राज्यपाल-मुख्यमंत्री भी आदिवासी मांग उठी.....
आदिवासी जब एक होते हैं तो क्या होता है?
क्या होता है, तो गैर आदिवासी नेताओं के मन में एक आशंका बलवती होने लगती है, कि कहीं वे सत्ता हथियाना तो नहीं चाहते। जी हाँ, पिछले दिनों जब राजधानी में आदिवासियों ने महारैली निकाली तो गैर आदिवासी नेता यही समझ रहे थे। लेकिन शायद ऐसा था नहीं। आदिवासी अपना अधिकार माँगने के लिए एकजुट थे। इस रैली में भाजपा और काँग्रेस के भी नेता शामिल हुए। सरकार के कुछ मंत्री- विधायक भी अगुवाई कर रहे थे। मांग यह थी कि सरकार आदिवासियों को बत्तीस फीसदी आरक्षण दे। एक वक्ता ने तो यह मांग भी रख दी कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी आदिवासी हों। नकली-असली आदिवासियों की भी चर्चा हुई और छठी अनुसूची को लागू करने की मांग भी उठी। कुल मिला कर आदिवासियों ने यह साबित कर दिया कि वे एक जुट हैं और अपने हक के लिए लडऩा जानते हैं। अगर इनकी ओर गंभीरतापूर्वक ध्यान नहीं दिया गया, तो कल को दृश्य कुछ और हो सकता है। आदिवासियों को भरपूर महत्व मिलना ही चाहिए। उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब आदिवासी भी समय के साथ चल रहे हैं। रैली में शामिल कुछ आदिवासी मोबाइल फोन से गोठियाते पाए गये।
अब कैसे कह दें कि शराब है खराब.. ?
सरकार या प्रशासन भला कैसे कह दें कि शराब एकदम से खराब है। जब रायपुर जिले में ही शराब के ठेके देने के लिए जो फार्म बिके उसी से सरकार को एक सौ दस करोड़ रुपये की कमाई हो गई। लाइसेंस फीस से दो सौ पच्चीस करोड़ मिलेंगे वो अलग। ये तो एक जिले की कमाई है। शराब सेजो कमाई होती है, उसे देख कर किसी भी सरकार में यह साहस नहीं हो पाता कि वह शराब बंदी लागू कर। आखिर इतनी तगड़ी कमाई जो होती है। फिर भी यह मांग उठती रहती है, कि प्रदेश में शराबबंदी हो। पूर्ण शराबबंदी न होतो कम से कम जिस इलाके में मांग उठ रही है, वहाँ तो शराब दुकानें न खोली जाएँ। हालांकि शराब दूकानों के विरोध को भी बड़ी चालाकी से निबटा दिया जाता है। कुछ समय के लिए शराब दूकानें बंद होती है, फिर दूसरी जगह शुरू हो जाती हैं। बहरहाल, सरकार तो खुश है, कि उसकी कमाई हो रही है।
झुग्गीमुक्त राजधानी का सपना...
राजधानी में रायपुर विकास प्राधिकरण द्वारा बनाए गये 972 फ्लैट गरीबों को दे दिए गये। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ रमन. सिंह ने कहा कि पाँच सालों में रायपुर को झुग्गीमुक्त कर दिया जाएगा। सचमुच..? अगर ऐसा हो सका तो वह स्वर्णिमकाल ही होगा। झुग्गियाँ शहर के गाल पर तमाचा हैं, बदनुमा दाग सरीखी हंै। असमता को दर्शाने वाली होती हैं। एक तरउ गगनचुंबी अट्टालिकाएँ और दूसरी तरफ गंदगी के बीच बजबजाती झुग्गियाँ..? इस लिहाज से रायपुर ही क्यों, पूरे छत्तीसगढ़ के शहरों को झुग्गियों से मुक्त करने का सपना देखा जाना चाहिए। हर गरीब को पक्के मकान मिले। केवल घर ही पक्के न हों, आस-पास स्वच्छता हो, सड़कें ठीक हों। मतलब यह कि गरीबों को भी जीने का हक है। और इस दिशा में अगर एक पहल शुरू हुई है तो उसका स्वागत ही किया जा सकता है।
लॉटरी के जाल में न फँसें..
जब से मोबाइल और इंटरनेट का ज़माना आया है, तब से ठगों ने इस माध्यम को भी अपना लिया है। अब मोबाइल पर एसएमएस आते हैं और ईमेल के जरिए संदेश कि आपको यूके लॉटरी या और और किसी कंपनी की ओर से एक- दो-तीन करोड़ की लॉटरी निकली है। बताया जाता है कि आपके मोबाइल नंबर या आपके ईमेल को हमने चयनित किया है। इन पंक्तियों के लेखक को भी पिछले छह महीने में अनेक मेल प्राप्त हो चुके हैं। उन सब का हिसाब लगाय जाए तो दस- बीस करोड़ मेरे पास भी आ जाते। लेकिन मैं इन ईमेलों को फौरन मिटा देता था। लेकिन कवर्धा का एक युवक फँस गया। उसे तीन लाख का चूना लग गया। अब तीन करोड़ मिले हैं, तो सामने वाली पार्टी अगर कस्टम शुल्क कोरियर, शुल्क और रजिस्ट्रेशन फीस आदि के लिए पैसे माँगेंगी तो कोई भी सोचगा, कि चलो दे दो। तीन करोड़ मिल रहे हैं, तो तीन लाख न सही। लोग पैसे भेज देते हैं और बाद में पछताते हैं। इसलिए सावधान इन ईमेलों से। लालच बुरी बला...।
जन प्रतिनिधियों की अनदेखी
छत्तीसगढ़ के संदर्भ में अनके बार यह लिखा जाता रहा है कि, यहाँ जनप्रतिनिधियों को महत्व नहीं दिया जाता। अनेक ऐसे उदाहरण गिनाए जा सकते हैं। ताजा उदाहरण माध्यमिक शिक्षा मंडल का है। इसमें कुछ विधायक भी सदस्य हैं। महत्वपूर्ण निर्णय लेने हों तो उनकी उपस्थिति भी होनी चाहिए, लेकिन माशिमं के अफसर इसकी जरूरत ही नहीं समझते। इसीलिए तो आठ महीने में एक बार भी किसी विधायक को न तो बुलाया गया, न उनसे कोई सलाह ही ली गई। निर्णय हो गये। जब विधायकों ने शिकायत की तो माशिमं के अफसर अध्यक्ष ने अधीनस्थों की खिंचाई की, गोया उन्हें कुछ पता ह न हो। यह चालाकियाँ बहुत हो रही हैं। इस मामले में विधायकों को ही सतर्क होना चाहिए। अपने हक के लिए वे खुद खड़े हों। और जो भी उनकी अनदेकी करे, उसको उसकी हैसियत दिखा दे। यहाँ लोकतंत्र है, अफसर तंत्र नहीं। क्या हमारे जनप्रतिनिधि जागरूक होंगे।
धंधा अपहरण-फिरौती का
जी हाँ, यह अब उद्योग की तरह विकसित हो रहा है। राजधानी में तो गाहेबगाहे इस धंधे की खबरें मिलती ही रहती हैं, अब आसपास भी ये वायरस फैल रहे हैं। पिछले दिनों धमतरी में एक छात्रा का अपहरण कर लिया गया। अपहर्ता लड़के हैं और जगदलपुर केहैं। उन्होंने फिरौती के रूप में दो लाख माँगे। नये-नये होंगे। सामने वाले की हैसियत का भी पता होगा, इसलिए केवल दो लाख की मांग की। अभी अपहर्ताओं का पता नहीं चल सका है लेकिन बच कर कहाँ जाएँगे। किंतु एक बात जो सामने आ रही है, कि अपहरण का धंधा अब फैलता जा रहा है। यह चिंता की बात है।
मंगलवार, 2 मार्च 2010
छ्त्तीसगढ़ की डायरी
प्रस्तुतकर्ता girish pankaj पर 3:52 am
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