मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

छत्तीसगढ़ की चिट्ठी /

छत्तीसगढ़ में आंखफोड़ काँड....?

छत्तीसगढ़ में आँखफोड़ कांड हो गया मगर इसकी व्यापक हलचल न हुई, क्योंकि कांड सरकारी था। डाक्टरों ने किया था। जी हाँ, सरकारी डॉक्टरों ने। बात अधिक पुरानी नहीं है। कुछ दिन पहले की है। बालोद में स्वास्थ्य शिविर लगाया गया। वहाँ मोतियाबिंद से पीडि़त लोगों को आपरेशन होना था। हुआ भी। मगर ऐसा आपरेशन हुआ कि 25 लोगों ने अपनी रौशनी हमेशा-हमेशा के लिए गँवा दी। माँझी जब नाव डुबोए तो उसे कौन बचाए? यही कहावत लोगों को याद आ रही है। सरकारी ऑपरेशन में ऐसे गैर जिम्मेदार डाक्टर भेजे जाएँगे, जो लोगों की आँखों की रौशनी ही छीन लें, तो उन्हें डॉक्टर कहा जाए या डिफाल्टर? डॉक्टर को भगवान का दूत कहा जाता है मगर जब सरकारी खानापूर्ति का भूत सवार हो जाए तो भगवान का दूत कब शैतान के दूत में बदल जाए, कहना कठिन होता है। अब पीडि़त लोग मांग कर रहे हैं, कि दोषी डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, मगर प्रश्न यही है कि क्या कार्रवाई होगी? क्योंकि डॉक्टर लीपापोती करने में लगे हुए हैं। अगर डाक्टरों पर कार्रवाई न हुई तो सरकारी स्वास्थ्य शिविरों पर प्रश्न चिन्ह लगेंगे, लोग डरेंगे कि सरकारी शिविर में जा कर रिस्क लेना ठीक नहीं। इसके पहले भी नसबंदी के बाद एक-दो लोगों के मौत की खबर भी आ चुकी है। इसलिए यह जरूरी है कि स्वास्थ्य शिविर बला टालने के उपक्रम न बनें, वरन इन शिविरों में सर्वाधिक जिम्मेदार और अनुभवी डॉक्टरों को ही भेजा जाना चाहिए।
जात न पूछो नेता की, मगर...
कबीरदास जी छह सौ साल पहले कह गए कि जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मगर हमारा समाज अभी तक जाति-पाति और धर्म के खूँटे से बँधा है। छत्तीसगढ़ के पूर्वमुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति क्या है, इसको ले कर बहुत पहले से विवाद बना हुआ है। वे आदिवासी है, या ईसाई, यही पता नहीं चल पा रहा है।  जोगी खुद को आदिवासी कहते हैं। उन्होंने जब चुनाव लड़ा था तो अपनी जाति आदिवासी बताई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि जोगी ईसाई हैं।  इसी मामले की जाँच हो रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। सुको ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वही पता करे कि जोगी की जाति क्या है। अब आनन-फानन में एक हाईपॉवर समिति बनाई गई है, जो पता करेगी कि जोगी की जाति क्या है। स्वाभाविक है कि उनके पिता और दादा की जाति पता की जाएगी। कुछ न कुछ तो सच्चाई सामने आएगी ही।
भीड़ की चिंता में....
 स्वाभाविक ही है कि किसी बड़े नेता की रैली निकले और भीड़ के बारे में न सोचा जाए? भाजपा के पीएम इन वेटिंड के रूप में चर्चित नेता लालकृष्ण आडवाणी रथ यात्रा पर हैं। यह यात्रा 22 अक्टूबर को रायपुर आएगी। आडवाणी जी की सबा भी होगी। स्वाभाविक है इसके लिए भीड़ चाहिए। इस हेतु भाजपा के बड़े नेता पिछले दिनों बैठे और विचार मंथन किया कि कैसे अधिक से अधिक भीड़ जुटाई जाए। पिछले दिनों जब नेताओं की बैठक हुई तो बताते हैं कि किसी एक नेता ने साफ-साफ कहा कि अनेक लोग अभी मलाईदारों पदों पर काबिज हैं, इनको भीड़ की जिम्मेदारी सौंपी जाए। सचमुच मलाईदार पदवाले कब काम आएँगे? कुछ लोगों के बारे में सभी लोग जानते हैं, कि ये लोग अपना-अपना घर भरने पर तुले हैं, यही समय तो है पार्टी की सेवा का, कुछ मेहनत करें, कुछ गाँठ ढीली करें और लोगों को राजधानी रायपुर तक ला कर आडवाणी जी की सभा को सफल बनाएँ। 
छत्तीसगढ़ में मुन्नाभाइयों की भरमार?
बालोद में लापरवाह डॉक्टरों के कारण अनेक लोगों की आँखें चली गईं, क्या ये लोग मुन्नाबाई एमबीबीएस किस्म के लोग तो नहीं थे? मामले की जाँच हो तो ऐसे डॉक्टरों की डिग्रियाँ भी देख लेनी चाहिए। आजकल छत्तीसगढ़ में ऐसे अनेक छात्रा सामने आ रहे हैं, जिन्होंने फर्जी तरीके से मेडिकल में दाखिला पाने में सफलता हासिल कर ली है लेकिन अब जा कर पोल खुली तो भागते फिर रहे हैं। तैंतीस छात्रों पर जुर्म दर्ज हो चुका है। और 24 छात्र ऐसे हैं जो संदेह के दायरे में हैं। लगभग सौ छात्रों पर यह आरोप लगा कि उन्होंने फर्जी तरीके से मेडिकल कालेज में प्रेवश लिया। जिन छात्रों की बुनियाद ही फर्जी है, वे कल को पढ़ाई में भी तिकड़मों के जरिए परीक्षाएँ भी पास कर सकते हैं। ऐसे लोग कल डॉक्टर बनेंगे और किसी का आपरेशन करेंगे तो स्वाभाविक है कि मरीज भगवान का ही प्यारा हो जाएगा। इसलिए यह जरूरी है कि फर्जी छात्रों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और उनको अपात्र घोषित किया जाए। इस बात की भी सावधानी बरती जाए कि भविष्य में कोई भी छात्र फर्जी ढंग से प्रवेश पाने के हथकंडे न अपनाए। वरना होता यही है कि जो प्रतिभाशाली है, वे तो किसी कारणवश रह जाते हैं, मगर फर्जी छात्र प्रवेश पाकर एक तरह से योग्य लोगों का ही हक मारते हैं।
 छत्तीसगढ़ की  'स्वर्णिम' खेल प्रतिभाएँ
छत्तीसगढ़ में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अगर ईमानदारी से तलाश की जाए तो हर क्षेत्र में यहाँ के खिलाड़ी चमक सकते हैं। मौका मिलना चाहिए। अभी मौका मिला और छत्तीसगढ़ के दो खिलाडिय़ों ने छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित कर दिया। दक्षिण अफ्रीका  के कामनवेल्थ गेम में छत्तीसगढ़ रुस्तम सारंग और जगदीश विश्वकर्मा ने स्वर्णपदक जीत कर साबित कर दिया कि यहाँ के खिलाडिय़ों को मौका मिल जाए तो वे छत्तीसगढ़ का नाम रौशन कर सकते हैं। राज्य में खेल गतिविधियाँ बढ़ तो रही हैं, मगर अधिकांश खेल संगठनों में पैसे वालों का कब्जा है। कुछ लोगों की सामाजिक छवि भी ठीक नहीं हैं। ये लोग वास्तविक खेल प्रतिभाओं के साथ न्याय नहीं कर सकते। इसलिए खेल संघों में पूर्णकालिक खिलाडिय़ों को ही पदाधिकारी बनाना चाहिए, न कि नेताओं या उद्योगपतियों को। उनको केवल सदस्य बनाया जाए और आर्थिक मदद ली जाए, लेकिन जिम्मेदार पद पर बैठाना उचित नहीं, क्योंकि ये लोग भाई-भतीजावाद और सामंतशाही के शिकार हो जाते हैं। फिर भी प्रतिभा अपना हक प्राप्त कर ही लेती हैं। जैसे अभी दो लोगों ने स्वर्ण पदक जीत कर अपनी प्रतिभा को साबित कर दिखाया। ये लोग गाँव के हैं और सीमित साधनों के सहारे साधना करके यहाँ तक पहुँचे। खेल संघ ऐसे ही लोग की तलाश करे।
गुणवंत व्यास नहीं रहे
यथा नाम तथा गुण। ऐसे थे 72 वर्षीय प्रो. गुणवंत व्यास। संगीत गुरू के रूप में उनकी खास पहचान थी। अभी पिछले महीने उन्हें काका हाथरसी संगीत सम्मान से नवाजा गया था। राज्य सरकार का प्रतिष्ठित  चक्रधर सम्मान भी उन्हें मिल चुका था। राज्य की हर बड़े महत्वपूर्ण सांगीतिक आयोजन में व्यास जी की उपस्थिति रहती थी। उनके सिखाए अनेक छात्र आज संगीत की दुनिया में अपने मुकाम पर हैं। पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत खराब थी। अचानक दो दिन पहले उनका चला जाना संगीत प्रेमियों को दुखी कर गया। संगीत की बारीकियाँ सिखाना और उसी तरह जीवन को संगीतमय बहनाए रखने की कला के धनी थे। उन्होंने साहित्य की भी सेवा की। कुछ गुजराती रचनाओं का उन्होंने से हिंदी अनुवाद भी किया था.

2 Comments:

समयचक्र said...

दीपपर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

कविता रावत said...

सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार!

सुनिए गिरीश पंकज को