छत्तीसगढ़ में घोटाले की सड़क...
निर्माण और घोटाले की पक्की दोस्ती होती है। दोनों साथ-साथ रहते हैं। पीते-खाते हैं। खाते-पीते भी है। राज्य बनने के बाद यह सिलसिला यहाँ कुछ ज्यादा तेज हुआ है। पहले भोपाल के लोग (यानी नेता, अफसर और ठेकेदार की तिकड़ी)खाते-पीते थे, अब रायपुर में लोग खाते-पीते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत घटिया सड़कें बनती हैं। मिली-जुली कुश्ती होती है। दिल्ली से आने वाला पैसा कुछ लोगों की जेबों में चला जाता है। घटिया सड़क बनाने के आरोप में कुछ ठेकेदारों को तो काली सूची में डाल दिया गया है, मगर कुछ अफसर साफ-साफ बच निकले हैं। खेल के सूत्रधार तो अफसर भी होते हैं। अकेले अफसर कुछ नहीं कर सकते। हिस्सेदारी की बात गलत नहीं है। अब कहा जा रहा है, कि जो सड़के घटिया बनी हैं, उन्हें फिर बनाया जाएगा। सड़क फोकट में तो बनेगी नहीं, जाहिर है फिर वहीं चक्कर शुरू होगा। नए ठेकेदार सामने आएंगे। और अगर ईमानदारी से देखभाल नहीं की गई तो फिर घटिया सड़कों पर चलना पड़ेगा।
नक्सलियों से निपटने की तैयारी
यह ऐसी तैयारी नहीं है, कि अब सेना धावा बोल देगी। यह तैयारी है बौद्धिक। यह भी जरूरी काम होता है। 14 जुलाई को दिल्ली में नक्सल समस्या से पीडि़त राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र के साथ मिल-बैठ कर विचार करेगें, कि नक्सलियों से कैसे निबटा जाए। क्या सेना की मदद लें, अद्र्धसैनिक बल और बढ़ाएँ या सिपाहियों को और ज्यादा चुस्त करें। जो भी हो, कोई निर्णायक रणनीति बननी ही चाहिए। क्योंकि इधर अती हो रही है। नक्सलियों का एक नेता आजाद मारा गया है, तब से वे और अधिक बौखला गए है। एक दौर था जब जयपक्राश नारायण और विनोबा भावे जैसे महान नेताओं ने डकैतों का आत्म समर्पण करवा दिया था। आज भी यह काम हो सकता है। लेकिन दुख इस बात का है कि अब वैसे महान लोग हैं नहीं। खादी का कुरता पहन कर इधर-उधर डोलने वाले कुछ लोग संदिघ्ध हो गए हैं। कोई विदेशी मदद से अपना एनजीओ चला रहा है, तो कोई नक्सलियों के पक्ष में खड़ा है। बहरहाल, समझ में नहीं आ रहा, कि किया क्या जाए। लेकिन उम्मीद है, कि दिल्ली की बैठक कोई ठोस नतीजे के साथ खत्म होगी।
राजधानी के किशोर अपराधी
राजधानी में आए दिन लूटपाट, उठाईगीरी और हिंसक वारदातें हो रही हैं। कुछ लोग पकड़ में भी आ रहे हैं। दु:खद बात यह है कि बहुत-से मामले में किशोर और बिल्कुल युवा वर्ग के अपराधी सामने आ रहे हैं। अभी पिछले दिनों कुछ युवक पकड़े गए, इनमें एक राजनीतिक दल के सदस्य भी था। यह चिंतास्पद बात है। और ऐसा नहीं कि यह अभी इनकी संख्या बढ़ गई है। पिछले लंबे अरसे से किशोर-युवा ही पकड़ में आ रहे हैं। ये छोटे-मोटे अपराधी आने वाले समय के बड़े अपराधी हैं। सही शिक्षा का अभाव, नैतिक वातावरण की कमी और घर-परिवार का असर इन लड़कों को गुमराह बना ही देता है। इसलिए जरूरी हो जाता है, कि शालाओं में बच्चों के लिए नैतिक शिक्षा के पाठ जरूरी किए जाएं जो, जो अब लगभग समाप्त-से हो गए हैं।
बारिश में शहर
बारिश आती है और शहर के प्रशासन का असली चेहरा सामने आने लगता है। गड्ढे ही गड्ढे हो जाते हैं और इनमें पानी भरने और उसमें लोगों के धँसने का सिलसिला शुरू हो जाता है। गंदगी और उसके कारण होने वाली बीमारियाँ भी बढ़ जाती हैं। प्रशासन बारिश के पहले बड़े-बड़े वादे करता है, लेकिन वह कुछ कर नहीं पाता। और खामियाजा भुगतना पड़ता है सामान्यजन को। बारिश में शहर कई बार टापू-सा लगने लगता है। अनेक कालोनियों में कीचड़ ही कीचड़ नजर आता है। सूखे हुए तालाबों वाला शहर तालाबों में पट जाता है। जिधर देखो, उधर एक तालाब। दुर्घटनाएँ बढ़ती जाती हैं। शहर में बदबू और बीमारियों का साम्राज्य छाया रहता है। इस बार भी यही हो रहा है। महापौर खुद निकल रही है, नालियों से कचरे निकलवा रही है। लेकिन यह भी सच है कि कोई कहाँ-कहाँ जाए? आम आदमी भी ग•ाब की शै है। नालियों को चोक आदमी ही करता है। घर का, दूकान का सारा कचरा नालियों में ही डालता है। जाहिर है बरसात में नालियाँ बजबजाने लगती हैं। इसलिए नागरिकों का भी दायित्व है कि वह शहर को साफ रखें। वरना भुगतना उन्हीं को है।
गोवंश को बचाने के लिए साधुवाद..
गौ माता भाजपा गोवंश विकास प्रकोष्ठ के सदस्यों को धन्यवाद दे रही है, जिन्होंने सौ से ज्यादा गायों को कटने से बचा लिया। पिछले दिनों राजधानी और आसपास के कुछ शहरों से गो प्रेमियों ने कत्लखानों के लिए लेजाई जा रही गायों को पकड़ लिया। तस्करों को पुलिस के हवाले भी किया। सच बात तो यह है कि गो वंश की तस्करी का सिलसिला जारी है। कभी-कभार गायें पकड़ में आ जाती है, ये अलग बात है। आए दिन गायों की तस्करी होती रहती है। चोरी-छिपे गायें भी कटती रहती हैं। राजधानी में भी यह अपराध हाता है। गोवंश विकास प्रकोष्ठ के सदस्यों को सतत निगरानी रखनी चाहिए। संदिग्ध इलाकों में घूम-घूम कर जायजा लेना चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो गो वंश कटता ही रहेगा।
लौकी के जूस का डर
पिछले दिनोंदिल्ली के एक वैज्ञानिक की मौत लौकी के जूस पीने से हो गई। रायपुर और छत्तीसगढ़ के लोग भी जागरूक हैं। वे भी लौकी और अन्य फलों के जूस पीते रहते हैं। दिल्ली में हुई मौत के पीछे कारण यह बताया जा रहा है, कि वैज्ञानिक ने जो जूस पीया, वह काफी कड़वा था। वह मर गया और उसकी पत्नी अस्पताल में भरती हो गई। लौकी अगर कड़वी हो तो उसका जूस नहीं पीना चाहिए। दूसरी बात यह भी है, कि आजकल फल-सब्जियों में आक्सीटोसिन का इंजेक्शन भी लगा दिया जाता है। इससेभी स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। राजधानी में बाजार में बिकने वाली सब्जियाँ भी संद्ग्धि नजर आती है। दरअसल पैसे कमाने की हवस के कारण समाज के कुछ लोग इतना नीचे गिर गए हैं, कि उनके लिए नैतिकता जैसे शब्द बेमानी हो गए हैं। अब लोग ही समझदारी से काम लें और किसी भी फल-सब्जी का जूस सेवन करने से पहले उसकी गुणवत्ता परख लें। बेहतर तो यही है कि लोग बागवानी करें और अपनी जरूरत की फल-सब्जियाँ खुद उगाने की दिशा में भी विचार करें।
रविवार, 11 जुलाई 2010
छत्तीसगढ़ की डायरी
प्रस्तुतकर्ता girish pankaj पर 7:21 am
लेबल: छत्तीसगढ़ की डायरी
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4 Comments:
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!
बढ़िया आलेख...बड़ी मुश्किल से लौकी की किस्मत चमकी थी, फिर भट्टा बैठ गया.
अगर सड़क न होती तो डामर कौन बनाता?
अगर डामर न होता तो सड़क कौन बनाता?
बहुत बढिया भैया
आपने तो सबकी पोल खोल दी ।
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