे एक लेखक हैं, तो संतुलित व्यवहार करेंगे। लेकिन नक्सली हिंसा के कारण उनका तनाव कुछ ज्यादा  बढ़ गया है इसलिए उनके बयानों पर असर पडऩे लगा है। फिर भी उन्हें धैर्य से काम लेना चाहिए। ऐसा लोगों का कहना है। आखिर वे पुलिस के मुखिया है। पिछले दिनों उन्होंने सीआरपीएफ वालों के लिए कह दिया कि हम उन्हें चलना थोड़े न सिखाएँगे। फिर मीडियावाले बात करना चाह रहे थे, तो वे बोले, नहीं, मैं पहले सिगरेट पीऊँगा। लोगों को आश्चर्य हुआ कि ये क्या हो रहा है। इसके पहले भी डीजीपी महोदय अपने बयानों के कारण सुर्खियों में रहे हैं। बहरहाल, सीआरपीएफ के खिलाफ डीजीपी के बयान को गृह मंत्रालय ने गंभीरता से लिया है। वह नाराज है। डीजीपी की संवेदनशीलता के अनेक उदाहरण भी हैं लेकिन इस बार उनके एक-दो बयान नकारात्मक नंबर वाले हो गए। उनके चहेते लोग यही चाहते हैं, कि भविष्य में फूँक-फूँकर चलें, संभल-संभल कर बोलें ताकि वे विश्वरंजन ही रहें, लोग उन्हें विवादरंजन न बनाएँ।

सुनिए गिरीश पंकज को