शिक्षक दिवस के दिन लोग शिक्षकों की पूजा करते हैं, उनका सम्मान करते हैं। शिक्षक होते भी इस लायक हैं कि उनका आदर किया जाए, लेकिन कभी-कभी कुछ शिक्षक सकलकर्मी यानी कुकर्मी भी निकल जाते हैं। जिनसे उम्मीद करते हैं, कि वे संस्कार देंगे, वे पट्ठे बलात्कार करते हुए पकड़े जाते हैं। भिलाई के ज्ञानदीप स्कूल में एक अज्ञानी शिक्षक का मामला प्रकाश में आया है। यह नीच शिक्षक पाँचवीं कक्षा की एक छात्रा को अपनी वासना का शिकार बनाना चाहता था। उस पर मामला दर्ज हो गया है। अब तो उसे स्कूल से हटा भी दिया गया होगा। दुख की बात यह है कि कुछ शिक्षक गलती से शिक्षा के पेशे में आ जाते हैं। दरअसल उन्हें होना था अपराधी, बनना था माफिया मगर अध्यापक बन गए। मगर मानसिकता वहीं की वही। क्या करें? ऐसे घटिया शिक्षकों के कारण पूरी बिरादरी बदनाम होती है। सचमुच, एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। ऐसे शिक्षकों को आजीवन जेल में ही सड़ाना चाहिए, ताकि उन्हें हर पल अपनी गलती का अहसास होता रहे।
लहू का रंग एक है....
पिछले दिनों फिर एक घटना प्रकाश में आई, कि एक घायल नक्सली को एक जवान ने अपना खून दिया। यानी उसकी जान ही बचाई। खून देने वाले जवान ने साबित कर दिया, कि मानवता सबसे ऊपर है। वह चाहता तोकून न भी देता। उन नक्सलियोंं को खून क्यों दें, जो बेकसूरों का खून बहाते हैं। यह निर्मम व्यावहारिक सोच है, मगर नैतिकता या जीवन-मूल्य यही कहते हैं, कि मानवता की रक्षा की जाए। हो सकता है, जवान के खून देने के बाद नक्सलियों का मन पसीजे। वे सोचने पर विवश हों, कि जिनको हम मार डालते हैं, उनके ही लोग हमारे साथी की जान बचाने के लिए रक्तदान करते हैं। लहू का रंग एक हैं। मगर जब लहू की सोच हिंसक हो जाए, तो क्या किया जा सकता है। जवान ने अपना लहू दे कर पुण्य का काम किया है। उसका अभिनंदन होना चाहिए।
सबक है यह पुलिस के लिए..
पुलिस का मतलब यह नहीं है, कि किसी के साथ भी मनमानी कर ली जाए। डंडा हाथ में आने के बाद कुछ लोग रावणत्व के शिकार हो जाते हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं, कि लोकतंत्र में कानून नाम की कोई चीज भी है। पुलिसवालों को कानून की रक्षा के लिए डंडा दिया जाता है, लेकिन भाई लोग उस डंडे से किसी का भी सिर फोडऩे लगते हैं। आरपीएफ के प्रभारी समेत सात पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का आदेश दिया गया है। हुआ यह कि किसी मामले में एक व्यक्ति को जेल हो गई थी, लेकिन पुलिस चालान नहीं पेश कर पाई। व्यक्ति को जमानत पर रिहा कर दिया गया। लेकिन पुलिस उसे फिर पकड़ कर ले गई। उसे मारा-पीटा। प्रताडि़त किया। मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रट ने मामला दर्ज करने का आदेश दे दिया। शिकार करने वाले लोग खुद शिकार हो गए। प्रताडि़त व्यक्ति को,उसके परिवार को तब संतोष मिलेगा, जब दोषी पुलिस वालों को कड़ी सजा मिलेगी। और मिलेगी ही क्योंकि न्याय के घर देर है, अंधेर नहीं।
छत्तीसगढ़ में घसपैठिए....?
छत्तीसगढ़ ही क्या, पूरा भारत घुसपैठियों का घर बनता जा रहा है। यह एक बड़ी समस्या है, फिलहाल अगर छत्तीसगढ़ की बात करें, तो यहाँ भी बांग्लादेश और पाकिस्तान के लोग घसुपैठ की कोशिश करते रहते हैं। अपने देश से वीजा बना कर आते हैं और भारत में ही रह जाते हैं। क्योंकि यहाँ सुख-शांति है। आराम से अपना धंधा कर सकते हैं। अपने यहाँ भ्रष्टाचार इतना है कि थोड़े से पैसे मिलने के बाद संबंधित अधिकारी किसी भी किस्म का प्रमाणपत्र दे सकता है। ऐसा ही एक पाकिस्तानी भवनदास सचदेव दस -बारह से रायपुर में रह रहा था। मकान भी खरीद लिया था। अपना व्यवसाय भी कर रहा था। अचानक पोल खुली। पुलिस ने पाक नागरिक केविरुद्ध चार सौ बीसी का मामला दर्ज कर लिया। इसके बाद ही यही सोचा जा रहा है, कि ेेसे न जाने कितने लोग यहाँ होंगे। रायपुर ही नहीं, आसपास भी ऐसे विदेशी होंगे, जो चुपचाप रह रहे हैं। एक अभियान चलना चाहिए, ताकि संद्ग्धि लोग पकड़ में आ सकें।
स्वर्ग है राजधानी सेक्स-माफिया के लिए....
छत्तीसगढ़ में भू माफिया, शराब माफिया, उद्योग माफिया आदि-आदि सक्रिय हैं। एक और माफिया तेजी के साथ पैर पसार रहा है। यह है सेक्स-माफिया। यह माफिया बाहर से लड़कियाँ बुलवाता है और यहाँ के रईसजादों को सप्लाई करता है। ये रईस लोग रायपुर के ही नहीं होते। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से यहाँ आते हैं। पिछले दिनों ऐसे ही एक सेक्स रैकेट का भाँडा फूटा। जम्मू और दिल्ली की लड़कियों के साथ छत्तीसगढ़ के ही दो युवक पकड़ में आए। दलाल फरार हो गया। पकड़ी गई लड़कियों के पास से अनेक बड़े शहरों की हवाई टिकटे मिली। यानी ये चलती-फिरती देह-मशीनें थी। आज यहाँ तो कल वहाँ। कोई बड़ी बात नहीं, कि ये धनलोलुप लड़कियाँ अपने अभिभावकों से छल करके घूमती रहती हैं। पकड़ में आने पर इनके माता-पिता लज्जित होते हैं। लेकिन आज पैसे कमाने की हवस के कारण पतन इतनी तेजी से फैला है कि कई लोग इस पतन को अपने मौलिक अधिकार की तरह देखने लगे हैं।
गाय मूक है मगर उसकी आँखें बोलती हैं
जन्माष्टमी धूमधाम से मनी। कुछ लोगों ने गायोंकी भी पूजा की। गौ माता की जय के नारे भी लगाए। लेकिन उसी दिन पूरे शहर में दिन के समय और रात को लावारिस-सी गायें घूमती रहीं। इधर-उधर बैठी भी मिलीं। जो गायें सड़कों पर यूँ ही बदहाल घूम रही थीं। उनके पालक भी गौ माता जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। हमारे यहाँ अजीब मानसिकता है। गायों का भरपूर दोहन करेंगे मगर उसकी देखभाल करने में कंजूसी करने लगेंगे। उसे चारा नहीं खिलाएंगे। उसकी सेवा नहीं करेंगे। केवल प्रणाम करेंगे, बस। गोया ऐसा करने से गौ माता प्रसन्न हो जाएगी। गाय मूक प्राणी है मगर उसकी आँखें बोलती हैं। जरा गौर से देखो। उसके आँसू भी बहते हैं। उसे गोपालक गौर से देखे महसूस करे। जब वह गाय का दूध पीये या उसे बेच कर, उसमें पानी मिला कर कुछ कमाई करे, तो ध्यान रखे कि गाय को कुछ खिलाना-पिलाना भी है। उसे सड़कों पर मत छोड़ो। उसे मैदान में चरने भेजो।
4 Comments:
घटनाओं,स्थितियों पर संवेदनशील नजरिया.
... बेहतरीन पोस्ट, आभार !!!
संवेदनशील चर्चा से रूबरू हुआ यहाँ आकर.
यह व्यंग्य नही है यह इस सदी का कटु यथार्थ है ।
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