बुधवार, 21 अगस्त 2013

आदिवासियों के चरण अब कौन पखारेगा?

आदिवासियों के चरण अब कौन पखारेगा? गिरीश पंकज राजपरिवार में जन्म लेने के बावजूद बेहद सहज-सरल इंसान के रूप में लोकप्रिय रहे सांसद दिलीपसिंह जू देव अब हमारे बीच नहीं हैं। उनका चला जाना एक ऐसे शख्स का जाना है जो आदिवासी समाज के बीच एक मसीहा की तरह था। उनका ऑपरेशन घर वापसी तो अद्भुत था। आदिवासी समाज के अनेक लोग जो किसी कारण ईसाई बन चुके थे, उन्हें उनकी दुनिया में वापस लाने की कोशिश करते थे। आदिवासियों के चरण पखारते थे, जल को माथे से लगाते थे। यह कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी। कोई नाटक नहीं था, यह उनके दिल की आवाज थी और एक कर्तव्य की तरह उसे निभाते थे। अंतिम सांस तक वे इसी मुहिम में लगे रहे। उनके जाने के बाद अब यही सवाल सबके सामने हैं कि अब उनकी परम्परा को कौन आगे ले जाएगा? यानी अब आदिवासियों के चरण कौन पखारेगा? छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का जहर तेजी से फैल रहा है। इसे रोकने के लिए वनवासी कल्याण आश्रम जैसी संस्थाओं ने अपने रचनात्मक कार्यों से काफी हद तक नियंत्रित किया, मगर जूदेव अपने स्तर पर आदिवासियों की घर वापसी महिम चलाया करते थे। और इसके पीछे उनकी कोई ऐसी मंशा नहीं थी कि वे अपनी छवि चमकाते। वे तो निर्मल मन के साथ इस अभियान के सेनानी थे। वे चाहते थे कि धर्मांतरण का जहर खत्म हों और आदिवासी अपनी जड़ों से जुड़े रहें। उनके इस अभियान से कुछ लोग बेचैन रहा करते थे, मगर उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। और कह सकते हैं कि इस पथ पर वे अकेले चलते रहे। आदिवासियों को उनकी दुनिया में वापस लाने के अलावा उनकी अपनी दबंग छवि थी। वे राजनीति के लोकप्रिय नायक थे। और उनका होना राजनीतिक सफलता की गारंटी थी। लोग सन् 1988 को खरसिया उप चुनाव नहीं भूल सकते, जब जू देव जी ने मध्यप्रदेश के तत्कालिक मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को जबर्दस्त टक्कर दी थी। पूरी कांग्रेस परेशान थी। पशोपेश में थी कि क्या होगा? कांग्रेसी घबराए हुए थे। कांग्रेस के साथ उस वक्त सत्ता थी। अर्जुन सिंह चुनाव तो जीते मगर विजय जुलूस निकला था दिलीपसिंह जू देव का। यह बहुत बड़ी बात है। ऐसा बहुत कम होता है। कांग्रेस जीत कर भी हारी-सी लग रही थी और जू देव हार कर भी जीत का जश्न मना रहे थे। उस वक्त यह नारा लगा था- राजा नहीं फकीर, छत्तीसगढ़ का वीर है। ऐसे थे जू देव। यही जू देव थे, जिन्होंने प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनावमें डंके की चोट पर ऐलान कर दिया था कि अगर इस चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई तो मैं अपनी मूँछें मुड़वा दूँगा। यह कोई छोटा-मोटा ऐलान नहीं था। यह अपनी अस्मिता को चुनौती थी। अपने जीवन भर की साख को दाँव पर लगा देने जैसा था। लेकिन जूदेव को पक्का विश्वास था कि भाजपा जीतेगी। जरूर जीतेगी। और ऐसा ही हुआ। प्रदेश की जनता ने जू देव की प्रतिज्ञा का मान रखा और भाजपा की सरकार बनी। कांग्रेसी मुगालते में थे कि जू देव को मूँछें कटवानी पड़ेगी, लेकिन ईश्वर की कृपा से ऐसा नहीं हुआ। जू देव ने भी कुछ सोच कर यह ऐलान किया था। उन्हें पता था कि प्रदेश में उनकी कितनी साख है। आज कितने लोग हैं जो अपनी मूँछें दाँव पर लगा सकते हैं? जू देव से हम पत्रकारों की मुलाकातें कभी-कभी होती थीं। उनको सहज व्यवहार मुझे हैरत में डाल देता था। बिंदास हो कर वे लोगों से मिलते थे। हँस कर बतियाते थे। और जरूरत पडऩे पर हर तरह की मदद भी किया करते थे। छत्तीसगढ़ में कुछ राज परिवार अभी भी सक्रिय हैं। लेकिन जू देव परिवार की जन भागीदारी सबसे जुदा रही। सिर्फ इसलिए कि उनमें वो राजसी तेवर नहीं थे, जो अक्सर राजपरिवार के लोगों में नजर आते हैं। जशपुर का उनका महल एक घर की तरह सबके लिए खुला रहता था। हमारे कुछ मित्र बताते हैं कि जब भी वे जशपुर जाते थे, तो जू देव जी के घर पर ही रुकते थे। जू देव भी उनका दिल खोल कर स्वागत किया करते थे। उनके जीवन में कुछ ऐसे भी अवसर आए जब उन्हें अग्नि परीक्षाओं से भी गुजरना पड़ा, मगर सब से अनोखी बात यह रही कि वे खरे निकले। हताश नहीं हुए। उनका हौसला बरकरार रहा। और सबसे बड़ी बात यह रही कि जनता के बीच उनकी छवि सदाबहार रही। ऐसे उदाहरण बिरले ही मिलते हैं। हम कह सकते हैं कि जू देव उस शख्सियत का नाम रहा जो पदों से परे हो कर एक व्यक्ति के रूप में हमेशा ही शिखर पर रहा। वे पद पर रहे न रहे, एक व्यक्ति के रूप में हमेशा ही चर्चित रहे। जू देव जी के हमेशा-हमेशा के लिए चले जाने के बाद उनसे जुड़े अनेक संस्मरण लोगों के जेहन में कौंध रहे होंगे। लेकिन मैं रह-रह कर यही सोच रहा हूँ कि क्या घर वापसी चलाने वाला महान मुहिम आगे भी जारी रह सकेगा क्या? आदिवासी बंधुओं के पैर धोना और उन्हें ईसाइयत से मुक्त कराने का महत्वाकांक्षी अभियान चला कर राज परिवार के एक व्यक्ति ने अपने को लोक नायक बना दिया था। उनके महाप्रस्थान के बाद लोग यही उम्मीद करते हैं कि उनके परिवार के लोग आपरेशन घर वापसी को जारी रखेंगे। जू देव ऐसे समय में चले गए जब चुनाव होने हैं। पिछले चुनाव में जू देव ने अपनी मूँछें दाँव पर लगा दी थीं, इस बार वे नहीं रहेंगे, मगर उनकी याद रहेगी। उनके काम रहेंगे। उनका मूँछें एंठने वाला अंदाज उनकी खास छवि को दर्शाने वाला था। अब वे हमारे बीच नहीं हैं मगर उनकी अनेक छवियाँ छत्तीसगढ़ वासियों के दिलोदिमाग में सुरक्षित रहेंगी।

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